अगर आप सुबह उठकर अखबार पढ़ते हैं, न्यूज चैनल खोलते हैं या इंटरनेट पर कोई खबर देखते हैं, तो कितनी ही बार ऐसा होता है कि आपके सामने कोई ऐसा रेप या असॉल्ट केस आ जाता है जो आपको परेशान कर जाए? जरा सवाल को गौर से देखिए और सोचिए कि अब हम रेप और असॉल्ट जैसी वारदातों को लेकर इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि उसकी भी कैटेगरीज डिफाइन हो चुकी हैं। भारत में इतने रेप होते हैं कि अब कोई घटना हमें बड़ी नहीं लगती है, लेकिन उनमें से भी कुछ इतनी चौंकाने वाली होती हैं कि लोगों की आंखें खोल दे।
ऐसी ही दो घटनाएं पिछले तीन दिनों में बिलासपुर में हुई हैं। पहली घटना में एक तीन साल की बच्ची का रेप किया गया और दूसरी में 5 साल की बच्ची का। हां, ये दोनों ही मामले POCSO (Protection of Children from Sexual Offences Act) एक्ट के तहत आते हैं और देश का कानून मानता है कि ऐसे मामलों में दोषी को फांसी की सजा तक हो सकती है, लेकिन अगर आरोपी ही नाबालिग हो तो?
इन दोनों मामलों में रेप करने वाले नाबालिग हैं। 3 साल की बच्ची की निर्मम हत्या भी हुई है और 5 साल की बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ है। इस बारे में और बताने से पहले इन दोनों मामलों की बात करते हैं।
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3 साल की बच्ची का 15 साल के लड़के ने किया रेप और कत्ल
रिपोर्ट्स के अनुसार, 15 साल के लड़के ने अपने घर के पास रहने वाली 3 साल की छोटी लड़की को उठाया और घर ले गया। जब मां ने लड़की को ढूंढना शुरू किया तब आस-पड़ोस वालों ने बताया कि लड़की को उसी लड़की के साथ देखा गया है। जब लड़की की मां उस लड़के के घर गई, तो उसके अंकल ने कहा कि छोटी लड़की यहां नहीं है।
लड़की की मां फिर भी नहीं मानी तो अंकल ने कहा कि लड़का बाथरूम में है। अपनी बेटी की आवाज सुनने पर मां ने बाथरूम का दरवाजा पीटना शुरू किया, उसी बीच लड़के ने लड़की के साथ जो करना था किया और उसे मार डाला। दरवाजा खुलने पर लड़की बेहोशी की हालत में मिली जहां से उसे प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल वालों ने उसे भर्ती करने से मना कर दिया, तो उसे सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि लड़की के शरीर पर कई तरह की चोट के निशान थे। उसे बुरी तरह से काटा गया था।
5 साल की बच्ची के साथ दो नाबालिगों ने किया रेप
बिलासपुर में ही एक 5 वर्षीय बच्ची का रेप दो नाबालिगों ने कर दिया। बच्ची के माता-पिता के अलावा घर में बच्ची की दादी भी रहती थी। बच्ची घर के पास खेल रही थी वहीं मोहल्ले वाला 15 वर्षीय लड़का बच्ची के पास पहुंचा और उसे बहला-फुसला कर अपने साथ ले गया। उसने अपने 14 वर्षीय दोस्त को भी बुला लिया।
इसके बाद दोनों ने बच्ची का गैंगरेप किया और फिर उसे चॉकलेट देकर घर भेज दिया। बच्ची ने डर के कारण दूसरे दिन अपने घर पर इसके बारे में बताया और फिर रिपोर्ट दर्ज हुई।
दोनों ही मामलों में आरोपी नाबालिग थे और सजा भी उन्हें जुवेनाइल एक्ट के हिसाब से ही होगी।
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क्या कहता है इसके बारे में कानून?
इस मामले के बारे में मेरी बात एडवोकेट तारा नरूला से हुई। तारा HAQ: Centre for Child Rights नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन में बतौर एक्सटर्नल काउंसिल अपने सुझाव देती हैं, तारा दिल्ली हाई कोर्ट की वकील हैं और राज्य सरकार के काउंसिल पैनल में भी रह चुकी हैं।
अभी तक उन्होंने 30 से ज्यादा माइनर विक्टिम्स के लिए केस लड़ा है। तारा का इस मामले में कहना है, "यह मामला बिल्कुल भयावह है और आपको अंदर तक झकझोर देता है। यह गलत लगता है कि इसके कानूनी परिणाम जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (जेजे एक्ट) के तहत होंगे और जितना कानून कहता है उससे अधिक समय तक CCL (child in conflict with law) का पालन नहीं करेंगे। हालांकि, कानूनी प्रणाली का हिस्सा होने के कारण, यह हमारा दायित्व है कि एक खौफनाक केस की वजह से हम कानून की प्रणाली पर शक न करें क्योंकि जेजे एक्ट के तहत सुरक्षा सभी सीसीएल पर लागू होती है। हमारे बच्चे तभी सुरक्षित होंगे जब सामाजिक सोच में परिवर्तन होगा, लेकिन यह अभी बहुत दूर लगता है।"
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एडवोकेट, आजाद खान बताते हैं कि जेजे एक्ट के तहत करीब 3 साल तक की सजा का ही प्रावधान है। हालांकि, निर्भया मामले के बाद कानून में परिवर्तन लाया गया था जहां कुछ गंभीर मामलों में जुवेनाइल क्राइम को देखते हुए क्राइम रिस्पॉन्सिबिलिटी की उम्र 18 से घटाकर 16 की जा सकती है, लेकिन यह सिर्फ कुछ गंभीर मामलों के लिए ही है।
क्या जुर्म के लिए उम्र देखनी चाहिए?
यह सवाल, साल दर साल, घटना दर घटना सामने आता जा रहा है। अगर कोई जुर्म करने के लिए बड़ा है, तो सजा पाने के लिए क्यों नहीं? यह सही है कि हम कानून से ऊपर नहीं और भारतीय संविधान के मुताबिक जो भी फैसला होगा वह मान्य होगा, लेकिन कहीं ना कहीं यह सवाल भी जरूरी है कि क्या कानून में बदलाव की जरूरत महसूस नहीं होती? हर बार ऐसा कोई भयावह मामला सामने आता है और हम उसे लेकर संवेदनशीलता भूल जाते हैं। अखबार और न्यूज चैनल पर दिखाई गई खबरों पर अब बस चिंता जताकर छोड़ दी जाती है।
बतौर समाज हम कैसा भविष्य दे रहे हैं अपने बच्चों को जहां उन्हें घर के आंगन से उठा लिया जाता है और उनके साथ इतनी घिनौनी हरकत होती है। बच्चों को सुरक्षित रखना है, तो क्या उन्हें घर में बंद कर दें? और इसकी कोई गारंटी नहीं कि घर पर भी वो सुरक्षित ही रहेंगे। हमारे देश में नवरात्रि के समय बच्चियों की पूजा की जाती है और उनके पैरों में आलता लगाया जाता है, लेकिन उसके बाद क्या उनके खून से सने पैरों को देखने की हिम्मत आ जाती है हमारे अंदर? अगर नहीं तो फिर कैसे हम इतने असंवेदनशील हो गए हैं कि ऐसी खबरें अंदर तक झकझोरती नहीं हैं? यह सवाल आप खुद से पूछिए...
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