भगवान श्री गणेश का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। इसी तिथि को गणेश चतुर्थी के नाम से मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी 7 सितंबर, दिन शनिवार को पड़ रही है। गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा अपने वाहन चूहे पर विराजमान होकर घरों में आशीर्वाद देने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की कथा जितनी सुनी जाए उतना ही भाग्य चमकने लगता है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि आखिर कैसे सिर्फ चूहे को ही गणेश जी ने अपना वाहन कैसे चुना और क्या है इससे जुड़ी रोचक कथा। आइये आपको भी बताते हैं इस बारे में।
असुर गजमुख बना था गणेश जी का वाहन
- पहली कथा के अनुसार गजमुख नाम का असुरों का महाराजा हजारों युगों पहले सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था। साथ ही वह बहुत शक्तिशाली और धनवान बनना चाहता था। उसे यह वरदान मिल जाए इसलिए वह अपना महल और राज्य छोड़ कर जंगल में जा कर शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए बिना भोजन खाएं दिन-रात तपस्या करने लगा।
- कई साल बीत गए फिर शिवजी उसकी तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए और शिवजी ने उसकी भक्ति को देखकर उसे कई शक्तियां प्रदान कर दी थी। जिससे वह बहुत ताकतवर और शक्तिशाली बन गया था। सबसे अलग ताकत जो शिवजी ने उसे प्रदान करी वह यह थी कि उसे किसी भी अस्त्र या शस्त्र से नहीं मारा जा सकता था।
- असुरों के राजा गजमुख को अपनी शक्तियों पर घमंड होने लगा। जिसके बाद उसने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया था। उसने देवी-देवताओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। गजमुख हमेशा से यही चाहता था कि हर देवता उसका ही पूजन करें।
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- सभी देवताओं में से ब्रह्मा, विष्णु, शिव, और गणेश जी ही सिर्फ गजमुख के इस रूप के आतंक से बचे हुए थे। अपने जीवन की रक्षा के लिए सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और उनसे इस समस्या का उपाय करने को कहा था। गजमुख के आतंक से सबकी रक्षा करने के लिए शिव जी ने गणेश जी को असुर गजमुख को रोकने के लिए भेजा था।
- फिर गणेश जी ने युध्य में असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन गजमुख ने हार नहीं मानी। आपको बता दें कि गजमुख जब गणेश जी की तरफ आक्रमण करने के लिए दौड़ा तब उसने स्वयं को एक चूहे के रूप में बदल लिया लेकिन गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के लिए चूहे में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए उसे अपने साथ रख लिया।
- इसके बाद गजमुख भी श्री गणेश जी के शरण में आ गया और उनका प्रिय मित्र भी बन गया।
क्रौंच बना था गणेश जी का वाहन
- एक प्रचलित लोक कथा के अनुसार आधा राक्षस और आधा देवता वाली प्रवृत्ति वाला नर एक क्रौंच था। एक समय की बात है जब भगवान इन्द्र ने अपनी सभा में सभी मुनियों और राजाओं को बुलाया था और इस सभा में क्रौंच को भी निमंत्रण दिया था। लेकिन इस सभा में गलती से क्रौंच ने अपना पैर एक मुनि के पैरों पर रखा दिया।
- इस बात से अत्यंत क्रोधित होकर उस मुनि ने क्रौंच को चूहा बनने का श्राप दिया था। उस क्रौंच ने मुनि से कई बार क्षमा भी मांगी लेकिन मुनि ने अपना श्राप वापिस नहीं लिया।
- पर मुनि का जब क्रोध शांत हुआ तब उन्होंने उस क्रौंच को एक वरदान दिया। इस वरदान को देते वक्त उन्होंने कहा कि आने वाले समय में वो भगवान शिव और पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी की सवारी बनेगा।
- आपको बता दें कि क्रौंच कोई छोटा चूहा नहीं था बल्कि एक विशाल और बहुत मोटा चूहा था जो कुछ ही मिनटों में पहाड़ तक को कुतर डालता था। इसकी वजह से वन में रहने वाले मुनियों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता था।
- एक बार उसी विशाल चूहे ने महर्षि पराशर की कुटिया भी बर्बाद कर डाली थी। लेकिन महर्षि पराशर ने भगवान श्री गणेश जी का ध्यान कर रहे थे। वहां मौजूद सभी ऋषियों ने उसे भगाने का बहुत प्रयास किया लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। इस समस्या को खत्म करने के लिए वो सभी ऋषि भगवान शिव के पास गए और उनसे मदद मांगी।
- शिव जी ने फिर गणेश जी को भेजा और तब गणेश जी ने चूहे को पकड़ने के लिए एक मोटा फंदा फेंका। इस फंदे ने चूहे को तुरंत अपने कब्जे में कर लिया था। आपको बता दें कि गणेश जी ने इस तबाही के पीछे का कारण जानने के लिए चूहे से प्रश्न किया लेकिन उस चूहे ने कोई जवाब नहीं दिया। फिर गणेश जी ने चूहे से बोला कि अब तुम मेरी शरण में हो इसलिए जो तुम्हारी इच्छा हो वो मांग सकते हो।
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- इस पर उस विशाल चूहे ने कहा कि 'मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए लेकिन हां अगर आप चाहें तो मुझसे कुछ मांग सकते हैं'। जब गणेश जी ने उसका घमंड देखा तो गणेश जी ने चूहे से कहा कि वो उसकी सवारी करना चाहते हैं। चूहे ने अपने घमंड में चूर होकर उनकी बात मान ली और फिर वह गणेश जी की सवारी बनने को तैयार हो गया लेकिन जैसे ही गणेश जी उस चूहे के ऊपर बैठे वो उनके भारी वजन से दबने लगा।
- चूहे ने बहुत कोशिश भी करी की वह उनके भार से न दबे लेकिन गणेश जी ने उसे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ने दिया।
- तभी उस चूहे का घमंड खत्म हो गया और उसने गणेश जी से क्षमा भी मांगी। गणेश जी ने उसकी क्षमा को स्वीकार कर लिया और अपने लिए उसे वाहन चुना इसलिए मूषक ही फिर गणेश जी की सवारी बन गया।
तो यह थी गणेश जी से जुड़ी हुई जानकारी।
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Image credit- freepik/unsplash
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