महिलाओं का खतना एक बहुत ही गंभीर विषय है जिसे लेकर आए दिन चर्चा होती रहती है। वो महिलाएं जो इससे होकर गुजरी हैं उन्हें इसका दर्द जिंदगी भर झेलना पड़ता है। ये प्रथा क्रूर ही नहीं आसामाजिक भी है, लेकिन गम की बात ये है कि इस प्रथा के विरोध में ज्यादातर आवाज नहीं उठती हैं। इसके पहले भी हम फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन पर चर्चा कर चुके हैं। स्टोरी करने के बाद जिन कमेंट्स को मैंने सुना उन्हें सुनकर मैं हैरान रह गई। दरअसल, कई लोगों को ये लगता है कि खतने का ये रिवाज विदेशी है और भारत में तो ये होता ही नहीं है।
ये एक मिथक है कि भारत में महिलाओं का खतना नहीं होता है। दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की महिलाएं आज भी इस दंश को झेल रही हैं। इसके खिलाफ कई मुहिम भी चलाई गई हैं, लेकिन सच्चाई को छुपाया नहीं जा सकता है।
जो लोग ये समझते हैं कि ये पुरुषों के खतने की तरह ही होता है उन्हें मैं बता दूं कि ये उससे 100 गुना ज्यादा भयावह और खतरनाक होता है। इससे महिलाओं की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि इसके कारण तो उन्हें कई बीमारियां हो जाती हैं।
पुरुषों का खतना जिस तरह से होता है उससे उन्हें कई तरह के इन्फेक्शन से बचाया जा सकता है। उनके जेनिटल एरिया की स्किन के ऊपरी हिस्से को निकाला जाता है, लेकिन महिलाओं के साथ ऐसा नहीं है। महिलाओं का खतना जिसे धार्मिक भाषा में खफ्ज़ (Khafz) कहा जाता है वो धार्मिक किताब दैम-उल-इस्लाम (Daim ul Islam) पर आधारित है। इसमें क्लिटोरिस का ऊपरी हिस्सा हटा दिया जाता है। कई मामलों में तो पूरी की पूरी आउटर वेजाइना को ही हटा दिया जाता है।
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इसे ना तो मेडिकल सुपरविजन के अंतर्गत किया जाता है और ना ही इसके बाद कोई सुविधा दी जाती है। मेल म्यूटिलेशन में कुछ हेल्थ बेनेफिट्स तो होते हैं, लेकिन फीमेल म्यूटिलेशन से तो सिर्फ नुकसान ही होता है, लेकिन नुकसान तो महिलाओं का हो रहा है इसलिए नियम बनाने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता।
इस प्रैक्टिस के खिलाफ कई महिलाएं अपनी आवाज उठा रही हैं। UNICEF की कई स्टडीज ये बताती हैं कि अब इसका विरोध दुनिया भर में हो रहा है।
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मदरहुड हॉस्पिटल खारगर मुंबई की कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रीशियन और गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर सुरभि सिद्धार्थ कहती हैं, "यह कोई फॉरेन कॉन्सेप्ट नहीं है। FGM भारतीय कम्युनिटीज में भी फॉलो किया जाता है। अधिकतर 6 से 7 साल की लड़कियों की क्लिटोरिस को काट दिया जाता है। यह बहुत ही दर्दनाक होता है।"
हमने डॉक्टर सुरभि से यह भी जानने की कोशिश की कि आखिर इस प्रोसेस को क्यों किया जाता है? उन्होंने कहा, "यह लड़कियों में सेक्सुअल प्लेजर को कम करने या रोकने के लिए किया जाता है। यह कई लड़कियों के लिए जिंदगी भर की बीमारी का कारण भी बन जाता है। भारतीय समाज में इसे जुर्म नहीं माना जाता है, लेकिन ऐसी प्रैक्टिस को रोकना चाहिए। इससे ना सिर्फ लड़कियों को दर्द भरे पीरियड्स होते हैं, बल्कि डिलीवरी के समय भी कई सारी समस्याएं होती हैं। बतौर डॉक्टर मैं यही चाहूंगी कि ऐसी प्रैक्टिस को बैन कर दिया जाए।"
सबसे बड़े दुख की बात तो ये है कि जब किसी लड़की के साथ जेनिटल म्यूटिलेशन होता है उसे कई तरह के हेल्थ रिस्क भी झेलने होते हैं। सबसे पहले तो मैं आपको बता दूं कि इस तरह के प्रोसेस को अंजाम देने वाली कोई मिड वाइफ या फिर नॉन-मेडिकल नर्स करती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने FGM (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन) को नॉन-मेडिकल कहकर डिस्क्राइब किया है। यहां महिलाओं के जेनिटल्स को अलग-अलग तरह से काटा जाता है। इसे करने का कोई भी मेडिकल कारण नहीं है।
FGM अधिकतर चाकू, कैंची, स्केलपल, कांच के टुकड़ों या रेजर ब्लेड से किया जाता है। महिलाओं का खतना चार तरह से किया जाता है।
1. क्लिटोरिडेक्टोमी (clitoridectomy)
इस प्रोसेस में क्लिटोरिस के कुछ हिस्से या पूरी की पूरी क्लिटोरिस को ही निकाल दिया जाता है।
2. छंटाई (excision)
इस प्रोसेस में ना सिर्फ क्लिटोरिस को अलग किया जाता है बल्कि इनर लीबिया (वेजाइना के आस-पास मौजूद लिप्स जिसे फोरस्किन भी कहते हैं) को भी हटा दिया जाता है। इस प्रोसेस में अंदरूनी लीबिया को ही हटाया जाता है। बाहरी वेजाइनल लिप्स को छेड़ा नहीं जाता।
3. इनफिब्यूलेषन (infibulation)
इस प्रोसेस में वेजाइनल ओपनिंग को छोटा किया जाता है। एक सील बनाई जाती है जिसके लिए स्किन लीबिया को काटकर ही निकाली जाती है। यहां वेजाइनल ओपनिंग में टांके लगाए जाते हैं जिससे बेहद दर्द होता है। इसका एक तरीका ये भी होता है कि पूरा का पूरा एक्सटर्नल जेनेटीलिया ही हटा दिया जाए और वेजाइनल ओपनिंग को सिल दिया जाए।
4. चोटिल करना (Pricking, Piercing)
इस प्रोसेस में वेजाइनल ओपनिंग या फिर क्लिटोरिस को या तो काटा जाता है या फिर उसमें छेद किया जाता है। कुछ गंभीर मामलों में तो इस हिस्से को जलाया भी जाता है। कुछ जगहों पर इसे छील दिया जाता है।
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महिलाओं का खतना बचपन में ही किया जाता है। 2-3 साल से लेकर 15 साल की उम्र तक ये कर दिया जाता है। इसे सेक्सुअल इच्छाओं को रोकने का एक तरीका माना जाता है। प्यूबर्टी के शुरू होने से पहले ही इसे करना सही समझा जाता है।
ये धार्मिक महत्व रखता है, लेकिन क्या वाकई इसकी जरूरत है? UNICEF की रिपोर्ट मानती है कि दुनिया भर में 2 करोड़ से ज्यादा लड़कियां ऐसी हैं जिन्हें किसी ना किसी तरह का खतना झेलना पड़ा है। हालांकि, ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों के खिलाफ माना जाता है।
ये सिर्फ फिजिकल वायलेंस नहीं करता। इसके कारण लड़कियों को जिंदगी भर का साइकोलॉजिकल ट्रॉमा भी हो जाता है।
इसका जवाब है, हां। महिलाओं के जेनिटल म्यूटिलेशन का प्रोसेस उनकी मौत का जिम्मेदार भी हो सकता है। इससे कई मामलों में लॉन्ग टर्म कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं। UNICEF की रिपोर्ट मानती है कि इसके कारण हैमरेज, शॉक, इन्फेक्शन, HIV ट्रांसमिशन, यूरिनरी रिटेंशन और बेहिसाब दर्द हो सकता है।
वयस्क होने पर लड़कियां इनफर्टिलिटी से भी जूझ सकती हैं। इसके साथ, डिलीवरी के दौरान पोस्ट पार्टम हेमरेज भी हो सकता है। डिलीवरी के बाद मौत भी हो सकती है और पैदा हुए बच्चे को भी खतरा हो सकता है।
साइकोलॉजिकल समस्याओं की बात करें तो इसके बाद कोई लड़की अपने परिवार पर भरोसा करने से भी कतरा सकती है। उसे जिंदगी भर के लिए एंग्जाइटी और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
खतना किस तरह से किया जाता है उसके बारे में सुनकर शायद आपको बहुत अजीब लग रहा हो। जिस तरह से महिलाओं का खतना किया जाता है वो ये बताता है कि हम किसी भी बेरहमी को रिवाज का नाम दे सकते हैं। खुद दाउदी बोहरा समाज की महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं। भारत के अलावा, दुनिया में कई देश तो ऐसे हैं जहां 90% महिलाओं का खतना हुआ है। कई देशों में ये मेडिकल ऑपरेशन की तरह किया जाता है।
खतना कहने को तो एक शब्द है, लेकिन कई महिलाओं के लिए ये जिंदगी भर का जख्म बन जाता है।
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Source: UNICEF Report, WHO FGM Study
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