गणेश चतुर्थी आने वाली है और इस बार गणपति पूजा में कुछ नया होने वाला है। दरअसल, देश के सबसे चर्चित गणेश पंडाल यानी 'लालबाग के राजा' (Tejukaya Ganpati Mandal) ने ईको-फ्रेंड्ली गणपति स्थापित करने के बारे में सोचा है। ये गणपति प्लास्टर ऑफ पेरिस या प्लास्टिक, थर्माकॉल से नहीं बनेंगे बल्कि ये न्यूजपेपर, रुई और मिट्टी आदि के इस्तेमाल से बनाए जाएंगे। यही नहीं सजावट के लिए भी सारा ईको-फ्रेंड्ली सामान इस्तेमाल किया जाएगा।
यहां तक कि इस पंडाल में श्रद्धालुओं को भी अगरबत्ती और फूल लाने को मना किया गया है, उसकी जगह ये कहा गया है कि पेंसिल, पेन, नोटबुक आदि लोगों को दान दी जाए। ये पंडाल 53 सालों से सबसे बड़े गणपति विराजित करता है। इस साल भी 22 फिट की मूर्ति होगी, लेकिन पूरा पंडाल और मूर्ति ईको फ्रेंड्ली।
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ईको फ्रेंड्ली गणेश प्रतिमाएं ऐसी होती हैं जो नैचुरल फाइबर, मिट्टी, ईको फ्रेंड्ली रंग आदि से बनी होती है जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है। ऐसी गणेश प्रतिमाएं अगर घर में रखी जाएं तो आराम से उन्हें बाल्टी में भी विसर्जित किया जा सकता है।
अगर आप भी अपने घर में ईको-फ्रेंड्ली गणपति की मूर्ति लाना चाहती हैं तो आपका फैसला बहुत सही है। ये मूर्तियां आस-पास के पानी को दूषित होने से बचाएंगी और इसके कारण आपको सही मायने में फायदा होगा।
पहले ये देखें कि मूर्ति का मटेरियल क्या है। मिट्टी, पेपर आदि तो ठीक, लेकिन उनमें कैमिकल वाले रंग इस्तेमाल हुए हैं या फिर ईको-फ्रेंड्ली रंग। इसी के साथ, सजावट के लिए क्या-क्या इस्तेमाल किया जा रहा है। ये सब कुछ आपको सोचना होगा। ईको-फ्रेंड्ली गणपति की मूर्ति ऐसी होनी चाहिए जिसे आसानी से घर की बाल्टी में भी विसर्जित कर सकें। इसके लिए कच्ची मिट्टी के गणपति काफी अच्छे होंगे जो बहुत आसानी से पानी में मिल जाते हैं। अगर आप अपने लिए ये गणपति खरीदना चाहती हैं तो यहां क्लिक करें।
ऐसी मूर्तियां भी आती हैं जिन्हें अगर किसी गमले में विसर्जित किया जाए तो उसके बाद उनसे पेड़ भी उग जाए। ऐसी मूर्ति के अंदर पेड़ों के बीज होते हैं। ऐसे में उन्हें आराम से गमले में विसर्जित कीजिए और मिट्टी में पानी डालते रहिए थोड़े दिनों बाद एक पौधा बनकर वो निकलेंगे। अगर आप भी अपने लिए ऐसी कोई मूर्ति खरीदना चाहती हैं तो यहां क्लिक कीजिए।
ये थोड़े महंगे हो सकते हैं, लेकिन पर्यावरण के लिए बिलकुल सही होंगे।
इस तरह की मूर्तियों का फैशन भी अब आ गया है और यकीन मानिए ये पर्यावरण के लिए बहुत फायदेमंद हैं। ये मुल्तानी मिट्टी वाली मूर्तियां हल्दी और कुमकुम से कलर की जाती हैं और ये गणपति न सिर्फ आप आराम से विसर्जित कर सकते हैं बल्कि इनमें रंगों का ही इस्तेमाल नहीं होता है इसलिए इससे किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी।
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सिर्फ मिट्टी के गणेश नहीं बल्कि ड्राई-फ्रूट्स और अनाज के गणपति भी विराजित किए जा सकते हैं। ये गणपति आपको बहुत आसानी से मिल जाएंगे, हालांकि ये भी थोड़े महंगे होते हैं। ऐसे गणपति विसर्जित भी हो जाते हैं और उसके साथ ही साथ ये अगर नदी या समुद्र में विसर्जित हो रहे हैं तो ये मछलियों का खाना भी बन सकते हैं। अगर आप ऐसे गणपति खरीदना चाहती हैं तो यहां क्लिक करें।
ये बात भी ध्यान रखें कि अगर आप गणेश की मूर्ति ले रही हैं तो उसके साथ सजावट के लिए भी ईको फ्रेंड्ली सामान ही इस्तेमाल करें। अगर ऐसा नहीं होता है तो पर्यावरण की रक्षा करने वाली आपकी गणपति पूजा थोड़ी फीकी रह जाएगी। सजावट के लिए भी प्लास्टिक या थर्माकॉल का इस्तेमाल न करें। ताज़ा फूलों और कागज की डेकोरेशन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा अच्छा रहेगा।
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