"अरे वो तो छप्पन छुरी है..." स्मार्ट, तेज और अपनी बात बेबाक तरह से रखने वाली महिलाओं के लिए इस शब्द को व्यंग्य या तारीफ के रूप में आपने कई बार सुना होगा। इतना ही नहीं, आपने फिल्मों, शायरियों, और कहानियों में भी किसी महिला के बारे में बताने के लिए भी छप्पन छुरी सुना, देखा और पढ़ा होगा।
बॉलीवुड की कई फिल्मों में छप्पन छुरी का डायलॉग्स में इस्तेमाल देखने को मिला है। जिससे ऐसा लगता है कि किसी ऐसी महिला की बात हो रही है जो अपनी सुंदरता या बातों से दिलों पर छुरियां चला रही है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर छप्पन छुरी का मतलब क्या है? अगर नहीं, तो सबसे पहले बता दें कि यह शब्द कोई कहावत या मुहावरा नहीं है।
यह शब्द एक दिलचस्प कहानी से जुड़ा है और यह कहानी आज हम इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं। छप्पन छुरी की कहानी इलाहाबाद और आज के प्रयागराज की महिला से जुड़ी है। आइए, यहां जानते हैं कि किस महिला के लिए छप्पन छुरी शब्द का इस्तेमाल होता था और क्यों।
कौन थीं छप्पन छुरी?
जानकी बाई नाम की महिला से छप्पन छुरी शब्द का कनेक्शन रहा है। यह नाम ऐसा है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जी हां, ऐसी महिला जो अपनी गायिकी के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध थीं। जानकी बाई की आवाज का लोगों पर ऐसा असर था कि उन्हें दिन और रात का पता ही नहीं चलता था।
लेकिन, हमारा सवाल अब भी वही है कि आखिर कैसे इलाहाबाद की गायिका का नाम छप्पन छुरी पड़ गया। तो चलिए यहां जानते हैं पूरी कहानी।
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कैसे पड़ा जानकी बाई का नाम छप्पन छुरी?
पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी के मुताबिक, जानकी बाई का जन्म बनारस में हुआ था और उनके पिता पेशे पहलवान थे। जानकी उम्र में छोटी ही थीं कि उनके पिता ने दूसरी महिला के लिए पत्नी को छोड़ दिया। पिता के छोड़ने के बाद हालत ऐसी हो गई कि जानकी और उनकी मां को कोठे पर बेच दिया गया। जहां से वह इलाहाबाद यानी प्रयागराज आकर बस गए।
बचपन से ही जानकी को संगीत में रूचि थी। कहा जाता है कि जानकी ने 12 साल की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और वहां बनारस के मशहूर गायक रघुनंदन दुबे को हरा दिया था। अलग-अलग पब्लिक डोमेन्स पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि हारने के बाद रघुनंदन दुबे ने जानकी को मारने की कोशिश की थी, जिसकी वजह से उनके शरीर पर चाकू से अनगिनत वार किए थे।
ऐसा कहा जाता है कि चाकू के वार से जानकी बाई के चेहरे और शरीर पर गहरे घाव हो गए थे। घावों की वजह से उनकी बचने की हालत तो नहीं थी, लेकिन उनकी जान चमत्कारिक तरह से बच गई और इसके बाद से उनका नाम छप्पन छुरी पड़ गया था।
पर्दे के पीछे गाती थीं छप्पन छुरी
मौजूदा जानकारी की मानें तो जानकी ने अपनी गायकी से खूब शोहरत कमाई। वह घावों की वजह से पर्दे के पीछे से गाती थीं। पर्दे के पीछे से गाने की वजह से लोगों के बीच उनकी खूब प्रसिद्धि थी। हर कोई सोचता था कि जिसकी आवाज इतनी खूबसूरत है तो वह कितनी खूबसूरत होंगी।
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ग्रामोफोन की पहली हिंदी गायिका
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, जानकी बाई ने साल 1907 में ग्रामोफोन कंपनी के लिए पहला हिंदी गाना रिकॉर्ड किया था। इसके बाद उन्होंने 100 से ज्यादा गाने और गजलें रिकॉर्ड की थीं। कहा जाता है कि उस दौर में वह गाना गाने के लिए हजारों रुपये लेती थीं। हालांकि, इस बात का कोई सबूत नहीं है लेकिन इसका जिक्र जरूर कई इतिहासकारों और लेखकों के लेख में मिलता है।
जानकी बाई ने उर्दू में एक किताब भी लिखी थी, जिसका नाम था दीवान-ए-जानकी। इस किताब में जानकी बाई ने अपनी उर्दू कविताएं लिखी हैं। बता दें, वह अपना पूरा नाम जानकी बाई इलाहाबादी बताती थीं और अपने गानों के आखिरी में पूरा नाम जरूर लेती थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जानकी बाई 1934 में मौत हुई थी।
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Image Credit: Freepik and Twitter
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