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how different is maha kumbh from ardha purna and simhastha kumbh

Maha Kumbh 2025: अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से कितना अलग है महाकुंभ?

महाकुंभ का आरंभ अब जल्द ही होने जा रहा है। अब ऐसे में सवाल है कि अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से महाकुंभ कितना अलग है। इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2024-11-26, 23:00 IST

हिंदू धर्म में महाकुंभ मेला सभी भक्तों की आस्था और संस्कृति को दर्शाता है। महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में चार पवित्र स्थानों पर किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल पौष माह की पूर्णिमा तिथि के दिन महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है। इसी दिन से शाही स्नान की शुरुआत होती है। आपको बता दें, इस साल महाकुंभ मेला साल 2025 में लगने जा रहा है। जिसे लेकर जोरो-शोरों से तैयारियां आरंभ हो चुकी हैं। अब ऐसे में महाकुंभ मेला अर्घकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से कितना अलग है। इसके बारे में विस्तार से ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से जानते हैं।

अर्धकुंभ का महत्व क्या है?

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अगर बात करें अर्धकुंभ की, तो अर्ध से आशय है आधा। आपको बता दें, हरिद्वार और प्रयागराज में हर छह सालों में कुंभ मेले के बीच अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। जिसे छोटे स्तर का कुंभ माना जाता है।

पूर्णकुंभ का महत्व क्या है?

पूर्णकुंभ हर 12 सालों में आयोजित होता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 साल के बराबर होते हैं। इसी कारण 12 साल में पवित्र स्थल पर पूर्णकुंभ का आयोजन किया जाता है। पूर्णकुंभ हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है।

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सिंहस्थ कुंभ का महत्व क्या है?

सिंहस्थ कुंभ विशेष रूप से नासिक और उज्जैन में ही आयोजित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से है। वहीं जब बृहस्पति सिंह राशि में सूर्य मेष राशि में होता है, तभी इन स्थानों पर सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है।

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महाकुंभ मेले का महत्व क्या है?

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महाकुंभ केवल प्रयागराज में हर 144 वर्षों के अंतराल में आयोजित होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कुल 12 कुंभों में से 4 कुंभ धरती पर होता है और बाकी 8 का आयोजन देवलोक में किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति एक खास स्थिति में होते हैं। तब इन स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है। महाकुंभ मेला 144 वर्षों में से एक बार प्रयागराज में आयोजित होता है। ऐसी मान्यता है कि महाकुंभ में साक्षात देवता धरती पर शाही स्नान करने के लिए आते हैं। जिसके कारण शाही स्नान की महत्ता अधिक है।

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