बचपन से ही टीवी पर एक विज्ञापन देखकर मन में लालच आ जाता था। जी नहीं, ये किसी आइसक्रीम या टॉफी का विज्ञापन नहीं था। ये था उस फेयरनेस क्रीम का विज्ञापन जिसने मुझे ही नहीं, शायद मेरी मां को भी यही समझाया है कि 'फेयर' ही 'लवली' है। विज्ञापन भी कुछ ऐसे होते थे कि लगता था बस ये क्रीम मिल जाए तो मेरे जैसे लोगों की जिंदगी ही बदल जाएगी। चेहरे पर ये क्रीम लगा ली तो मेरी हर समस्या का समाधान हो जाएगा। मुझे बहुत आगे जाने को मिलेगा। टीवी के विज्ञापन में जब एक लड़की सांवली से गोरी होती थी तो ये देखकर बहुत अच्छा लगता था। उसपर न सिर्फ पूरा शहर ध्यान देने लगता था बल्कि वो अपने करियर में भी सफलता पा लेती थी।
अब ये उम्मीद की जा रही है कि बचपन से जो कुछ भी हमारे दिलों में भरा गया है उसका अंत हो जाएगा। मैं और मेरे जैसी करोड़ों लड़कियों ने ये सोचा होगा कि 'फेयर एंड लवली' क्रीम लगाने से गोरापन मिल जाता है। हिंदुस्तान यूनिलीवर ने कहा है कि वो अब अपने सबसे सफल प्रोडक्ट्स में से एक 'फेयर एंड लवली' से शब्द फेयर को हटा देगा। ये ही नहीं HUL की तरफ से एशिया में उन सभी प्रोडक्ट्स की रीब्रांडिंग की जाएगी जो फेयर, लाइटनिंग और ब्राइटेनिंग शब्द का इस्तेमाल करते हैं।
We’re committed to a skin care portfolio that's inclusive of all skin tones, celebrating the diversity of beauty. That’s why we’re removing the words ‘fairness’, ‘whitening’ & ‘lightening’ from products, and changing the Fair & Lovely brand name.https://t.co/W3tHn6dHqE
— Unilever #StaySafe (@Unilever) June 25, 2020
खबर अच्छी है, दिल को सुकून देती है, लेकिन काफी नहीं है। यकीनन भारतीय कल्चर में फेयर शब्द को बड़ा महत्व दिया जाता है। जिस तरह का 'गोरा कॉम्प्लेक्स' भारतीय समाज में है उस तरह का कॉम्प्लेक्स शायद ही कहीं हो।
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क्या कभी ऐसी मिस इंडिया बनी है जो 'फेयर' न रही हो?
यहां फेयर शब्द से मतलब है कि एक तय पैमाने पर खूबसूरती को नापना। इससे पहले कि आप लारा दत्ता या अनुकृति वास का नाम मुझे बताएं, मैं आपको कुछ याद दिलाना चाहूंगी। मिस यूनिवर्स 2019 प्रतियोगिता में जब जोजिबिनी टुंजी को क्राउन पहनाया गया था तो सोशल मीडिया पर भारतीयों ने कैसे कमेंट्स किए थे? या फिर जब नीना दावुलुरी 2014 में मिस अमेरिका बनी थीं, तो भारत में क्यों बहस छिड़ गई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लड़कियां भारतीय मिस इंडिया बनने के लिए बहुत डार्क थीं।
हम गर्व से ये तो कहते हैं कि हम भारतीय हैं, लेकिन क्या कभी सोचा है कि रेसिसम के मामले में भारत कितना आगे है। ये तो वही बात हो गई कि अंग्रेज चले गए, लेकिन गोरा कॉम्प्लेक्स छोड़ गए।
फेयर एंड लवली के विज्ञापनों की गलती-
फेयर एंड लवली के विज्ञापनों की भी बहुत बड़ी गलती है। जब रोड पर चलते हुए होर्डिंग दिखती है जिसमें लिखा है 'गोरापन नहीं साफ गोरापन' तो यकीनन मन में एक सवाल तो आता है, क्या मैं भी सुंदर हूं, क्या मैं भी गोरी हूं? 1975 से 'फेयर एंड लवली' को लेकर यही विज्ञापन देखने को मिलते हैं। लड़की 'फेयर एंड लवली' लगाकर कभी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करती है, कभी पायलट बन जाती है, कभी डॉक्टर बन जाती है, तो कभी क्रिकेट कमेंटेटर बन जाती है।
ये सब कुछ सिर्फ इसलिए होता है क्योंकि लड़की गोरी होती है। हिंदुस्तान यूनिलीवर की इस फेयरनेस क्रीम ने पिछले 45 सालों से लोगों को ये यकीन दिलाया है कि भइया फेयर रहोगे तो ही लवली बनोगे।
Fair & Lovely Is Now Lovely Only.
— Ruchit Kukadiya (@ruchitkukadiya) June 25, 2020
Me To #FairandLovely pic.twitter.com/MHZ7MNrmmx
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अमेरिका में #BlackLivesMatter यहां फेयरनेस क्रीम पर बहस-
अमेरिका में #BlackLivesMatter जैसा एक मूवमेंट होता है। इस मौके पर भारत में भी बहस छिड़ती है और आखिरकार भारत की सबसे रेसिस्ट क्रीम के नाम में बदलाव किया जाता है। रंगभेद को दिखाते हमारे समाज में ये बहुत बड़ी भ्रांति है कि यहां पर नाम को ही बहुत महत्व दिया जाता है। शेक्सपियर ने भले ही कहा हो कि 'नाम में क्या रखा है', लेकिन भारतीय समाज में सिर्फ सरनेम पर ही कई विवाद हो जाते हैं। ऐसे में नाम का महत्व तो ज्यादा है ही।
पर क्या नाम बदलने से ये क्रीम बदल जाएगी? जिसे हमेशा से ही स्किन लाइटेनिंग क्रीम के तौर पर प्रमोट किया गया था। 45 साल से इस ब्रांड ने जो अपनी लॉयल्टी बनाई है वो सिर्फ इसलिए बन पाई है क्योंकि भारत में फेयरनेस की चाह रखने वालों की कमी नहीं है।
The un-'fairness' of it all. If it's still a 'fairness' cream, doesn't matter what you're calling it. Also, renaming or removing some words, won't erase the deep-rooted biases that have been perpetuated for generations because of such products #FairandLovely https://t.co/SbNCT7lati
— Arunoday Mukharji (@ArunodayM) June 25, 2020
क्या इसे रीब्रांड करने से सब कुछ ठीक हो जाएगा?
देखिए मैं आपको बता दूं कि भारत में 5000 से 10000 करोड़ के बीच सिर्फ फेयरनेस क्रीम इंडस्ट्री का कारोबार है। Moneycontrol की एक रिपोर्ट कहती है कि इसमें से 70-80 प्रतिशत मार्केट 'फेयर एंड लवली' का है। 4100 करोड़ टर्नओवर तो सिर्फ भारत से आता है और फिर ये क्रीम बंगलादेश, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, इंडोनेशिया में भी बिकती है। इसलिए सिर्फ रीब्रांडिंग से सब कुछ ठीक होने की गुंजाइश नहीं है।
#FairandLovely
— Shubham Mohapatra | शुभम महापात्रा (@SM__TWEET) June 25, 2020
Hindustan Unilever to stop using 'Fair' in 'Fair & Lovely' brand.
*Meanwhile Hindustan Unilever limited (HUL): pic.twitter.com/Lw8yRwWH4m
ये पूरा मामला ही गोरे कॉम्प्लेक्स पर टिका हुआ है। अब खुद ही सोचिए, क्या सिर्फ रीब्रांडिंग इस समस्या का हल निकाल पाएगी?
जहां आज भी मैट्रिमोनियल साइट्स में 'गोरा' और 'सांवला' एक रेट कार्ड की तरह देखा जाता है और लड़कियों को ही नहीं बल्कि लड़कों को भी इसी पैमाने में रखा जाता है, तो फिर कैसे कोई ये उम्मीद कर सकता है कि सिर्फ फेयर एंड लवली के नाम को बदलने से ही सब ठीक होगा।
स्किन लाइटेनिंग, स्किन ब्राइटेनिंग ब्रांड्स तो छोड़िए लोग देसी नुस्खे भी आजमाते हैं अपनी स्किन को गोरा करने के लिए। ऐसे में हिंदुस्तान यूनिलीवर की ये पहल काफी नहीं है।
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