जब भी बात होती है सरकारी नीतियों, बजट या व्यापार की, तो दो शब्द बार-बार सुनने को मिलते हैं टैक्स और टैरिफ। पहली नजर में ये दोनों एक जैसे लगते हैं क्योंकि दोनों से सरकार को पैसा मिलता है, लेकिन इनके उद्देश्य, इस्तेमाल और असर अलग-अलग होते हैं। आमतौर पर, टैक्स देश के नागरिकों या बिजनेस से लिया जाता है, ताकि स्कूल, हॉस्पिटल, सड़क और जरूरी सेवाओं के लिए फंड जुटाया जा सके। वहीं, टैरिफ वह शुल्क होता है, जो सरकार विदेश सामानों पर लगाती है और इसका उद्देश्य अपने देश को उद्योगों की रक्षा करना और विदेशी सामान के कम बिकने देना है।
इस आर्टिकल में हम आपको टैक्स और टैरिफ के बीच का साफ फर्क और यह भी बताएंगे कि सरकार इन्हें कब और क्यों लगाती है।
टैक्स क्या होता है? (What is a Tax)
टैक्स यानी कर एक ऐसा पैसा है जो सरकार लोगों और कंपनियों से लेती है ताकि वो देश की जरूरी सुविधाओं जैसे–स्कूल, हॉस्पिटल, सड़क, पुलिस, आदि के लिए फंड इकट्ठा कर सके। यह देश के अंदर लागू होता है और सभी नागरिकों पर किसी न किसी रूप में असर डालता है।
टैक्स के कुछ प्रकार:
- इनकम टैक्स: आपकी कमाई पर लगता है, चाहे आप नौकरी करते हों या बिजनेस।
- सेल्स टैक्स: जब आप कोई सामान खरीदते हैं, तो उस पर लगता है।
- प्रॉपर्टी टैक्स: आपके घर या जमीन पर लगाया जाता है।
- एक्साइज टैक्स: शराब, सिगरेट और पेट्रोल जैसी चीजों पर लगाया जाता है।
सरकार टैक्स कब और क्यों लगाती है? (When and Why Taxes Are Imposed)
सरकार टैक्स लगाकर देश चलाती है। इसे नियमित रूप से और लंबे समय तक लिया जाता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं:
- सरकार स्कूल, सड़क और जरूरी सेवाओं को चलाने के लिए टैक्स वसूलती है। अगर बजट में घाटा होता है, तो टैक्स बढ़ाकर उस कमी को पूरा किया जाता है।
- जब अमीर लोगों से ज्यादा टैक्स लिया जाता है, तो गरीबों को राहत भी दी जाती है।
- अगर देश में महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ रही है या आर्थिक मंदी है, तो सरकार टैक्स की दरें बदलकर स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश करती है।
- कुछ टैक्स खास चीजों पर इसलिए लगाए जाते हैं, ताकि लोग उनका इस्तेमाल कम करें। जैसे- शराब, तंबाकू और पेट्रोल।
- सरकार कभी-कभी नए कानून बनाकर नए टैक्स लागू करती है या पहले से लगे टैक्स की दरों को घटा-बढ़ा देती है, ताकि अपने गोल्स पूरे कर सके।
टैरिफ क्या होता है? (What is a Tariff)
टैरिफ एक खास तरह का टैक्स होता है जो विदेश से आने या विदेश भेजे जाने वाले सामान पर लगाया जाता है। आमतौर पर ये इंपोर्ट (Import) पर लगाया जाता है।इसका मकसद सिर्फ पैसा इकट्ठा करना नहीं, बल्कि अपने देश की फैक्ट्रियों और उद्योगों को विदेशी सामान की प्रतियोगिता से बचाना होता है। जब किसी विदेशी चीज पर टैरिफ लगता है, तो वो महंगी हो जाती है और लोग घरेलू सामान खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं।
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टैरिफ के प्रकार:
- Ad Valorem Tariff– सामान की कीमत का एक प्रतिशत लिया जाता है। जैसे 1000 रु. के सामान पर 10% टैरिफ यानी 100 रु. टैक्स देना होगा।
- Specific Tariff– हर यूनिट पर तय रकम, जैसे 5 डॉलर प्रति टन गेहूं।
- Protective Tariff– घरेलू उत्पादकों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए।
- Revenue Tariff– जब सरकार का उद्देश्य सिर्फ राजस्व बढ़ाना हो।
सरकार टैरिफ कब और क्यों लगाती है? (When and Why Tariffs Are Imposed)
टैरिफ हर समय नहीं लगाए जाते। इन्हें खास परिस्थितियों में ही लागू किया जाता है:
- जब घरेलू उद्योग कमजोर हों और उन्हें विदेशी कंपनियों से नुकसान हो रहा हो।
- जब कोई देश गलत तरीके से टैरिफ लगाए, तो जवाब में भी दूसरा देश टैरिफ लगा सकता है।
- Trade Deals के दौरान टैरिफ का इस्तेमाल एक रणनीतिक हथियार की तरह होता है।
- कुछ देशों में अगर इनकम टैक्स की व्यवस्था कमजोर हो, तो सरकार टैरिफ से ही कमाई करती है।
क्या टैरिफ को टैक्स माना जा सकता है?
हां, तकनीकी रूप से टैरिफ एक तरह का टैक्स ही होता है, लेकिन ये अलग तरीके से काम करता है। टैक्स देश के अंदर लोगों और बिजनेस पर लगाया जाता है, जबकि टैरिफ सिर्फ उन सामानों पर लगता है जो देश की सीमा पार करते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि हर टैरिफ टैक्स है, लेकिन हर टैक्स टैरिफ नहीं है।
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Image Credit- freepik, social media
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