मिताली मधुमिता भारतीय सेना का चर्चित नाम हैं। साल 2010 में मिताली भारत की पहली ऐसी महिला अधिकारी बनीं, जहां उन्हें उनकी बहादुरी के लिए गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया गया। आज के इस लेख में हम आपको मिताली मधुमिता को कहानी बताएंगे, कि आखिर कैसे मिताली ने सेना में इतना बड़ा मुकाम हासिल किया।
कौन हैं मिताली मधुमिता?
मिताली मधुमिता भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। हालांकि मधुमती के परिवार में सभी लोग लेक्चरर थे, ऐसे में उनकी माता चाहती थीं कि वो भी किसी यूनिवर्सिटी की लेक्चरर बनें। लेकिन मधुमिता हमेशा से ही सेना में जाना चाहती थीं।
बहादुरी के लिए दिया गया मेडल
दरअसल 26 फरवरी 2010 को अफगानिस्तान के काबुल में आतंकवादियों द्वारा भारतीय दूतावास में किए गए हमले के दौरान दिखाए गए साहस के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता को सेना पदक देकर सम्मानित किया गया। लेफ्टिनेंट कर्नल मधुमिता ने भारतीय दूतावास के अंदर जाकर, घायल नागरिकों और सैन्य कर्मियों को मलबे से बचाया था। हालांकि कि यह हमला बेहद घातक था, जिसमें उन्नीस लोगों ने अपनी जान गवाई थी।
स्थाई कमीशन के लिए लड़ी थी जंग
लेफ्टिनेंट कर्नल जम्मू-कश्मीर और भारत के नॉर्थ ईस्ट राज्यों में भी तैनात रह चुकी हैं। वो साल 2000 में शॉर्ट सर्विस कमीशन के जरिए सेना में में कमीशंड हुई थीं। वो एजुकेशन कोर में तैनात थीं और सेना के अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम की तरफ से अफगानिस्तान में तैनात की गई थीं।
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लेफ्टिनेंट कर्नल मधुमिता ने सेन में लेडी अफसर के लिए स्थायी कमीशन के लिए सरकार के खिलाफ जंग छेड़ी थी। लंबी लड़ाई के बाद साल 2015 में ट्रिब्यूनल को उनकी अपील वैध नजर आई और उसकी तरफ से रक्षा मंत्रालय से उनकी स्थाई कमीशन की मांग को स्वीकार लिया।
तो ये थी मिताली मधुमिता की कहानी, जिन्होंने अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में 17 लोगों की जानें बचाई। आपको हमारा यह आर्टिकल अगर पसंद आया हो तो उन्हें लाइक और शेयर करें, साथ ही ऐसी जानकारियों के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
Image credit- wikipedia and twitter
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