उपहार सिनेमा केस: बॉर्डर फिल्म शुरू होने से लेकर आग लगने तक, क्या हुआ था उस दिन जो 59 लोगों ने गंवा दी थी जान

उपहार सिनेमा कांड में जिन लोगों ने अपनी जान गंवाई उन्हें पूरी तरह से इंसाफ अभी भी नहीं मिला है।

Uphaar Cinema fire case history

उपहार सिनेमा कांड ... ये एक शब्द नहीं, एक वाक्य नहीं बल्कि पूरी कहानी है उन लोगों की जिन्होंने अपनों को खोया है। ये वो त्रासदी है जिसमें 59 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। 13 जून 1997 को एक खुशनुमा शाम किस तरह से एक नासूर बन गई वो शायद किसी ने सोचा भी नहीं था। वो फिल्म थी 'बॉर्डर' जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ी थी। उस सिनेमा में लोग मौजूद थे और उस दौरान जो आग लगी उसने कई परिवारों को तबाह कर दिया।

उपहार सिनेमा कांड पर नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'Trial By Fire' रिलीज होने वाली है। इस सीरीज में दिल्ली के दामन पर लगे एक दाग की कहानी को दिखाया है। उपहार सिनेमा में लगी एक आग ने क्या किया था और उसके बाद क्या हुआ ये हम आपको बताते हैं।

क्या हुआ था उस रात?

दक्षिणी दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 की शाम 'बॉर्डर' फिल्म दिखाई जा रही थी। इस फिल्म को देखने के लिए बहुत से लोगों की भीड़ जमा थी। लोग अपने परिवार के साथ ये फिल्म देखने आए थे। उस समय एक आग ने पूरे सिनेमा घर को अपनी चपेट में ले लिया था।

कितने लोग हुए थे इस घटना का शिकार?

इस घटना में 59 लोग मारे गए थे और 103 लोग घायल हो गए थे। मरने वालों में बूढ़े, बच्चे और महिलाएं शामिल थीं। आग लगने के बाद भगदड़ जैसे हालात पैदा हो गए थे जिसके कारण लोग और हताहत हुए। सिंगल स्क्रीन थिएटर में इस तरह की घटना का होना सभी के लिए चौंकाने वाला था।

आखिर क्या कारण था इस अग्निकांड का?

शाम करीब 4.55 पर सिनेमा हॉल के बेसमेंट में रखे जनरेटर में आग लग गई थी जो तेजी से पूरे हॉल में फैल गई। घटना के बाद ये समझ आया कि उस जगह पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए थे। सुरक्षा इंतजाम में भारी कमी थी। सबसे ज्यादा मौतें बालकनी में हुई थीं जहां एसी के जरिए जहरीला धुआं सिनेमा हॉल में आ घुसा था। मरने वालों में 23 बच्चे शामिल थे।

fire case of uphaar cinema

जांच में ये भी सामने आया था कि कुछ एग्जिट गेट ज्यादा सीटों की वजह से ब्लॉक कर दिए गए थे और बालकनी में बैठकर मूवी देखने वाले लोग लॉबी में इसलिए भी नहीं जा पाए थे क्योंकि मुख्य एग्जिट गेट को फिल्म शुरू होते ही ब्लॉक कर दिया गया था।

आग से बचने के लिए कई लोग बालकनी में जा छुपे थे जहां दम घुटने के कारण उनकी मौत हो गई थी।

उस दौरान ऑफ ड्यूटी कैप्टन मनजिंदर सिंह भिंडर ने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को ताक पर रखते हुए बाहर आने के बाद भी फंसे हुए लोगों को निकालने की कोशिश की थी। उनकी इस दौरान मौत हो गई थी।

अग्निशामक दल समय पर नहीं पहुंच पाया था क्योंकि उस समय बहुत ज्यादा ट्रैफिक था और जिस जगह ये सिनेमा हॉल मौजूद था वो बहुत व्यस्त लोकेशन थी।

सिनेमा हॉल में आग लगने के बाद लाइट सप्लाई भी बंद हो गई थी और घुप्प अंधेरे के कारण लोग बाहर का रास्ता भी नहीं ढूंढ पाए थे। ऐसी कई कमियां आखिर में थिएटर में पाई गई थीं। ना ही एग्जिट लाइट वहां मौजूद थीं, ना ही वहां इमरजेंसी लाइट थी, ना ही आग लगने पर कोई अनाउंसमेंट हुआ था, थिएटर के अंदर खाली जगह पर दुकानें लगा दी गई थीं, बाहर निकलने की जगहें ब्लॉक थीं और डीएवी ट्रांसफॉर्मर की मेंटेनेंस भी नहीं हुई थी जिसके कारण आग लगी थी।

balcony of uphaar cinema

आखिर क्यों केस इतना लंबा खिंच गया?

इस केस को लेकर आज तक सुनवाई चलती आ रही है। पहली रिव्यू रिपोर्ट 3 जुलाई 1997 को ही दे दी गई थी। इसमें सिनेमा मैनेजमेंट को जिम्मेदार माना गया था कि सही समय पर लोगों को जानकारी नहीं दी गई थी।

इसके बाद सुशील अंसल और उनके भाई गोपाल के खिलाफ नॉन-बेलेबल वॉरेंट इश्यू किए गए थे। इसी के साथ दिल्ली विद्युत बोर्ड के एक ऑफिसर के खिलाफ भी वॉरेंट जारी हुआ था जिसने उस सिनेमा की जांच ठीक तरह से नहीं की। दो अग्निशमन अधिकारियों को भी सस्पेंड किया गया था।

27 जुलाई 1997 को पहली गिरफ्तारी हुई जिसके बाद इस मामले को सीबीआई में सौंपा गया। इसके बाद सुशील और गोपाल अंसल के साथ 16 अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल हुई। (क्या होती है जीरो एफआईआर)

ये कोर्ट केस एक दशक से भी ज्यादा चला और शुरुआती 7 सालों में इससे जुड़ी 344 हियरिंग हुईं।

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लीगल बैटल और आखिर का इंतजार

इस केस में इतना समय इसलिए लगा क्योंकि इससे जुड़े कई गवाह आखिर में मुकर गए। हाई कोर्ट द्वारा कई बार दलीलें भी मांगी गईं, लेकिन ये केस आगे बढ़ता रहा। 2003 में तो पब्लिक प्रोसिक्यूटर द्वारा एविडेंट टेम्परिंग केस भी फाइल किया गया।

2007 आते-आते एविडेंस टेम्परिंग केस आगे बढ़ा और लोग इतने सालों में भी उपहार सिनेमा के नतीजे का इंतजार करते रहे।

gopal ansal uphar cinema

20 नवंबर 2007 में अंसल बंधुओं सहित 12 आरोपियों को दोषी माना गया और सभी को फाइन देने के साथ-साथ सजा सुनाई गई।

सजा सुनने के बाद 2008 में अंसल बंधुओं की अपील पर फिर से सजा कम की गई। 2014 आते-आते भी ये ट्रायल चलता रहा और 19 अगस्त 2015 को अंसल बंधुओं पर 30 करोड़ का जुर्माना लगाया गया। उन्हें जुर्माना देने की बात कही गई क्योंकि अब तक वो बूढ़े हो चुके थे और इतना सजा जेल में नहीं काट सकते थे।

आखिरी फैसला नवंबर 2021 को आया है जहां अंसल बंधुओं पर एविडेंस टेंपरिंग को लेकर भी 2.25 करोड़ का जुर्माना लगाया गया है। आपको शायद इसके बारे में पता ना हो, लेकिन जब उपहार सिनेमा बनने वाला था तब डिप्टी कमिश्नर जिसे उसकी लाइसेंसिंग करनी थी उसने 10 से ज्यादा नियमों के बारे में बताया था जिन्हें तोड़ा गया था। पर आग लगने की घटना यानी 14 साल बाद तक भी उन्हें ठीक नहीं किया गया था।

अब नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज उपहार सिनेमा में नीलम कृष्णमूर्ति की कहानी बताने जा रही है जिनके बच्चे इस अग्निकांड में मारे गए थे।

उपहार सिनेमा कांड कई लोगों के जहन में आज भी ताजा है। इस कांड में गलती किसे दी जाए? आपका इस बारे में क्या ख्याल है ये हमें आर्टिकल के नीचे मौजूद कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

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