हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं और यही कारण है कि भारत को हमेशा डाइवर्सिटी के लिए जाना जाता है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, यहूदी, पारसी आदि से परे यहां कई आदिवासी जनजातियां भी हैं जो भारत की अखंडता का एक अटूट हिस्सा हैं। अगर बात करें हम डाइवर्सिटी की तो भारत की कई जनजातियां ऐसी हैं जो अपने अनोखे कल्चर के लिए जानी जाती हैं और ऐसी ही एक जनजाति है अरुणाचल प्रदेश की अपातानी ट्राइब।
ये एक ऐसी जनजाति है जिसके इतिहास में महिलाओं के साथ क्रूर व्यवहार करना मान्य था। इस जनजाति की महिलाओं को ना सिर्फ कठोर शारीरिक दर्द से गुज़रना पड़ता था बल्कि इनकी जिंदगी में बहुत मानसिक तनाव भी थे। इस जनजाति की महिलाओं को जानबूझकर बदसूरत बनाया जाता था।
आखिर क्यों महिलाओं को बनाया जाता था बदसूरत?
इसका कारण था सर्वाइवल यानी खुद की रक्षा करना और आगे बढ़ना। इस जनजाति का इलाका अरुणाचल प्रदेश के सुदूर (Ziro Valley) में स्थित है और यहां अधिकतर विदेशियों और डाकुओं के हमले हुआ करते थे। इन हमलों में सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं का होता था जब हमलावर उन्हें उठाकर ले जाया करते थे। इस कारण से ही महिलाओं को बदसूरत बनाने की प्रथा शुरू हुई। उनकी नाक में लकड़ी की ठेपी लगा दी जाती थी और चेहरे पर माथे से नाक तक लंबी काली लकीर खींच दी जाती थी।
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इसके साथ ही, ये लकड़ी इस बात का सबूत देती थी कि लकड़ी को मासिक धर्म होने लगा है और अब वो बड़ी हो गई है। ये ना सिर्फ उनकी शारीरिक संरचना को खराब करने की स्थिति थी बल्कि इसके कारण महिलाओं को कई तरह की परेशानियां भी उठानी पड़ती थीं।
कई महिलाओं के लिए ये दर्दभरा अनुभव जिंदगी भर का नासूर भी बन जाता था।
कब और कैसे बंद हुई ये परंपरा?
नाक पर लगी इस ठेपी को यापिंग हुर्लो कहा जाता था और अब नई पीढ़ी को इस समस्या से नहीं गुजरना पड़ता। शुरुआती दौर में जब इस जनजाति की सुरक्षा का कोई ज्यादा ठिकाना नहीं होता था तब इस ठेपी को लगाया जाता था। 1970 के दशक में यहां भी क्रांति आई और इस जनजाति की महिलाओं को इस दर्द से मुक्ति मिली। इन्हें आज़ादी दिलाने का काम भी इस जनजाति के पुरुषों ने किया था।
The women of the Apatani Tribe, which lives in the Ziro valley of Arunachal Pradesh, India have a unique tradition. They wear large nose plugs and face tattoos. The nose plugs are called “Yaping Hullo”. They are made from wood found in the forest. #WeAreIndigenouspic.twitter.com/vV68UAEWYA
— Tribal Army (@TribalArmy) June 18, 2022
खेती और शिकार के भरोसे इस जनजाति ने बनाया अपना जीवन
इस जनजाति का अनोखा चावल उगाने का सिस्टम यूनेस्को द्वारा प्रमाणित है। बिना किसी आधुनिक मशीन या फिर जानवरों के इस्तेमाल के भी यहां पर प्रोडक्टिविटी बहुत ज्यादा होती है और यूनेस्को ने अपतानी वैली को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित करने की बात कही है।
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इस ट्राइब को इसके कलरफुल कल्चर और बहुत से त्योहारों के लिए जाना जाता है। यहां हैंडलूम का काम भी होता है और ये जनजाति भाईचारे में यकीन करती है।
इस जनजाति के लोग एक दूसरे के भरोसे पर जीते हैं। अरुणाचल प्रदेश की इस जनजाति के बारे में जानकर आपको कैसा लगा ये हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
Image Credit: wikipedia/ Assam Holidays
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