राधिका अपने बेटे अंशुल के लिए बहुत केयरिंग है। उसके खाने-पीने से लेकर उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए वह फिक्रमंद रहती है। अंशुल के साथ वह क्वालिटी टाइम भी बिताती है लेकिन बेटे से जरा सी गलती हो जाने पर वह अक्सर उसे बहुत ज्यादा डांट देती है। पिछले कुछ समय से राधिका यह महसूस कर रही है कि अंशुल ग्रुप में खेल रहे बच्चों के सामने अक्सर गुमसुम सा नजर आता है, अपनी बात नहीं कह पाता, किसी बात के लिए मना करने पर बहुत जल्दी रुआंसा हो जाता है। राधिका ने इस बारे में जब चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट से सलाह ली तो उसे इस बात का अहसास हुआ कि बच्चे के लिए कॉन्फिडेंट होना कितना अहम है।
अगर बात सेलेब्रिटीज के बच्चों की करें तो वे अपने बच्चों को काफी ज्यादा पैंपर करते नजर आते हैं। चाहें बात शाहरुख खान और गौरी खान के बेटे अबराम की हो, आमिर खान और किरण राव के बेटे आजाद राव खान की हो, अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन की बेटी आराध्या बच्चन की हो, राज कुंद्रा और शिल्पा शेट्टी के बेटे वियान की हो या फिर सैफ अली खान और करीना कपूर खान के बेटे तैमूर की, ये सभी अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते और उन्हें पूरा स्पेस देते नजर आते हैं ताकि वे स्वाभाविक तरीके से सीख सकें। सेलेब्स हों या आम पेरेंट्स, सभी अपने बच्चों को आत्मविश्वास से भरपूर देखना चाहते हैं। अगर आप इस बारे में गंभीरता से सोच रही हैं तो आइए जानें कुछ ऐसे तरीके, जिससे आप अपने बच्चे को कॉन्फिडेंट बना सकती हैं-
बच्चे को कंट्रोल करने के बजाय उसे सिखाएं
अक्सर मम्मी बच्चों की शरारतों पर उन्हें खूब लेक्चर देती हैं। बच्चे में आत्मविश्वास भरने के लिए उसे बहुत ज्यादा डांटने से बचें, बल्कि उसे तरह-तरह के काम सिखाने में उसकी मदद करें। मम्मी होने के नाते आपका काम बच्चे को सपोर्ट करना है ताकि उसका विकास सही तरीके से हो सके। अगर आप बच्चे के साथ किसी एक्टिविटी में शामिल होंगी तो वह जल्दी सीखेगा कि काम किस तरह से किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि हमें अपनी चिंताओं को काबू करना सीखना होगा और बच्चों को कंट्रोल करने की प्रवृति से बचना होगा।
इसे जरूर पढ़ें: बच्चों को मजेदार तरीके से सिखाएं घर के काम
बच्चे को परफेक्ट बनाना नहीं है उद्देश्य
जब तक बहुत जरूरी ना हो बच्चे को किसी काम में परफेक्शन के लेवल तक जाने के लिए प्रेशराइज मत करें। बच्चे को लगातार टोकने से उसका आत्मविश्वास कमजोर हो जाता है और वह सही तरीके से सीख नहीं पाता।
इसे जरूर पढ़ें:इस तरह बच्चों के एक्जाम्स का स्ट्रेस हो जाएगा छूमंतर
शुरुआत से ही बच्चे को खुद अपना काम करना सिखाएं
बच्चे के हर काम खुद करने को अगर आप उसकी देखरेख समझती हैं तो आप सही नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि आप बच्चे को पूरी तरह से खुद पर छोड़ दें। उसके साथ रहें, उसकी हौसलाअफजाई करें, अगर बच्चा कहीं मुश्किल में फंसे तो उसकी मदद करें लेकिन जितना हो सके शांत रहें और अपने बच्चे का उत्साह बढ़ाएं। अगर आपका बच्चा झूले पर चढ़ रहा है और आप इस बात के लिए परेशानी जाहिर करने लगें कि कहीं वह गिर ना जाए तो इससे बच्चा इंप्रूव नहीं करेगा, इससे वह डरेगा ही। बच्चे से सिर्फ यह कहें वह सेफ है। अपनी एक्टिविटी सही तरीके से कर लेने पर आप उससे कह सकती हैं, 'देखा, तुमने कर लिया, मुझे पता था कि तुम यह काम आसानी से कर सकते हो।'
आसानी से पूरे हो जाने वाले काम बच्चे को दें
बच्चे को छोटे-छोटे आसानी से पूरे होने वाले काम दें जैसे बिस्तर ठीक करना, खिलौने अरेंज करना, पौधों में पानी देने आदि। बच्चों को पहले खुद ये काम करके दिखाएं, फिर उनसे करवाएं। जब बच्चे इस तरह के काम पूरे कर लेते हैं तो उनमें नए-नए काम खुद से कर लेने का हौसला जगता है। साथ ही बच्चे इस बात को लेकर भी आश्वस्त रहते हैं कि किसी भी मुश्किल में पड़ने पर आप उनकी मदद के लिए तैयार हैं।
हेल्प करने के चक्कर में बच्चे से सीखने का मौका ना छीनें
अगर आपके बच्चे को स्कूल से कोई प्रोजेक्ट बनाने की एक्टिविटी मिली है। तो आप बच्चे को स्टेप बाई स्टेप प्रोजेक्ट तैयार करने का तरीका बता सकते हैं। लेकिन प्रोजेक्ट को अगर आप अपने स्टेंडर्ड के हिसाब से मापने लगें और उसे बनाने में खुद ही लग जाएं तो बच्चा कुछ सीख नहीं पाएगा। हो सकता है कि उस प्रोजेक्ट के लिए बच्चे को स्कूल में वाहवाही मिले, लेकिन इससे बच्चा आत्मनिर्भर होना नहीं सीख पाएगा। ऐसे में बच्चे को खुद प्रयास करने दें। अपनी समझ से बच्चा जब काम करता है तो वह उससे प्लानिंग करने और उसके एक्जीक्युशन तक बहुत कुछ सीखता है।
आत्मनिर्भर बनाने के बड़े फायदे
अगर आपका बच्चा खुद को लेकर आश्वस्त है तो वह पियर प्रेशर यानी साथी बच्चों की तरफ से महसूस होने वाले दबाव से आसानी से डील कर सकता है। साथ ही आपका बच्चा अन्य बच्चों की तुलना में अपने काम की जिम्मेदारी लेना भी सीख जाएगा। एक बड़ा फायदा यह भी है कि ऐसे बच्चे स्ट्रॉन्ग इमोशन्स से डील करना भी सीख जाते हैं फिर चाहें वे अच्छे हों या बुरे। इससे बच्चे किसी भी मुश्किल की स्थिति को खुद से हैंडल करना सीख जाते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
Averti की सेक्शुअलिटी और पेरेंटिंग कोच नियति शाह ने बच्चे की कॉन्फिडेंस बिल्डिंग कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देने की बात कही-
- बच्चों पर दया ना करें। उनके मन में अनजान लोगों का डर ना बिठाएं। बच्चों को स्मॉल टॉक करना सिखाएं। अक्सर किसी नए व्यक्ति से बात करने पर बच्चा मम्मी-पापा के पीछे छिपने लगता है। इससे बच्चे को बाहर निकालें। उसका उत्साह बढ़ाएं। इससे उसे समझ आता है कि घर की बात बतानी है या नहीं बतानी है, किसको कितना जवाब देना है और किस तरह से देना है। ये चीजें बच्चा प्रैक्टिस करने से ही सीखता है।
- अक्सर मम्मी-पापा बच्चों को काम करने पर इनाम में रुपये-पैसे का लालच देते हैं। बच्चों को काम में इन्वॉल्व करें लेकिन उनसे पैसे देने की बात नहीं कहें क्योंकि घर-परिवार या खुद से जुड़े काम लाइफ स्किल्स हैं, जिन्हें सीखना बच्चे के लिए एसेंशियल है।
- बच्चों में कामों से जुड़े डर ना बिठाएं। उन्हें थोड़ा एक्सपोज होने दें। जब तक कोई बहुत बड़ा खतरा ना हो, उन पर रोक-टोक ना करें। इसी से बच्चे सीखेंगे और उनके मन में यह भाव आएगा, 'मैं खुद कर सकता हूं।' मान लीजिए बच्चा बेड से छलांग लगा रहा है, अगर हम बच्चे को गिरने के डर से मना कर देंगे, तो अगली बार वह कोशिश ही नहीं करेगा।
- बच्चों से बढ़ाएं शेयरिंग-बच्चों से रोजमर्रा की चीजों पर बात कर उनसे उनका नजरिया समझने की कोशिश करें। बच्चे को अपनी बात कहने दें। आप बच्चे के सवालों का क्या जवाब देते हैं, इस पर उनका परसेप्शन बनता है और उनका कॉन्फिडेंस बिल्डअप होता है।
- पेरेंट्स के लिए इंपॉर्टेंट है कि वे बच्चे में ये विश्वास भरें कि बच्चा नए-नए काम कर सकता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि बच्चा खुद के बारे में अच्छा सोचे। अगर बच्चा अपने आप पर विश्वास नहीं करेगा तो दुनिया पर भी नहीं कर पाएगा। पेरेंट्स के साथ बातचीत से उसका विश्वास विकसित होता है।
- अगर कोई काम बिगड़ जाए तो बच्चे को उसके लिए दोषी ठहराने के बजाय बच्चे से उन वजहों के बारे में बात करें, जिनके कारण समस्या आई। यहां बच्चे को इंस्पायर करने से बात नहीं बनेगी।
- बच्चे के छोटे-छोटे इशुज उसे खुद सुलझाने दें। बच्चे को अमूमन यह पता नहीं होता कि अगर उसे कोई बच्चा बुली कर रहा है तो वह उसे कैसे जवाब दे। इस बारे में आप बच्चे से बात कर सकती हैं, उसे समझा सकती हैं कि वह किस तरह दूसरे बच्चे से इस पर बात करेगा। पेरेंट्स अक्सर दो एक्सट्रीम्स पर होते हैं, या तो वे बच्चों के हर काम में इन्वॉल्व होते हैं या फिर वे कह देते हैं कि मैं कुछ नहीं करूंगा। ये दोनों स्थितियां सही नहीं हैं। बच्चे के साथ रहें और उसे अपने फैसले खुद लेने में मदद करें।
- हम पेरेंट्स बच्चों पर अक्सर हावी हो जाते हैं क्योंकि हम उन्हें सोसाइटी में अच्छा दिखाना चाहते हैं। इससे बचें। बच्चे को छोटे-छोटे फैसले खुद लेने दें मसलन उसे कपड़े कौन से पहनने हैं, क्या खाना खाना है। इससे उसे अपनी इंपॉर्टेंस का अहसास होगा। दुनिया में जितने भी क्रिएटिव लोग हैं, उन्होंने रूटीन से कुछ हटके सोचा, तभी वे इस मुकाम पर पहुंचे। आपको नहीं पता कि आपका बच्चा क्या सोच रहा है, इसीलिए उसे निखरने के लिए पूरा स्पेस दें।
- बच्चे में कौन सी खामियां हैं, इसकी बजाय उसके टैलेंट और एबिलिटी पर फोकस करें तो बच्चा बहुत कॉन्फिडेंट रहता है। यह भी सुनिश्चित करें कि बच्चा सोशल सर्विस में इन्वॉल्व हो। इससे भी बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ता है।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों