एक शेर याद आता है कि गम हो या खुशियां, मां जीवन के हर किस्से में साथ देती है। खुद सो जाती है भूखी, पर बच्चों में रोटी अपने हिस्से की बांट देती हैं। मां कुछ ऐसी ही होती है, जो अपने बच्चों के लिए किसी भी हद तक गुजरने के लिए हमेशा तैयार रहती है। मां शब्द ममता के साथ समर्पण का नाम भी है, जो एक स्त्री मां बनने के बाद अपने बच्चे को पालने के लिए करती है। मां हमेशा बिना स्वार्थ के अपने बच्चे से प्यार करती है। मां के लिए कोई सरहद नहीं होती है और ना ही कोई दीवार होती है, अगर वह ठान ले, तो वह नेपाल से भारत अपने बच्चों को पालने के लिए भी आ सकती है।
आज हम आपको एक ऐसी ही सिंगल मदर की प्रेरणादायक कहानी बताने जा रहे हैं, जिसको पति ने इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि उसने तीसरी बेटी को जन्म दिया था। इसके बाद, उस मां ने डिलीवरी के 15 दिन बाद ही अपने बच्चों का पेट पालने के लिए घर-घर जाकर काम करना शुरू कर दिया। दरअसल मैं आपको मेरे घर की हाउस हेल्पर कुसमी की कहानी बताने जा रही हूं, जो 6 साल से हरियाणा के गुड़गांव में रहकर अपने तीन बच्चों का अकेले भरण-पोषण कर रही है।
कुसमी ने बताया कि जब वह केवल 17 साल की थी, तब उसके जीजा ने उसकी शादी अपने शराबी भाई से करा दी थी। कुसमी के मां-बाप ने जीजा पर भरोसा करते हुए शादी के लिए हामी भर दी थी। लेकिन, शादी के बाद कुसमी की हंसती-खेलती जिंदगी में ग्रहण लग गया। शादी को एक साल भी नहीं हुए थे कि कुसमी प्रेंग्नेट हो गई। केवल 18 साल की उम्र में उसने सबसे बड़ी बेटी आरोही को जन्म दिया। बेटी के जन्म के बाद, उसका शराबी पति बेटे की मांग करने लगा, इसलिए केवल बड़ी बेटी के 9 महीने पूरे होने पर ही, कुसमी दूसरी बार प्रेग्नेंट हो गई। दूसरी बार भी कुसमी ने बेटी को जन्म दिया जिसका नाम अवनी रखा। पति का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुंच गया। उसने कुसमी पर हाथ उठाना शुरू कर दिया और रोज शराब पीकर घर आने लगा। उसने कामधंधा करना बंद कर दिया और घर का सामान बेचकर नशे करने लगा।
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कुसमी यह सब देखती रही, लेकिन उसकी कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह अपने पति के सामने जुबां खोल पाए। कुसमी ने बताया कि एक दिन ऐसा आया जब घर पर खाने के लाले पड़ गए। उसकी बेटियों का पेट भरने के लिए उसे अपने पड़ोसियों से भीख मांगनी पड़ी। लेकिन, स्वाभीमानी कुसमी को मुफ्त में किसी से सामान लेना पसंद नहीं आया, इसलिए वह दूसरे दिन जाकर पड़ोसी के घर में बर्तन मांजकर चली आई। उस समय कुसमी के मन में ख्याल आया कि अगर मैं घर-घर जाकर खाना बनाऊं, झांडू-पोंछा करूं, तो मुझे किसी के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़ेंगे।
कुसमी ने अपनी बेटियों का पेट पालने के लिए घर-घर जाकर काम मांगना शुरू दिया, लेकिन नेपाल जैसे देश में उसे काम मिलना काफी मुश्किल था। कुसमी के कई रिश्तेदार नेपाल से भारत आकर नौकरी कर रहे थे। तब, एक दिन कुसमी के एक रिश्तेदार ने भारत आकर काम करने को कहा और बोला कि वह यहां उसको नौकरी दिला देगा। कुसमी कहती है कि मैंने जो परेशानियां झेली हैं, मैं नहीं चाहती हूं कि मेरी बेटियों को भी वही झेलना पड़े। इसलिए मैं अपने भाई से पैसा उधार लेकर भारत आ गई। जब मैं पहली बार अपने पति और बेटियों को लेकर दिल्ली के कश्मीरी गेट पर बस से उतरी, तो मुझे काफी डर लग रहा था। मुझे लग रहा था कि कहीं लोग मुझे वापस नेपाल ना भगा दें। लेकिन, हमारे एक रिश्तेदार हमें लेने आए थे और हम उनके साथ गुड़गांव चले आए।
कुसमी कहती है कि गुड़गांव को देखकर मुझे और भी ज्यादा डर लगने लगा, क्योंकि यहां पर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स थीं। लोग इंग्लिश या हिंदी में बात करते थे और मुझे केवल नेपाली आती थी। जब मैं शुरुआत में काम मांगने जाया करती थी, तो लोग मुझे इसलिए काम नहीं देते थे, क्योंकि मुझे हिंदी नहीं आती थी। हालांकि, मेरे पति को थोड़ी बहुत हिंदी आती थी, इसलिए वह कुछ दिन तो मेरे साथ गया। लेकिन, बाद में फिर से उसने नशा करना शुरू कर दिया। मेरी आए दिन अपने पति से काफी लड़ाई होती थी, क्योंकि हम दोनों के पास उस समय जॉब नहीं थी। समय के साथ हमारे पास पैसे भी खत्म हो रहे थे और मुझे किसी भी तरह से काम चाहिए था।
एक दिन कुसमी किराना की दुकान दूध लेने पहुंची, तो उसने वहां दुकानदार से पूछा कि कहीं आसपास किसी को कामवाली की जरूरत तो नहीं है। उसने बताया कि उसके बगल में एक बूढ़ी महिला सामान ले रही थी, उसने पहले उसे ऊपर से नीचे तक देखा। फिर, उसने पूछा कि तुम क्या-क्या कर सकती हो? कुसमी को तब तक थोड़ी थोड़ी हिंदी समझ आने लगी थी, उसने टूटी-फूटी हिंदी में कहा कि कुछ भी कर सकती है। बूढ़ी महिला कुसमी को अपने घर लेकर पहुंची और उसने बताया कि उसे झाड़ू-पोंछा और बर्तन धोने का काम मिलेगा। कुसमी ने कहा कि माता जी, मैं आज से ही काम करने लगती हूं। इस तरह कुसमी को पहली नौकरी मिली थी।
कुसमी ने धीर-धीरे काम करना शुरू किया और उसका काम लोगों को काफी पसंद आने लगा। साल 2018 में गुड़गांव जैसे महंगे शहर में कुसमी अकेले काम करके अपनी बेटियों और शराबी पति को पालती थी। साल 2019 में कुसमी तीसरी बार प्रेग्नेंट हो गई और इस बार उसके मन में भी एक बेटे की चाह थी। प्रेग्नेंसी के 8वें महीने तक कुसमी घर-घर जाकर काम करती रही, जब लोग उसे आने के लिए मना करते, तो वह कहती कि साहब अगर काम नहीं करूंगी, तो खाऊंगी क्या? पति नकारा है और पूरे दिन नशे में धुत रहता है। जब उसकी डिलीवरी हुई, तो उसके पति को पता चला कि इस बार भी बेटी हुई है। जब तक कुसमी को होश आता, तब तक उसका पति अस्पताल में उसे अकेला छोड़कर रफू-चक्कर हो गया।
कुसमी को जब होश आया, तो उसने अपने पति के बारे में नर्स से पूछा। नर्स से कहा कि उसका पति अभी तो यहीं था, पता नहीं अब कहां चला गया। डिलीवरी के बाद, कुसमी ने अपने पति को कई बार फोन किया, लेकिन उसका फोन हमेशा स्विच ऑफ आया। कुसमी काफी डर गई थी और उसे डर था कि कहीं उसका पति सारा पैसा लेकर भाग तो नहीं गया। लेकिन, उसका डर सच निकला ठीक ऐसा ही हुआ। अब कुसमी को डिसचार्ज होना था, लेकिन उसके पास बिल भरने के पैसे नहीं थे। तब, उसने उन्हीं बूढ़ूी महिला को कॉल किया, जिसने पहली बार उसे नौकरी दी थी। उस बूढ़ी महिला ने उससे कहा कि तुम चिंता मत करो, मैं हॉस्पिटल पहुंचती हूं। कुछ ही देर में वह सज्जन महिला हॉस्पिटल पहुंच गई, जैसे ही कुसमी ने उसे देखा वह लिपटकर रोने लगी।
कुसमी कहती है कि उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरे सामने दुर्गा मां खड़ी हैं। उस महिला ने कहा कि कुसमी मैं तुम्हें अपने घर लेकर चलती हूं, तुम जितने दिन चाहों अपने बच्चों के साथ रह सकती हो। मैं और मेरे पति इतने बड़े घर में अकेले रहते हैं और यह घर हमें खाने दौड़ता है। तुम्हारे बच्चे रहेंगे, तो हमारा सूनापन थोड़ा कम हो जाएगा। कुसमी पहले थोड़ा सकुचाई, लेकिन बाद में मान गई।
कुसमी करीब 15 दिन तक उस बूढ़ी महिला के घर पर रही, लेकिन स्वाभिमानी होनी की वजह से उसने दुबारा काम ढूंढने का फैसला किया। डिलीवरी के 15 दिन बाद ही उसने काम ढूंढना शुरू कर दिया। वह अपने पुराने घरों में गई, जहां वह काम किया करती थी। लोगों ने जब उसकी आपबीती सुनी, तो उसे वापस से काम पर लगा लिया, क्योंकि वह अपना काम बहुत ईमानदारी और शिद्दत से करती है। इस तरह कुसमी को वापस से सारा काम मिल गया, लेकिन पति का साथ छूट गया। कुसमी कहती है कि शुरुआत के 3 महीने ऐसा लगता था कि मैं अकेली क्या ही कर सकती हूं? हमेशा खुद को कम आंकती थी। हालांकि मैंने अपनी दोनों बेटियों का स्कूल में एडमिशन करा दिया था और तीसरी को अपने साथ काम पर ले जाया करती थी। मेरे कम से कम 1.5 साल बहुत मुश्किलभरे गुजरे। लेकिन, समय हर घाव भर देता है, इसलिए समय के साथ मैं मजबूत होती चली गई।
आज मुझे अकेले रहते हुए करीब 6 साल हो चुके हैं। महामारी के दौर में, जब मेरे पास काम नहीं था, तब भी लोग मुझे बिना काम के पगार दिया करते थे ताकि मैं अपने बच्चों का पेट पाल सकूं। वह कहती है कि शायद मैंने पिछले जन्म में कुछ अच्छे काम किए थे, जिसका मुझे इस जन्म में परिणाम मिल रहा है। अभी तक मुझे अच्छे लोग ही मिले हैं, जिन्होंने मुझे हमेशा सपोर्ट किया। आज मैं सिंगल मदर होकर भी अपने तीनों बच्चों को अच्छी शिक्षा और अच्छा रहन-सहन दे पा रही हूं। जब मेरे तीनों बच्चे मुझे स्ट्रॉन्ग मां कहते हैं, तो मुझे बहुत गर्व होता है।
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Image Credit - kusmi
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