पार्टी में काफी एक्सपेरीमेंट करने के बाद आखिरकार कांग्रेस को अपने समर्थकों की वर्षों पुरानी मांग को पूरा करना पड़ा और प्रियंका गांधी को राजनीति के आखाड़े में उतारना पड़ा। हालाकि जब वर्ष 1988 में मंच पर खड़े होकर 16 वर्ष की प्रियंका गांधी ने पहला भाषण दिया था तब ही कांग्रेस के समर्थकों ने प्रियंका को पार्टी में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। उनकी यह अधूरी मांग 31 साल बाद पूरी हो ही गई। हालाकिं सुनने में तो यह भी आया था कि प्रियंका वर्ष 2014 के आम चुनाव ही लड़ना चाहती थीं मगर प्रियंका का मन वाराणासी से चुनावा लड़ने का था और वह पीएम मोदी से टक्कर लेना चाहती थीं। मगर, तब ऐसा न हो सका। खैर, आपको बता दें कि प्रियंका गांधी के हाव-भाव और तेवरों को देख कर हमेशा ही उनकी तुलना इंदिरा गांधी से की जाती रही है। प्रियंका के चेहरे पर इंदिरा की झलक देख तो कई लोगों ने यह तक कह डाला कि प्रियंका ही कांग्रेस की नइया को पार लगा सकती हैं। मगर, प्रियंका हमेशा सायलेंट मोड पर रहीं। उन्होंने पार्टी के लिए प्रचार प्रसार जरूर किए मगर, राजनीति के दंगल में उतरने की अपनी मंशा का शो-ऑफ उन्होंने कभी नहीं किया। तो चलिए आज हम आपको राजनीति की इस महिला महाराथी के कुछ दिलचस्प किस्से सुनाते हैं।
प्रियंका गांधी को पार्टी ने वाइस प्रेसिडेंट बना कर पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है। राजनीति के नजरिए से यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्रियंका के कंधे पर इस क्षेत्र में कांग्रेस की पकड़ को मजबूत बनाने का प्रेशर है। आपको बता दें कि प्रियंका का जन्मदिन 12 जनवरी को होता है। इसलिए उन्हें इसी महीने में पार्टी का वाइस प्रेसिडेंट बना कर तोहफा दिया गया है।
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पिता राजीव गांधी की हत्या के वक्त प्रियंका गांध 19 वर्ष की थीं। जब मां सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली तो प्रियंका ने भी तय कर लिया की मां का साथ कभी नहीं छोड़ेंगी और वह हमेशा सोनिया की परछाई बन कर रहीं। जब-जब चुनाव आते तो वह अपनी मां के प्रचार प्रसार का काम संभाल लेतीं। इतना ही नहीं वह चुनाव क्षेत्रों में जा कर वहां का दौरा करतीं। लोगों से बात करतीं।
राजनीति के गलियारों में आजकल एक ही नाम का डंका बज रहा है और वह हैं प्रियंका गांधी वाड्रा। केवल अमेठी और रायबरेजी जैसे क्षेत्रों तक सीमित रहने वाली प्रियंका का मुकाबला अब मोदी और योगी सरकार से है। सवाल यह है कि क्या इंदिरा गांधी जैसी दिखने वाली प्रियंका पीएम मोदी के आक्रमक भाषणों का सामना कर पाएंगी? तो इससे पहले कि आप जवाब टटोलने लगे हम आपको बता देते हैं कि प्रियंका को भले ही पार्टी पद अभी मिला हो मगर पार्टी में वह लंबे समय से सक्रीय रह चुकी हैं। एक भाषण के दौरान जब मोदी ने प्रियंका को अपनी बेटी जैसा कहा तो इस पर प्रियंका का कहना था ‘मैं राजीव गांधी की बेटी हूं।’ प्रियंका के इन तेवरों को देख कर तो यही लगता है कि अपनी दादी की उनमें केवल झालक ही नहीं है बल्कि उनके तेवर भी वैसे ही हैं।
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देश के सबसे बड़े सियासी घराने की बेटी प्रियंका गांधी। जिनकों पैरों के नीचे सियासत कबसे लाल कालीन बिछाने को बेताब थी मगर, वह प्रियंका ही थीं जो पॉलीटिक्स को हमेशा ना ना कहती रहीं। कए पुराने मीडिया इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि वह राजनीति में आने से डरती हैं तो उनका जवाब था, ‘नहीं डर नहीं लगता, मगर मैं राजनीति में नहीं आना चाहती। मैं यह भी नहीं कहती कि ऐसा हो नहीं सकता। लाइफ कभी किसी चीज को नेवर नहीं कहना चाहिए। अगर जरूरत पड़ी तो मुझे आना ही होगा। मगर, फिलहाल मैं राजनीति से दूर रहना चाहती हूं।’
अब तक घर गृहस्थी में सिमटी प्रियंका को राजनीति में आता देख जहां विरोधियों के पसीने छूट गए हैं वहीं वैंटीलेटर पर पड़ी कांग्रेस पार्टी में नई जान आ गई है। कोई कह रहा है ‘इंदिरा वापिस आगई’ तो कोई कह रहा है ‘अब होगा चमतकार’। लोग तो राहुल के डिसीजन की भी तारीफ कर रहे हैं और बोल रहे हैं ‘राहुल ने मार्स्टस्ट्रोक मार दिया है’ तो कोई बोल रहा है ‘गेमचेंज ने एंट्री ले ली है।’ प्रियंका के राजनीति में आने से लोगों में खुशी है। उन्हें प्रियंका से उम्मीद है कि वह इंदिरा जैसा ही करिश्मा दिखाएंगी।
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