Bhagwad Geeta: गीता के इन श्लोकों का जाप शत्रु पर कराएगा आपको विजय प्राप्त

भगवद गीता में कुछ ऐसे श्लोकों का वर्णन मिलता है जिनके निरंतर जाप से कोई भी व्यक्ति अपने दुश्मन को सरलता से पराजित कर सकता है। 

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Bhagwad Geeta: श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथों में से एक है। इस ग्रंथ में श्री कृष्ण के वो दिव्य उपदेश हैं जो उन्होंने महाभारत का युद्ध आरंभ होने से पूर्व पांडू पुत्र और अपने प्रिय सखा अर्जुन को कुरुक्षेत्र में दिए थे।

धार्मिक दृष्टिकोण से ऐसा माना जाता है कि गीता के श्लोक जीवन में व्यक्ति को सफलता हासिल करवा सकते हैं। गीता में लिखित ये श्लोक न सिर्फ व्यक्ति को रोजमर्रा की परेशानियों का हल निकालने के योग्य बनाते हैं बल्कि व्यक्ति को उसके कर्म के प्रति सचेत भी करते हैं।

हमारे ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स का कहना है कि भगवद्गीता में कुछ श्लोक ऐसे भी हैं जिनका अगर नियम के साथ निरंतर जाप किया जाए तो इससे व्यक्ति अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकता है। इन श्लोकों के प्रभाव से दुश्मन की हर चाल विफल होती चली जाती है और वह घुटनों के बल आ जाता है। तो चलिए जानते हैं कौन से हैं वो श्लोक।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

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इस श्लोक का अर्थ है कि अगर कर्म बिना फल की इच्छा के किया जाए तो यह अधिक प्रभाशाली माना जाता है। क्योंकि जब व्यक्ति फल की इच्छा से कर्म करता है तो उसका ध्यान अपन कर्म करने की ओर कम और फल की ओर ज्यादा होता है। इसलिए अपने शत्रु को हारने के बाए में सोचने के बजाय खुद को आगे कैसे बढाएं इस तरफ ध्यान ज्यादा देना चाहिए।

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क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

इस श्लोक में मन के शांत होने के महत्व को बताया गया है। अगर व्यक्ति का मन शांत (मन की शांति के लिए इन मंत्रों का करें जाप) होगा तो वह किसी भी स्थिति में स्थिर रह सकेगा और यही स्थिरता उसके विवेक को जागृत कर करेगी। जिससे वह सूज-बूझ के साथ बिना क्रोध किए निर्णय ले पाएगा। इसलिए शत्रु के समक्ष अपने भी मन को शांत रखना चाहिए और गुस्सा नहीं करना चाहिए। तभी आप अपने दुश्मन की चाल से बाहर निकलने का रास्ता खोज पाएंगे।

अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।

नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।

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इस श्लोक में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जरूरत से ज्यादा किसी भी बात या स्थिति में शक करना व्यक्ति को असफलता की ओर ढकेलता है। यही बात इस रूप में भी लागू होती है कि अगर आपका दुश्मन आपसे हाथ मिलाना चाहता है तो सावधानी जरूर बरतें लेकिन जरूरत से ज्यादा संदेह न करें। नहीं तो दुश्मन को अपने पुराने व्यक्तित्व में लौटने में देर नहीं लगेगी।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

किसी भी वस्तु से लगाव होना मनुष्य का साधारण स्वभाव है लेकिन लगाव इतना बढ़ जाए की वह सफलता में बाधा बनने लगे तो यह ठीक नहीं। इस श्लोक में इसी बात पर ध्यान दिया गया है। यही बात इस रूप में भी लागू होती है कि अगर आपकी किसी वस्तु, व्यक्ति या स्थान को छोड़ देने या दूरी बना लेने से आपसी बैर कम या खत्म होता है तो इस रास्ते को फौरन अपना लें। हो सकता है आपके पास उससे बेहतर ऑप्शन आने वाला हो जो आपको अपार सफालता की ओर ले जाए।

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हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

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इस श्लोक में श्री कृष्ण ने कहा है कि जब तक व्यक्ति के मन में भय रहेगा उसके जीवन में सफलता नहीं रह सकती है। इसलिए अपने शत्रु से डरने के बजाय निडर होकर अपना कर्म करते चले जाएं अगर आप सही हैं और सत्कर्म की राह पर हैं जो आपका दुश्मन खुद ब खुद आपके सामने झुक जाएगा।

तो ये थे गीता के वो श्लोक जिनके जाप से आप अपने दुश्मन को हरा सकते हैं। इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरूर करें, साथ ही कमेंट भी करें।धर्म और त्यौहारों से जुड़े ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

Image Credit: Herzindagi

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