साल 1919, अफगानिस्तान की महिलाओं को वोटिंग का अधिकार मिला है। सड़कों पर महिलाएं स्कर्ट पहन कर घूम रही हैं, खुशियां मना रही हैं। साल 1970, महिलाओं ने अफगानिस्तान की मिनिस्ट्री में अपनी जगह बना ली है, लीगल सिस्टम में उनकी हिस्सेदारी है।
साल 1979, अफगानिस्तान पर सोवियत संघ का वर्चस्व बढ़ रहा है, इस्लामिक कट्टरपंथ यहां वापस आ रहा है।
साल 1990, अफगान महिलाओं पर इस्लामिक कट्टरपंथ का डर बैठ गया है। तालिबान ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं।
साल 2001, तालिबान से लड़ने के लिए अमेरिकी फोर्स आ गई है।
साल 2012, मलाला यूसुफजई पर स्कूल जाते समय गोलियों से हमला होता है। साल 2019 तालिबान के खात्मे से खुशी मनाई जा रही है, अफगानिस्तान एक बार फिर से आजाद है।
साल 2021, अफगानिस्तान में एक बार फिर तालिबानी हुकूमत आ गई है।
साल 2023, महिलाएं अफगानिस्तान में अपने घर से निकलने से भी डर रही हैं। ना ही उनके पास पढ़ने का अधिकार है और ना ही उन्हें अपने घर से बाहर बिना पुरुष के ट्रैवल करने का अधिकार है।
ऊपर दिए हुए आंकड़े 100 सालों की एक ऐसी तस्वीर बयां करते हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों को ये सिर्फ आंकड़े लगें, लेकिन अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए ये एक सच है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। उड़ने के लिए आसमान मिलने के बाद अगर किसी चिड़िया को पिंजरे में कैद कर लिया जाए, तो शायद उसे कुछ ऐसा ही लगता हो। 15 अगस्त 2023 को तालिबान सरकार के दो साल पूरे हुए। अफगानिस्तान में तब से लेकर अब तक में बहुत बदलाव आ गया है। पिछले दो सालों में महिलाओं की जिंदगी कैद होकर रह गई है।
इसे जरूर पढ़ें- सुविधा या भ्रम? आंकड़े बताते हैं महिला सुरक्षा के नाम पर कैसे रहे आजादी के 76 साल
यूएन वुमन की एक रिपोर्ट मानती है कि पिछले दो सालों में 85% महिलाएं नेगेटिविटी का शिकार हो गई हैं और बस खुद को किसी तरह से जिंदा रखे हुए हैं। यह आंकड़ा अपने आप में बहुत ही चौंकाने वाला साबित हो सकता है।
2012 में सत्ता में आने के बाद से ही तालिबान ने लगातार महिलाओं के खिलाफ नियमों की लिस्ट जारी की है। feminist.org की रिपोर्ट बताती है कि अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 ने 80 फरमान जारी किए हैं जिसमें से 54 सिर्फ महिलाओं के लिए ही हैं। पिछले दो सालों में अफगानिस्तान की महिलाओं ने पुरुषवाद का एक ऐसा घिनौना रूप देखा है जिसके कारण उनकी जीने की ख्वाहिश का ही गला घुट रहा है। ग्लोबल पॉलिसीज की बात करें, तो यूएई, तुर्की, यूरोपियन यूनियन, चीन, रूस, ईरान, कतर जैसे देशों ने काबुल में अपनी एंबेसी खोल ली है।
पाकिस्तान, ईरान, चीन, रूस, कतर, यूएई ने तो अपने देशों में तालिबान के रिप्रेजेंटेटिव और डिप्लोमैट्स को आने दिया है, लेकिन अगर पूछा जाए कि इसमें महिलाएं कितनी हैं... तो जवाब होगा शून्य।
अफगानिस्तान के मौजूदा हालात को देखने के पहले हम वहां के उस दौर का जिक्र कर लेते हैं जब अफगानिस्तान भारत से ज्यादा समृद्ध और आज़ाद था।
साल 1970 के पहले का अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में 1880 से 1901 के बीच भी बहुत से परिवर्तन देखे गए थे। अफगान के तत्कालीन राजा अब्दुल रहमान खान के राज में महिलाओं के अधिकारों के बेहतर बनाया गया था। उनकी पत्नी बोबो जान को बिना नकाब के देखा जाता था और अफगानिस्तान की स्कॉलर नैंसी हैच डुप्री ने अपनी रिपोर्ट में बोबो जान को घुड़सवारी और मिलिट्री एक्सरसाइज में हिस्सा लेने वाली महिला बताया था।
1920 के दशक में एंग्लो-रशियन एग्रीमेंट ने अफगानिस्तान को मॉर्डन बनाना शुरू कर दिया था। उस समय के राजा एमिर अमानुल्लाह ने कहा था, "इस्लाम महिलाओं के हाथों, पैरों या चेहरे को ढंकने को नहीं कहता।" इसका जिक्र आपको 'Afghan Women in History: The 20th Century' रिपोर्ट में मिल जाएगा।
अफगानिस्तान में मॉर्डनाइजेशन बहुत तेजी से हुआ था। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हर तरह के बदलाव ने अफगानिस्तान को एक ऐसा देश बना दिया था जहां की जनता खुलकर सांस ले सकती थी। महिलाओं के साथ भी बहुत प्रोग्रेसिव बदलाव हो रहे थे। इन बदलावों के बीच महिलाओं के लिए नियमों का आधार भी नया रूप ले रहा था। बदलते देश में महिलाओं के लिए इस्लामिक नियमों की परिभाषा ज्यादा प्रोग्रेसिव थी। 1919 में सफरेज का अधिकार मिलने के बाद अफगानिस्तान में एक के बाद एक सुखद बदलाव हुए। 1966-1971 के बीच में 14 महिलाएं जज बनाई गईं। 1960 के दशक की महिलाएं काम भी करती थीं।
अफगानिस्तान का इस्लामिक मूवमेंट और महिलाओं के हालात
साल 1979 से ही अफगानिस्तान के हालात बदलने लगे। उस वक्त सोवियत यूनियन के सिपाहियों ने अफगानिस्तान में हमला किया। उस वक्त तत्कालीन सरकार एंटी-कम्युनिस्ट मुसलमानों के खिलाफ लड़ रही थी।
धीरे-धीरे अफगानिस्तान में इस्लामिक मूवमेंट शुरू हुआ। 1981 में मुजाहिदीन ग्रुप के तौर पर एक पार्टी सामने आई। धीरे-धीरे इसकी ताकत बढ़ने लगी और इसका एक ही उद्देश्य था, अफगानिस्तान में इस्लामिक मूवमेंट लाना। सिविल वॉर का मारा अफगानिस्तान इस बीच कई मूवमेंट्स का हिस्सा भी बना। हालांकि, 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद हालात थोड़े सुधरे।
साल 1993 में अफगानिस्तान ने यूएन के साथ 'Convention on the Elimination of Discrimination against Women (CEDAW)' भी साइन किया। यूरोपियन यूनियन की एक स्टडी के मुताबिक, उस वक्त की गई इस छोटी सी पहल ने 1990 के दशक में 70% स्कूल टीचर्स और 50% सरकारी कर्मचारियों के तौर पर महिलाओं को नियुक्ति मिली। काबुल में 40% डॉक्टर्स उस वक्त महिलाएं ही थीं।
पर धीरे-धीरे तालिबान के काले अध्याय की शुरुआत हो रही थी।
शिया और सुन्नी की आवाम के बीच अफगानी महिलाओं पर इस्लामिक नियमों का पुलिंदा थोपा गया। सबसे अनोखी बात तो यही है कि महिलाओं के लिए बनाए गए सभी नियम पुरुषों द्वारा स्थापित किए गए। महिलाओं को पर्दे में रहने के आदेश दिए गए।
इसे जरूर पढ़ें- तीन साल में 13 लाख महिलाएं गायब... सरकारी आंकड़ों ने बताई सुरक्षा की सच्चाई
क्या था तालिबान और क्यों महिलाओं के लिए यह बना काला अध्याय?
साल 1994 में एक नया ग्रुप बना जिसे तालिबान कहा गया। तालिबान देओबंदी इस्लामिक कट्टरपंथी और पश्तून नेशनलिस्ट का एक ग्रुप कहा गया जो इस्लाम को सर्वोपरी मानता था, लेकिन असल मायने में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा था।
साल 1996 के बाद आए तालिबानी कानून में 8 साल से ऊपर की लड़कियों से पढ़ने की आजादी छीन ली गई। महिलाओं को काम करने की मनाही हो गई। महिलाएं पुरुषों के साथ एक ही बस में सफर नहीं कर सकती थीं। बिना महरम (परिवार का पुरुष सदस्य) के महिलाएं बाहर नहीं जा सकती थी। डॉक्टर के पास जाने के लिए भी तब महिलाओं को पुरुषों की सहायता लगती थी। इसका नतीजा यह हुआ कि महिलाओं के स्वास्थ्य सेवाएं कम होती चली गईं। आप तालिबानी डिक्टेट का अंदाजा इस हिसाब से लगा सकती हैं कि महिलाओं को पब्लिक स्पेस में खुलकर बोलने की मनाही थी। किसी महिला की तेज आवाज पर भी उस पर कोड़े बरसाए जा सकते थे।
उस वक्त तत्कालीन विदेश मंत्री मुल्लाह मोहम्मद गौस ने यह संभावना सिरे से नकार दी थी कि किसी महिला का कोई जीवित पुरुष रिश्तेदार नहीं हो सकता है। 2001 तक महिलाओं के हालात बिगड़ते चले गए।
तालिबान के जाने के बाद महिलाओं ने ली थी राहत की सांस
वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद अमेरिका ने अलकायदा को खत्म करने की ठानी और अमेरिका और उसके साथियों ने मिलकर अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। 20 सालों तक अमेरिकी फोर्सेज अफगानिस्तान में लड़ती रहीं और तालिबान को अफगानी हुकूमत से दूर कर दिया।
साल 2001 में तालिबान रूल के जाने के बाद महिलाओं के एजुकेशन के मामले में बहुत से मूलभूत बदलाव आए। यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि 2001 में 1 मिलियन बच्चे स्कूलों में थे और 2018 तक यह आंकड़ा बढ़कर 10 मिलियन हो गया।
प्राइमरी स्कूलों में 2001 में कोई भी लड़की स्कूल में नहीं थी, लेकिन 2018 तक यह आंकड़ा 2.5 मिलियन तक हो गया। अगस्त 2021, तक हर 10 में से 4 स्टूडेंट्स महिलाएं ही थीं। जहां तक हायर एजुकेशन का सवाल है, 2001 में 5000 फीमेल स्टूडेंट्स कॉलेज में थीं और 2021 की शुरुआत तक 1 लाख से ज्यादा महिलाएं पढ़ाई कर रही थीं।
लिटरेसी रेट 2001 में 17% था जो बढ़कर 30% तक पहुंच गया।
तालिबान 2.0 में महिलाओं का हाल
मौजूदा समय में महिलाएं एक बार फिर उसी काल में जी ही हैं जब उन्हें सांस लेने के अलावा और किसी चीज का अधिकार नहीं था। अगस्त 2021 के बाद से ही महिलाओं का बाहर निकलना, बाजार में घूमना, पढ़ने जाना बंद हो गया। लड़कियों को छठवीं क्लास के आगे पढ़ने की मनाही हो गई जिसके कारण एक बार फिर लड़कियां अपने मूलभूत अधिकार से वंचित हैं।
2021 से पहले सरकार चलाने में भी महिलाओं की हिस्सेदारी थी और 249 सीट्स में से 69 सीट्स पर महिलाएं शामिल थीं।
अगस्त 2021, में महिलाओं को तालिबान ने घर पर रहने की हिदायत दी क्योंकि "उनके सैनिकों को महिलाओं को देखने की आदत नहीं थी।"
अगस्त 2021 में ही यह नियम बनाया गया कि पुरुष टीचर्स लड़कियों को नहीं पढ़ा सकते हैं। 12 सितंबर के बाद से ही 13 साल से ऊपर की उम्र की लड़कियों ने स्कूल में वापसी नहीं की है। सितंबर में ही महिला वर्किंग प्रोफेशनल्स को घर रहने को बोल दिया गया। हालांकि, बाद में कुछ सेक्टर्स में अनुमति दे दी, लेकिन फिर भी यह बहुत कम था।
सितंबर 2021 को ही महिलाओं को काबुल यूनिवर्सिटी में पढ़ने और पढ़ाने की अनुमति नहीं है। 2021 में महिलाओं को टीवी और फिल्में में आने से बैन कर दिया गया। इस नियम में थोड़ी राहत दी गई, लेकिन सितंबर 2022 में फीमेल जर्नलिस्ट को टीवी पर चेहरे कवर करके आना है। अक्टूबर 2022 आते-आते वुमन कमीशन ऑफ मीडिया वायलेशन्स का अस्तित्व ही मिटा दिया गया।
फरवरी 2022, में तालिबान ने सभी यूनिवर्सिटीज को जेंडर के आधार पर बांट दिया है।
यही नहीं तालिबान ने 4-6 वीं कक्षा तक की फीमेल स्टूडेंट्स को अपने चेहरे ढक कर आने-जाने और पढ़ने को कहा। जून 28, 2022 को हुई एक सभा में कहा गया कि पुरुष रिश्तेदार महिलाओं के विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। अगस्त 2022 तक महिलाओं के लिए मोरल पुलिस डिपार्टमेंट स्थापित कर दिया गया जो उन्हें इस्लामिक तरीके से जिंदगी जीने का तरीका समझाए और नियमों का पालन करवाए।
सितंबर 2022 आते-आते लड़कियों के लिए सेकेंडरी एजुकेशन पूरी तरह से बैन कर दी गई। जीन्स पहने हुए लड़कियों के एक ग्रुप को पीटा गया और महिलाओं के लिए यह भी फतवा जारी किया गया कि वो खेती, माइनिंग, सिविल इंजीनियरिंग, जर्नलिज्म जैसे सब्जेक्ट्स नहीं चुन सकती हैं।
दिसंबर 2022 आते-आते हायर एजुकेशन ले रही सभी लड़कियों को रोक दिया गया और एनजीओ के साथ काम करने की भी मनाही हो गई।
जुलाई 2023 तक ब्यूटी पार्लर पूरी तरह से बैन कर दिए गए और अब महिलाएं पूर्ण इस्लामिक ड्रेस कोड में ही बाहर जा सकती हैं।
तालिबानी नियमों के हिसाब से महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह उनका घर ही है और वो बिना पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर निकलीं, तो उनकी जिंदगी और सजा के लिए वो खुद जिम्मेदार हैं। अगर कोई मां अपने बीमार बच्चे को बचाने के लिए अस्पताल भी जाना चाहे, तो भी उसे पुरुष रिश्तेदार का इंतजार करना होगा नहीं तो उसे सख्त सजा मिल सकती है। अगर किसी महिला को गंभीर बीमारी हो गई है, तो भी बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के महिला खुद डॉक्टर के पास नहीं जा सकती।
ब्यूटी पार्लर तो बहुत दूर की बात है तालिबानी कानून में अपना पेट भरने के लिए अगर अनाज लेने जाना है, तो भी महिलाओं को पुरुषों के भरोसे जीना होगा। अगर कोई लड़की 5 साल से बड़ी है या 75 साल से छोटी है, तो उसे पूरी तरह नकाब में कैद होना पड़ेगा। किसी टेंट की तरह लबादा ओढ़े बचपन कहीं छिन जाएगा। तालिबान 2.0 के आगमन पर यह वादा किया गया था कि महिलाओं के लिए यह नया तालिबान प्रोग्रेसिव होगा, लेकिन जिस तरह के हालात हैं हम यह मान सकते हैं कि आने वाले समय में महिलाएं सिर्फ अपने घर की चारदीवारी के अंदर कैद होकर रह जाएंगी।
कोई महिला अगर नियम तोड़ रही है, तो उसे सार्वजनिक कोड़े मारे जा सकते हैं, उस पर पत्थर बरसाए जा सकते हैं या फिर उसे गोली भी मारी जा सकती है। यह किस तरह का मानवाधिकार है? आपके और हमारे जैसे लोगों के लिए जो आम दिन हो सकता है, वो अफगानी महिलाओं के लिए किसी सपने से कम नहीं है। मैं आज ये आर्टिकल लिख पा रही हूं क्योंकि मैं एक ऐसे देश में हूं जहां मुझे काम करने, खुलकर जीने की आजादी है, लेकिन अफगानिस्तान में मेरी अपनी जिंदगी किसी महिला के लिए पूरा ना हो सकने वाला सपना हो सकती है।
हम भले ही विश्व की शांति, महिलाओं के लिए वैश्विक समाधानों और अधिकारों की बात करें, लेकिन दुनिया का एक देश अभी ऐसा भी है जहां महिला होना ही अपराध है।
क्या आपको लगता है कि भविष्य में अफगानिस्तान की सड़कों पर एक भी लड़की नहीं दिखेगी।
अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
Image Credit: Reuters/ Shutterstock
Source:
Women International Security Report
Afghan Women in 20th Century Report
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों