हिन्दू धर्म में छठ का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह त्यौहार मनाने का प्रचलन है। इस साल इस महापर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर के दिन से हो गई है और इसमें सबसे पहले दिन यानी चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के बाद दूसरे दिन 29 अक्टूबर को खरना और फिर तीसरे दिन यानी कि 30 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य की रस्म होगी।
छठ पूजा के दिन संध्या अर्घ्य को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। इस पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ पूजा का समापन हो जाता है। इस महापर्व का समापन इस साल 31 अक्टूबर को सुबह सूर्य को अगर देने के साथ हो रहा है। आइए ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस पर्व के दौरान संध्या अर्घ्य का क्या महत्व और और इसे क्यों ख़ास माना जाता है।
संध्या अर्घ्य कब देना लाभकारी होगा
इस साल 28 अक्टूबर से छठ महापर्व के आरंभ होने के बाद इसके तीसरे दिन 30 अक्टूबर को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा। संध्या काल का अर्घ्य 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 34 मिनट पर दिया जाएगा।
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संध्या अर्घ्य में क्या किया जाता है
इस छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के लिए प्रचलित होता है। इसमें व्रती महिलाएं पवित्र नदी के जल में या किसी कुंड में डुबकी लगाती हैं और सूर्य और छठी मैय्या की पूजा की जाती है। यह अर्घ्य संध्या काल के दौरान सूर्य को दिया जाता है (सूर्य को ही क्यों दिया जाता है अर्घ्य) और इसमें कुछ पवित्र मन्त्रों का जाप करके सूर्य का भक्ति भाव से पूजन किया जाता है। छठ पूजा के तीसरे दिन महिलाएं परिवार और संतान की दीर्घायु के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना करती हैं। सूर्यास्त के समय सूर्य के साथ लोकगीत गाए जाते हैं और प्रसाद के रूप में पारम्परिक व्यंजन सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं।
संध्या अर्घ्य का महत्व
छठ महापर्व के तीसरे दिन संध्या अर्घ्य के दौरान सूर्य देव की पूजा करने के साथ उन्हें जल या दूध का अर्घ्य दिया जाता है भगवान की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य देव के साथ छठ मैया की भी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ का व्रत करने और सूर्य को अर्घ्य देने से छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु का वरदान देती हैं।
संध्या अर्घ्य की विधि
छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या काल में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है और इसे विधि विधान से करने पर समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। संध्या अर्घ्य के लिए आप इस प्रकार पूजन कर सकती हैं।
- इस दिन प्रातः उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और मुट्ठी में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करें और शाम के समय नदी या तालाब में स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र धारण करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
- संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस की बड़ी टोकरी या 3 सूप लें और उसमें चावल, दीया, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सब्जी और अन्य सामग्री रखें।
- सभी पूजन सामग्रियों को टोकरी में सजा लें और सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें।
- पूजन के समय सूप में एक दीपक जरूर रखें।
- छठ का डाला सजाकर नदी या जल कुंड में प्रवेश करके सूर्य देव की पूजा करें और छठी मैया को प्रणाम करके सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इस विधि के साथ छठ महोत्सव में संध्या काल में सूर्य को अर्घ्य देने से और पूजन करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें। इसी तरह के लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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