आज बाजीगर को 25 साल पूरे हो गए। बाजीगर अपने समय से काफी आगे की फिल्म थी। प्यार और नफरत, फिल्म में दोनों की इंतेहा दिखाई गई। आज से 25 साल पहले अजय शर्मा (शाहरुख खान ) नाम का एंटी हीरो पैदा हुआ था। नफरत की आग में चलने वाले इस हीरो ने अपना बदला लेने के लिए जो तरीका अपनाया, वह हर किसी के लिए हैरान कर देने वाला था।
फिल्म में शाहरुख खान, काजोल, शिल्पा शेट्टी, दलीप ताहिल, जॉनी लीवर और सिद्धार्थ रे, इन सभी ने यादगार किरदार निभाए थे। इन फिल्म की अलग तरह की कहानी ने दर्शकों को रेगुलर फॉर्मूला फिल्मों से हटकर कुछ नया देखने के लिए दिया। फिल्म की ये लाइनें- कभी-कभी जीतने के लिए कुछ हारना भी पड़ता है...और हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।' उस समय में हर किसी की जुबान पर हुआ करती थीं। इस फिल्म को मैं कभी नहीं भूल सकती। इस फिल्म में होने वाले धोखे और मर्डर्स देखकर मैं इतना डर गई थी कि मुझे एक महीने तक सपने में यही किरदार दिखाई देते थे।
बहरहाल फिल्म की 25वीं सालगिरह पर शिल्पा शेट्टी ने पूरी बाजीगर टीम को बधाई दी है। शिल्पा शेट्टी ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट पर फिल्म के लिए काफी ग्रैटीट्यूड शो किया। शिल्पा शेट्टी ने इस फिल्म के साथ अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म को मिली धुआंधार कामयाबी से शिल्पा शेट्टी को रातों-रात स्टार बना दिया था। इस फिल्म में कई ऐसी चीजें थीं, जो उस समय की जनरेशन के लिए नई थीं। आइए जानें ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में, जिनके चर्चे इस फिल्म के आने के बाद खूब हुए थे-
सबूत मिटाने का नायाब तरीका
फिल्म में मर्डर होने के बाद जिस तरह से सबूत मिटाए जाते हैं, उसे देखकर किसी को भी हैरत हो सकती है। विकी (शाहरुख खान ) अपना सबूत मिटाने के लिए फोटो को इस तरह खा जाते हैं, जैसे वह खाने की कोई बेहद लजीज चीज हो।
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पावर ऑफ एटॉर्नी
फिल्म में 'पावर ऑफ अटॉर्नी' ने लोगों को प्रॉपर्टी ट्रांसफर के कॉन्सेप्ट को तो समझाया, लेकिन किस तरह से प्रॉपर्टी का हेर-फेर किया जा सकता है, यह भी दर्शकों को खूब समझ में आया। पावर ऑफ अटॉर्नी कुछ वैसा ही है, जैसे कि रोमांस के बाद शादी।
फॉर्मूला वन रेसिंग
इस फिल्म से पहले साइकिल रेस 'जो जीता वही सिकंदर' फिल्म में नजर आई थी। देश में बुद्ध सर्किट होने और नारायण कार्तिकेयन के आने से पहले किस तरह से लोग फॉर्मूला 1 कारों की रेस जीता करते थे, फिल्म में बड़े शाही तरीके से दिखाया गया है।
किस तरह से हार को जीत में बदलें
फिल्म में बदले की कहानी देखकर किसी को भी डर लगता है, लेकिन फिल्म में अजय शर्मा जिस तरह से अपनी हारी हुई बाजी को जीत में बदल देता है, वह आइडिया एक बड़ी फिलॉसफी के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। अगर इंसान ठान ले तो वह बहुत कुछ हारकर भी काफी कुछ जीत लेता है। यह फिलॉसफी कई परिस्थितयों में आपको नेगेटिव होने से बचा सकती है, लेकिन फिल्म में शाहरुख खान जिस तरह से बदला लेने के लिए हद से गुजर जाते हैं, वह प्रैक्टिकल लाइफ में अपनाया नहीं जा सकता।
प्यार करने वालों के लिए दो सबक
फिल्म में दो बहनें सीमा और प्रिया एक ही शख्स से प्यार करती हैं। सीमा अजय से प्यार करती है और इसके बारे में अपने घरवालों और यहां तक कि दोस्तों से भी किसी तरह की चर्चा नहीं करती। और इसके बाद उसके साथ जो होता है, वह हर महिला को यही सबक देता है कि किसी के साथ रिश्ता जोड़ने से पहले उसके बैकग्राउंड के बारे में जान लेना बहुत जरूरी है। वहीं दूसरी तरफ प्रिया है, जो अमीर पिता की बिगड़ैल बेटी है। प्रिया को अपनी जिंदगी में जिस तरह की प्रिविलेज मिली है, उसकी वजह से वह उनका मोल भी नहीं समझती। जाहिर है पैसा ही सबकुछ नहीं होता।
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