आपके शहर में Heat Wave चल रही है या नहीं? ऐसे करें पता, जानें IMD कैसे करता है हीटवेव की भविष्यवाणी

How To Identify Heat Wave: हीटवेव तब घोषित की जाती है जब किसी क्षेत्र में लगातार तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है। भारत में यह आमतौर पर मार्च से जून के बीच देखने को मिलती है और कभी-कभी जुलाई की शुरुआत तक भी बनी रहती है। आइए इसी के साथ जानते हैं कि IMD हीटवेव की भविष्यवाणी कैसे करता है।
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How To Identify Heat Wave: भारत में गर्मियों के मौसम में लू एक आम समस्या है, लेकिन यह ज्यादा हो जाए, तो खतरनाक समस्या बन जाती है। कई बार तापमान इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त होने लगता है और स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। देश के कई राज्यों में गर्मी ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया है।

भारतीय मौसम विभाग ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों के लिए दो दिनों पहले ही लू (हीटवेव) का अलर्ट जारी किया है। दिल्ली का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुका है, तो वहीं राजस्थान के बाड़मेर में यह 47 डिग्री तक पहुंच गया था। हालांकि, अभी कई राज्यों में मौसम ने करवट ले ली है। अब सवाल यह उठता है कि मौसम विभाग इसे कैसे ट्रैक करता है। ऐसे में ये जानना बेहद जरूरी है कि आपके शहर में हीटवेव चल रही है या नहीं, और भारतीय मौसम विभाग इसका पूर्वानुमान कैसे लगाता है।

कैसे पता करें हीटवेव चल रही है या नहीं?

How imd predicts heatwave

अगर आप जानना चाहते हैं कि आपके शहर में लू चल रही है या नहीं, तो मौसम विभाग की आधिकारिक वेबसाइट या सोशल मीडिया अकाउंट्स पर जारी बुलेटिन को चेक कर सकते हैं। इन बुलेटिन्स में तापमान, ह्यूमिडिटी और अन्य जरूरी आंकड़ों की जानकारी दी जाती है।

IMD के अनुसार, किसी भी स्थान पर लू की स्थिति तापमान के स्तर से तय की जाती है। मैदानी इलाकों में यदि अधिकतम तापमान 40 डिग्री या उससे अधिक पहुंच जाए, तो वहां हीटवेव मानी जाती है। जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में यह सीमा 30 डिग्री होती है।तटीय क्षेत्रों जैसे मुंबई आदि के लिए यह मानक थोड़ा अलग है। यहां यदि अधिकतम तापमान सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो जाए, तो उसे हीटवेव की स्थिति माना जाता है।

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IMD कैसे करता है हीटवेव की भविष्यवाणी?

heatwave prediction rule

मौसम विभाग हीटवेव की भविष्यवाणी के लिए कई उन्नत तकनीकों और मॉडल्स का इस्तेमाल करता है। इनमें वेदर रिसर्च फॉरकास्टिंग (WRF), ग्लोबल फॉरकास्टिंग सिस्टम (GFS), और ग्लोबल एनसेंबल फॉरकास्ट सिस्टम (GEFS) शामिल हैं। इन सभी मॉडल्स की मदद से संभावित हीटवेव की पहचान पहले ही कर ली जाती है। यह पूरी प्रक्रिया पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन आती है। इसके अलावा, मौसम विभाग कुछ अंतरराष्ट्रीय मॉडल्स का भी सहारा लेता है, जिससे पूर्वानुमान और भी सटीक हो सके।

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Image credit- Freepik


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