भारतीय महिलाएं हर क्षेत्र में बेहतरीन प्रदर्शन से नया इतिहास रच रही हैं। खासतौर पर स्पोर्ट्स में पिछले एक दशक में महिलाओं ने अपनी शानदार परफॉर्मेंस से भारत को गौरवान्वित किया है। इसी कड़ी में भारत की कोनेरू हम्पी ने महिला वर्ल्ड रैपिड चैंपियन बनकर देश का नाम रोशन किया है। रूस के मॉस्को में चल रही महिला वर्ल्ड रैपिड शतरंज चैंपियनशिप चल रही थी और इसी में कोनेरू हंपी ने चीन की लेई टिंगजी को टाईब्रेकर सीरीज (आर्मेगेडोन मुकाबले) में हरा कर यह प्रतिष्ठित खिताब अपने नाम किया।
- कोनेरू हंपी ने चीन की टिंगजी को टाईब्रेकर सीरीज में हराकर जीता खिताब
- कोनेरू ने अंतिम गेम में बेहतर स्थिति में होने पर दर्ज की आसान जीत
- शतरंज के पूर्व वर्ल्ड चैंपियन विश्वनाथन आनंद ने दी कोनेरू को बधाई
हम्पी ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा, ‘तीसरे दिन का गेम शुरू होने के दौरान मैंने नहीं सोचा था कि मैं टॉप पर रहूंगी। मुझे लग रहा था कि मैं टॉप 3 में रहूंगी। मैंने गेम के टाई-ब्रेक तक पहुंचने की भी उम्मीद नहीं की थीं। मैं पहले गेम में हार गई थी, लेकिन दूसरे गेम में मैं वापसी करने में कामयाब रही। यह गेम काफी ज्यादा चैलेंजिंग था, लेकिन मैंने इसमें जीत हासिल की। आखिरी गेम में मैं बेहतर स्थिति में थी और इसके बाद मैं आसानी से जीत गई।’ कोनेरू हंपी अपनी जीत से काफी उत्साहित हैं। इस जीत के लिए उन्हें पूर्व विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद ने भी बधाई दी है।
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5 साल की उम्र से ही सीख रही हैं शतरंज
कोनेरू हंपी के पिता कोनेरू अशोक पूर्व शतरंज खिलाड़ी रह चुके हैं। उन्होंने अपनी बेटी नन्हीं कोनेरू को 5 साल की उम्र से ही शतरंज खेलना सिखा दिया। पिता ने कोनेरू को शतरंज खेलने वाली बहनों जूडिथ पोल्गर और सोफी पोल्गर के बारे में बताया और यहीं से कोनेरू ने एक खिलाड़ी के तौर पर अपनी परफॉर्मेंस बेहतर बनाने के लिए इंस्पायर हो गईं। कोनेरू ने यूएस चेज ट्रस्ट को साल 2011 में दिए इंटरव्यू में कहा था, 'मैंने जूडिथ से एक महत्वपूर्ण बात सीखी और वह यह कि किसी भी खिलाड़ी के साथ खेलते हुए डरना नहीं चाहिए।'
चेस चैंपियनशिप्स में रहीं अव्वल
जब हंपी 8 साल की थीं, तभी उनके पिता ने यूनिवर्सिटी जॉब छोड़ दी थी, ताकि वह अपने बेटी को सिखाने के लिए पूरा समय दे सकें। इसके कुछ ही समय बाद कोनेरू को सफलता मिलनी शुरू हो गई। कोनेरू ने अंडर 10, अंडर 12, अंडर 14 और अंडर 20 चैंपियनशिप्स जीतीं। 14 साल की उम्र तक आते-आते कोनेरू हंपी नंबर तीन रैंकिंग हासिल करने वाली महिला बन चुकी थीं। इस समय तक उन्होंने 2,539 Elo points हासिल कर लिए थे।
बचपन से ही बनीं चैंपियन
कोनेरू हंपी ने वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप में अंडर 10 गर्ल्स कैटेगरी में तीन गोल्ड मेडल हासिल किए हैं। इसके एक साल बाद उन्होंने अंडर 12 कैटेगरी में फिर से गोल्ड मेडल जीता। एशियन यूथ चेस चैंपियनशइप 1999 में उन्होंने लड़कों के विरुद्ध खेलते हुए अंडर -12 कैटेगरी में मैच जीता। इसके बाद 2000 में उन्होंने एक बार फिर से World Youth Chess Championship में अंडर-12 कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता। हंपी ने 2001 में वर्ल्ड जूनियर गर्ल्स चैंपियनशिप जीती। यही नहीं, कोनेरू हंपी ने इंटरनेशनल ग्रैंड मास्टर बनने की योग्यता हासिल करने वाली वह सबसे युवा महिला बनीं। उन्होंने चार साल तक यह रिकॉर्ड अपने नाम रखा। इसके अलावा भी जूनियर चैस चैंपियनशिप्स में विश्व नंबर 2 और नंबर 1 का खिताब उनके नाम रहा।
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