16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में निर्भया के निर्ममता से हुए गैंगरेप और उसके बाद उसकी मौत से पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। इस घटना के बाद केंद्र सरकार से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में महिला सुरक्षा पर संज्ञान लिया गया। हालांकि महिला सुरक्षा को लेकर सरकार ने कई तरह की घोषणाएं की हैं, निर्भया फंड दिए जाने का ऐलान किया गया, लेकिन इन सबके बाद क्या वाकई दिल्ली की सड़कों पर हालात बदले हैं? क्या महिलाओं के लिए रात में सफर करना आसान हुआ है? आज भी दिल्ली के कई ऐसे इलाके हैं, जो रात में पूरी तरह सुनसान हो जाते हैं। इन जगहों पर ना तो लाइटिंग है और ना ही किसी तरह की सिक्योरिटी नजर आती है। HerZindagi ने दिल्ली की ऐसी ही कई सड़कों पर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया।
हमारी टीम वसंत कुंज में डीएलएफ एंपोरियो के पीछे वाली लेन में पहुंचीं और वहां पर सुरक्षा व्यस्था की पड़ताल की। हालांकि यहां शाम के 7.30 बजे ही सन्नाटा नजर आ रहा था, लेकिन यह देखकर अच्छा लगा कि यहां लाइटिंग की अच्छी व्यवस्था थी। दिल्ली में सर्द मौसम और कोहरे के बीच चारों तरफ दूधिया रोशनी में नहाई सड़क पर चलते हुए पॉजिटिविटी फील हुई।
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मुनीरका फ्लाईओवर का ऐसा है हाल
हमारी टीम ने मुनीरका फ्लाईओवर के आस-पास की सड़कों का जायजा लिया। इसके लिए हमारी टीम बाकायदा उन स्पॉट्स में गई, जहां रात में जाते हुए आमतौर पर महिलाएं डरती हैं।हमारी टीम उस जगह पर गई, जहां से वह बस स्टॉप कुछ ही दूर है, जहां से निर्भया ने बस पकड़ी थी। आज भी यह जगह आज भी काफी संवेदनशील मानी जाती है। हमने पाया कि फ्लाईओवर के नीचे फ्लैश लाइट्स लगी हुई हैं और पूरे इलाके में अच्छी रोशनी नजर आ रही थी। यह एक अच्छा डेवलपमेंट था क्योंकि दो साल पहले तक इस स्पॉट पर लाइटें नहीं थीं।
बस स्टेंड पर ऐसी है स्थिति
दिल्ली में वर्किंग वुमन की संख्या अच्छी-खासी है। रात के समय में सुरक्षित घर पहुंचने के लिए महिलाएं बड़ी संख्या में प्राइवेट वाहनों और पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सहारा लेती हैं। हमने उस जगह का जगह का जायदा लिया, जहां निर्भया 7 साल पहले एक प्राइवेट बस में चढ़ी थी। यहां की सड़कों की छानबीन करने के बाद हमने पाया कियहां मुनीरका फ्लाईओवर के उलट यहां अंधेरा नजर आ रहा था। रात के 8.30 बजे इस जगह पुलिस वाले भी नजर नहीं आ रहे थे। कुछ समय पहले ही दिल्ली सरकार ने महिलाओं के सफर को सुरक्षित बनाने के लिए बसों में मार्शल्स की व्यवस्था की है। इस बात को दिल्ली सरकार की तरफ से काफी ज्यादा प्रचारित किया गया था, लेकिन जब हमारी टीम के सदस्य यहां से बस में सवार हुए तो उन्होंने पाया कि बस में मार्शल ही नहीं थे। हालांकि एक बस में मार्शल नजर आया। लेकिन पूछताछ महिला यात्रियों से पूछताछ में पता चला कि मार्शल्स कई बार बस में सवार होने वाली महिलाओं की सेफ्टी को लेकर बहुत ज्यादा एलर्ट नहीं होते। कुछ महिला यात्रियों ने बताया कि डीटीसी बस वाले कई बार हमें देखने के बाद भी बस नहीं रोकते और हमें बस पकड़ने के लिए वेट करना पड़ता है। वहीं कुछ और महिलाओं ने बताया कि कंडक्टर सामने खड़ी महिलाओं को पिंक टिकट देने के बजाय पहले पुरुषों को टिकट देते हैं। मुनीरका फ्लाईओवर से महज 200 मीटर की दूरी पर जब हमारे टीम मेंबर्स बस से उतरे तो पाया कि बस स्टॉप के आसपास अंधेरा ही नजर आया। अक्सर अंधेरे में ही महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और आपराधिक गतिविधियां होने की घटनाएं सामने आती हैं। हाल ही में हैदराबाद में वेटरनरी डॉक्टर के साथ हुआ गैंगरेप भी सुनसान सड़क पर ही हुआ था, जहां पुलिस की पैट्रोलिंग नहीं हो रही थी।
गौरतलब है कि निर्भया के साथ हुए गैंगरेप के बाद दिल्ली पुलिस ने ऐसे 2000 डार्क स्पॉट्स मार्क किए, जहां जाना महिलाओं के लिए खतरे से खाली नहीं है, खासतौर पर रात में। ये जगहें एयरपोर्ट, मेट्रो स्टेशन, रेलवे स्टेशन, मॉल्स और दक्षिण दिल्ली के पॉश इलाकों के आसपास हैं। ऐसे इलाकों में अब तक भी स्ट्रीट लाइट्स इंस्टॉल नहीं हैं या फिर उनकी मरम्मत नहीं हुई है। ऐसे इलाकों में आईटीओ, जामा मस्जिद, गोविंदपुरी, द्वारका मोड़, उत्तम नगर, जनकपुरी वेस्ट, जनकपुरी ईस्ट, तिलक नगर, शादीपुर, चांदनी चौक, कश्मीरी गेट, नई दिल्ली, आदर्श नगर, विश्वविद्यालय और जहांगीरपुरी जैसे इलाके शामिल हैं। साथ ही लाजपत नगर साउथ एक्स, साकेत और वसंत विहार जैसे इलाकों को भी इसी श्रेणी में शामिल किया जा सकता है।
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कैसी है करोलबाग की स्थिति?
दिल्ली सरकार की तरफ से महिलाओं के लिए सफर को सुरक्षित बनाने के लिए एक पहल की गई थी। दावा किया गया था कि इसके जरिए महिलाएं कॉन्फिडेंस के साथ सड़कों पर निकल सकेंगी। इस नाइट स्ट्रीट कार्निवल के दौरान करोलबाग में हर तरफ काफी रौनक नजर आई थी। यहां के मेयर, पुलिस और म्यूनिपैलिटी ने इस दौरान महिलाओं को बिना किसी डर के बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया था। लेकिन जैसे ही फेस्टिवल खत्म हुआ, वही सन्नाटा फिर से नजर आने लगा। पुलिस की गश्त तो दूर, यहां बैरिकेडिंग के पास भी कोई पुलिसवाला नजर नहीं आया। पुलिसवालों की गैरमौजूदगी की वजह से अजमल खान रोड पर सिक्योरिटी को लेकर स्थानीय निवासियों में काफी चिंता है। यहां रहने वाली महिलाओं से जब हमारी टीम मेंबर्स ने बात की तो उनका कहना था, 'फेस्टिवल बीतने के बाद पहले जैसी स्थिति हो गई है। अगर यहां नियमित तौर पर इस तरह की एक्टिविटी हो तो स्थितियां बदल सकती हैं। जो लोग घर से यहां तक पहुंचते हैं, वो भी सुनसान सड़क से होकर यहां पहुंचते हैं, यानी ऐसे हालात में महिलाएं किसी भी तरह की दुर्घटना की शिकार हो सकती हैं। यहां लोग गाड़ियां लगाकर साइड में खड़े होकर शराब पीते हैं, ऐसे में महिलाओं यहां पर आ नहीं सकतीं, बच्चे आ नहीं सकते, लड़कियां कैसे निकलें।'
हमारी टीम रात के 10 बजे करोड़बाग मार्केट में पहुंची, जहां चहल-पहल थी, लेकिन यहां पुलिसवाला एक भी नहीं था। जब यहां की महिलाओं से हमारी टीम ने बात की तो उनका कहना था, 'हम यहां रेगुलर आते हैं, लेकिन यहां कोई पुलिसवाला नजर नहीं आता।' बाजार में मौजूद लोगों ने भी इस बात की तस्दीक की कि पुलिस वाले इस जगह पर नजर ही नहीं आते। बाजार में मौजूद एक व्यक्ति ने बताया, 'यहां लूटमार की घटनाएं अक्सर होती हैं। जब कोई इस बारे में पुलिस को सूचित करता है तो पुलिस मामले की तफ्तीश करने के बजाय उलटे सूचना देने वाले को ही परेशान करने लगती है।'
हेल्पलाइन 112 पर मदद मांगने पर मिला ये रेसपॉन्स
दिल्ली सरकार की तरफ महिला सुरक्षा के लिए इमरजेंसी नंबर का भी काफी प्रचार किया गया था। हमने इस हेल्पलाइन नंबर पर भी कॉल किया। हमारी टीम ने अजमल खान रोड से हेल्पलाइन 112 पर कॉल किया और बताया कि इलाके में पुलिसवाले गश्त नहीं लगा रहे। इस पर हेल्पलाइन नंबर पर बात कर रही महिला का संज्ञान लेने के बजाय लापरवाही से कहा, 'पुलिस वाले गश्त लगा रहे होंगे। बहुत बड़ा एरिया होता है।'हमारी टीम ने इस इलाके में पुलिसवालों को खोजने की भी कोशिश की। सुनसान सड़क और पुलिस का ना होना ही इस बात की तरफ साफ इशारा करता है कि यह सड़क महिलाओं के लिए सेफ नहीं है। उस पर हेल्पलाइन नंबर का रेसपॉन्स भी निराशानजक है। इस सड़क पर दूर-दूर तक अंधेरा ही अंधेरा नजर आ रहा है। इस सड़क पर अकेली जाती हुई एक महिला से हमारी टीम ने बात की। सत्य निकेतन से पैदल आ रही इस महिला ने बताया, 'सत्यनिकेतन से यहां की दूरी 500 मीटर के करीब है। पास में पुलिस चौकी है, जहां 1-2 पुलिसवाले रहते हैं। लेकिन सड़क के दूसरी तरफ कोई पुलिसवाला नहीं है। यहां के कुछ स्ट्रेचेज से गुजरते हुए वाकई डर लगता है।' हमारी टीम ने यहां आसपास पुलिस वालों को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कोई नहीं मिला।
दिल्ली कैंटोनमेंट में रात के 10.30 बजे
दिल्ली कैंटोनमेंट में जब हमारी टीम पहुंची तो यहां भी हालात कोई अलग नहीं थे। रात के 10:30 बजे यह इलाका पूरी तरह वीरान नजर आ रहा था। इस सुनसान इलाके में अंधेरा देखकर किसी को भी डर लग सकता है। अगर यहां चलते हुए गाड़ी खराब हो जाए या किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो आसपास किसी तरह की मदद नहीं मांगी जा सकती। चाहें सत्य निकेतन हो, धौला कुआं हो या फिर बरार स्क्वेयर हो, यहां कोई पुलिसवाला नहीं है।
जंगपुरा मेट्रो स्टेशन पर रात 11:00 बजे
कई इलाकों से सड़कों की सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते हुए हमारी टीम जंगपुरा मेट्रो स्टेशन पहुंचीं। जंगपुरा मेट्रो स्टेशन के अंदर ठीक-ठाक रोशनी थी, लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते हुए बाहर असुरक्षा की भावना मन में आने लगती है। मेट्रो से बाहर निकलने के दो रास्ते हैं और दोनों ही तरफ पूरी तरह अंधेरा और सन्नाटा है। महिलाएं तो क्या, पुरुष भी यहां आने में डर सकते हैं। उस पर सड़कों के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां पर फोन के लिए नेटवर्क भी नहीं आता। यानी इन जगहों से इमरजेंसी में अगर घरवालों या पुलिस को कॉल करना हो तो मदद नहीं मांगी जा सकती। ये स्थितियां रात में सड़कों पर अकेले निकलने के लिहाज से कतई सही नहीं मानी जा सकतीं।
अपनी अपनी पड़ताल में यही पाया कि दिल्ली में रात के समय महिलाओं के सफर को सुरक्षित बनाने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। महिलाओं का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए सड़कों पर रोशनी के साथ-साथ पुलिस पेट्रोलिंग का होना भी जरूरी है। साथ ही इमरजेंसी हेल्पलाइन को भी अपने रेसपॉन्स में सक्रियता दिखाने की जरूरत है ताकि मुसीबत में फंसी महिलाओं को बचाया जा सके।
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