'जहां चाह वहीं राह', यह कहावत आपने कई बार सुनी होगी मगर इस कहावत को सच कर दिखाया है भारत की 56 वर्षीय एक महिला ने। इस महिला का नाम मंगला मणी है। मंगला भारत में मौजूद इसरो में साइंटिस्ट हैं। साइंटिस्ट एक मैन डॉमिनेटिंग क्षेत्र है, मगर अब इस फील्ड में महिलाओं ने भी आना शुरु कर दिया है। मंगला ऐसी महिलाओं में से हैं। इस फील्ड में रहते हुए मंगला ने बहुत रिसर्च की हैं मगर हाल ही में उन्होंने जो किया वह भारतीय महिलाओं के लिए मिसाल बन गया।
भारत एक ऐसा देश है जहां पर महिलाओं को पुरुषों से शारीरिक तौर पर कमजोर समझा जाता है। इसलिए खतरनाक काम और जगह पर पुरुषों को वर्च्सव दिखाई देता है। महिलाओं को एडवेंचर्स काम से दूर ही रखा जाता है। हालाकि कुछ समय से महिलाओं का क्रेज भी एडवेंचरस फील्ड में बढ़ रहा है। इन सबके बावजूद महिलाएं आज भी पुरुषों के मुकाबले इन फील्ड्स में कम ही नजर आती हैं। मगर मंगला की बात की जाए तो वह उन महिलाओं में हैं, जो पुरुषों से खुद को एक परसेंट भी कम नहीं मानती।
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मंगला के इसी जज्बे ने आज पूरे देश की महिलाओं के बीच उन्हें मिसाल बना दिया है। दरअसल मंगला ने हालही में अंटार्कटिका जैसे ठंडे कॉन्टीनेंट में 403 दिन बिताएं हैं। ऐसा करने वाली मंगला पहली भारतीय महिला बन चुकी हैं। मंगला से पहले भी कई महिलाएं अंटार्कटिका जा कर वक्त बिता चुकी हैं मगर भारत से केवल मंगला ही इतने ज्यादा दिन तक रहने वाली महिला हैं। मगर मंगला के लिए अंटार्कटिका में रहना और यह मिसाल बनाना आसान नहीं था। इसके लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और कई परेशानियों से लड़ना पड़ा।
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जैसा की सभी जानते हैं कि 7 महाद्वीपों में अंटार्कटिका सबसे ज्यादा ठंडा महाद्वीप है। यहां रहना अन्य जगहों पर रहने की तरह आसान नहीं है। यहां का क्लाइमेट खासतौर पर मनुष्यों के लिए अनुकूल नहीं है। बावजूद इसके यहां पर कई देशों की रिसर्च टीमें अपने अपने रिसर्च सेंटर बनाकर डेरा डाले रहती हैं। यहां भारत का भी एक रिसर्च सेंटर है। मंगला इसी रिसर्च सेंटर पर अपने 23 सदस्यीय टीम के साथ गईं थी। मंगला जिस टीम का हिस्सा थीं उस टिम में उनके अलावा कोई भी महिला नहीं थीं। वह बताती हैं, 'अपनी टीम में मैं अकेली ही महिला थी। हमें अंटार्कटिका में बने भारत के रिसर्च सेंटर भारती में कुछ सेटेलाइट डेटा एकत्रित करने के लिए भेजा गया था। इस काम को करने में हमें 403 दिन लग गए। मेरी पूरी टीम मेरे साथ वहीं पर इतने दिन रुकी हुई थी।'
मंगला ने आज तक अपनी लाइफ में कभी भी स्नोफॉल नहीं देखा था। मगर अंटार्कटिक आने के लिए एक कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा। वह बताती हैं, 'क्योंकि हमें इतने दिन तक एक ऐसी जगह रहना था जहां ठंड और बर्फ के अलावा कुछ भी नहीं है। इसलिए हमें पहले एक ट्रेनिंग दी गई। यह ट्रेनिंग हमें औली और बद्रीनाथ में 9000 से 10000 फीट की ऊंचाई पर दी गई, जहां का मौसम पल-पल में बदलता रहता है और बेहद ठंडा रहता है। इस ट्रेनिंग के द्वारा यह जांचा गया कि हम इतने कठिन क्लाइमेट में सरवाइव भी कर पाएंगे या नहीं। यह ट्रेनिंग कई लोगों को दी गई थी। उसमें मेरे अलावा और भी महिलाएं थी मगर ट्रेनिंग में पास होने वाली महिलाओं में केवल मेरा नाम ही आ पाया। इस ट्रेनिंग में हमे बता दिया गया था कि अंटार्किटा में हमें किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ट्रेनिंग के दौरान हमें ठंडी जगह एक साथ रख कर काम करवाया गया साथ ही हमें भारी भारी सामान के साथ ट्रैकिंग करवाई गई। '
अंटार्कटिका पहुंचने के बाद मंगला को ट्रेनिंग में सिखाई गई चीजों ने मदद तो की मगर ट्रेनिंग की तरह वहां रहना आसान नहीं था। वह बताती हैं, 'मैंने इतनी ठंड कभी महसूस नहीं की। हम 2-3 घंटे से ज्यादा बाहर रह ही नहीं सकते थे क्योंकि वहां बेहद ठंड थी। इतनी ठंड कि इससे ज्यादा वहां बाहर रहने पर हमारा खून तक जम सकता था। इसलिए कुछ वक्त बाहर रहने के बाद हमें वापिस रिसर्च सेंटर लौटना पड़ता था। हमारे अलावा उस वक्त वहां रूस की रिसर्च टीम भी मौजूद थी मगर उस टीम में भी एक भी महिला नहीं थी। मुझे वहां देख वो लोग भी हैरान थे कि इतनी कठिन परिस्थितियों में भी वहां काम कर पा रही हूं। मेरा मानना है कि महिलाओं को पुरुषों से शारीरिक तौर पर कम समझने वालों को यह नहीं पता होता कि मानसिक और भावनात्मक मजबूती भी किसी काम करन के लिए चाहिए होती है और महिलाओं में यह कूट-कूट कर भरी होती है। '
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