टीचिंग को महिलाओं के लिए सबसे अच्छा करियर ऑप्शन माना जाता है। अधिकतर घरों में पैरेंट्स लड़की को टीचर बनते ही देखना चाहते हैं। सामान्य व्यक्ति के लिए बच्चों को पढ़ाना बहुत आसान लगता है। यह ग़लतफ़हमी इस विचार से आती है कि टीचर को स्कूल की छुट्टियां मिलती हैं और उन्हें आधे दिन ही काम करता होता है।
जबकि यह सच्चाई से बहुत दूर है। यकीनन टीचिंग एक बेहतरीन करियर है, जिसमें आप हर दिन कुछ नया सीखते हो और दूसरों को सिखाते हो। लेकिन एक अच्छा टीचर बनना इतना भी आसान नहीं है। बतौर टीचर आपको सिर्फ क्लॉस में पढ़ाना ही नहीं होता है, बल्कि आपके पास अन्य भी कई तरह की जिम्मेदारियां भी होती हैं।
कहते हैं कि एक टीचर ही होता है, जो देश के भविष्य की नींव रखता है। इसलिए, एक टीचर के कंधों पर देश के भविष्य का भार होता है। ऐसे में उन्हें अपने प्रोफेशन में बहुत से चैलेंजेस का भी सामना करना पड़ता है। जिसके बारे में आज हम आपको इस लेख में बता रहे हैं-
एक क्लॉस में अक्सर बहुत सारे स्टूडेंट्स होते हैं। हर बच्चे को चीजों को समझने का तरीका अलग होता है। ऐसे में यह टीचर की जिम्मेदारी होती है कि वह हर बच्चे के लर्निंग स्टाइल को समझे और उसी के अनुसार पढ़ाए।
अगर एक टीचर सिर्फ किसी खास तरह से सभी बच्चों को पढ़ाता है, तो इससे कुछ बच्चों को समझने में समस्या हो सकती है और उनकी परफार्मेंस पर असर पड़ता है। ऐसे में हर बच्चे को समझकर सभी के अनुसार पढ़ाना इतना ही आसान काम नहीं है।
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हर बच्चे को समझने और उन्हें पढ़ाने के लिए जरूरी है कि बच्चे की समस्या, उसकी खूबियों व खामियों को समझा जाए। इसके लिए टीचर और बच्चे के बीच में इफेक्टिव कम्युनिकेशन होना बेहद जरूरी है।
लेकिन कई बार यह देखने में आता है कि बच्चे टीचर के साथ कंफर्टेबल फील नहीं करते हैं और अक्सर वे अपनी बात शेयर नहीं करते हैं। इसके अलावा, एक टीचर के लिए भी यह काफी चैलेंजिंग होता है कि वह हर बच्चे के साथ इतना इफेक्टिव तरीके से कम्युनिकेट कर सके।
एक टीचर को कई तरह के प्रेशर को झेलना पड़ता है। उन्हें सिर्फ बच्चों को ही अच्छी तरह से हैंडल नहीं करना होता, बल्कि स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन का भी उन पर अतिरिक्त दबाव रहता है। टीचर को अक्सर नई टीचिंग स्ट्रैटेजी अपनाने की सलाह दी जाती है। इतना ही नहीं, हर स्कूल अपनी परफार्मेंस में सबसे बेस्ट नजर आता है, जिसके कारण टीचर्स पर हमेशा ही एक अतिरिक्त दबाव बना रहता है।
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बहुत से लोग यह मानते हैं कि एक टीचर आधा दिन काम करता है और फिर उसे बाकी आधा दिन आराम करने का मौका मिल जाता है। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। टीचर अक्सर ही वर्कलोड के बोझ तले दबे रह जाते हैं।
उन्हें सिर्फ क्लॉस में बच्चों को पढ़ाना ही नहीं होता है, बल्कि इसकी तैयारी वे पहले से करते हैं। चैप्टर को तैयार करने से लेकर ग्रेड असाइनमेंट तक अपना अधिकतर काम वे घर पर भी करते हैं। कई बार तो उनके लिए अपनी वर्कलाइफ को बैलेंस करना भी काफी मुश्किल हो जाता है।
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