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SC Rules on Muslim Women Rights: सुप्रीम कोर्ट ने लिया मुस्लिम महिलाओं के हक में बड़ा फैसला, तलाकशुदा महिलाएं ले सकती हैं अपने पति से गुजारा भत्ता

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि गुजारा भत्ता केवल दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। 
Editorial
Updated:- 2024-07-10, 16:59 IST

सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने की हकदार होंगी।

जस्टिस बी.वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शाहबानो मामले में एक याचिका खारिज कर दी, जिसमें व्यक्ति ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत अपनी तलाकशुदा पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण देने के निर्देश के खिलाफ याचिका दायर की थी। इस बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि पूर्ववर्ती सीआरपीसी की धारा 125, जो पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है, यह मुस्लिम महिलाओं को भी कवर करती है।

Can divorced Muslim woman file for maintenance under section  CrPC Supreme Court to consider

गुजारा भत्ता केवल दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का है अधिकार

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि गुजारा भत्ता केवल दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। यह फैसला सभी समुदाय की महिलाओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है और यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा।

जस्टिस बी.वी नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा, "हम इस याचिका पर निष्कर्ष के साथ आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर।"

द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका खारिज कर दी, जिन्होंने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें पारिवारिक न्यायालय के भरण-पोषण आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था।

तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना

उन्होंने यह तर्क दिया है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं है और उसे मुस्लिम महिला यानी तलाक पर अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना होगा।

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कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के मुताबिक यह एक ऐतिहासिक फैसला है

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए, कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि यह महिलाओं के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। 

इस पर सुप्रीम कोर्ट के वकील शादाब नकवी कहते हैं कि यह एक ऐतिहासिक फैसला है, जो अनुच्छेद 14 में दी गई समानता की भावना को कायम रखने में मदद करेगा। यह फैसला उन महिलाओं के लिए विशेष रूप से खास है, जो अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति के कारण सबसे अधिक प्रभावित हुई हैं। तलाक के बाद, इन महिलाओं को अक्सर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने में मदद करेगा और उन्हें एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देगा।

वहीं, इस विषय पर पुणे में मौजूद सेंटर फॉर लर्निंग रिसोर्सेज की हेड- रिसर्च और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सूफिया अज़मत, जिन्होंने बच्चों और महिलाओं के मुद्दों पर शिक्षण, शोध और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में अनुभव हासिल किया है। वे कहती हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बहुत जरूरतमंद लोगों को सीधा फायदा मिलेगा। इससे समुदाय में संघर्ष कर रहीं अकेली महिलाओं को आर्थिक संरक्षण मिल सकता है।

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इस फैसले को लैंगिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम मानी जाएगी। यह फैसला इस सिद्धांत को रेखांकित करता है कि व्यक्तिगत कानून संविधान में निहित मौलिक अधिकारों, खास तौर पर अनुच्छेद 21 यानी जीवन और सम्मान के अधिकार को खत्म नहीं कर सकते। यह पुष्टि करके कि मुस्लिम महिलाओं को अन्य धर्मों की महिलाओं की तरह भरण-पोषण का समान अधिकार है, न्यायालय ने इस धारणा को पुष्ट किया है कि महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा धार्मिक सीमाओं से परे है। 

यह ऐतिहासिक निर्णय न केवल तलाक के बाद सामाजिक कलंक और वित्तीय कठिनाई का सामना करने वाली मुस्लिम महिलाओं के लिए एक सुरक्षा जाल प्रदान करता है, बल्कि लैंगिक भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत संदेश भी देता है, जो अधिक समावेशी और न्यायसंगत कानूनी ढांचे को बढ़ावा देता है। 

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Image Credit- freepik

 

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