'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर सौ-सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
तब चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना नहीं अखरता है।'
कवि सोहनलाल द्विवेदी की मशहूर कविता 'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है' की यह पंक्तियां भारत की स्टार पिस्टल निशानेबाज राही सरनोबत पर एकदम सटीक बैठती है। फर्श से अर्श तक का सफर तय करने में राही के कदम कई बार डगमगाए, मगर संघर्ष भरी इस राह को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा। आज यही वजह है कि राही सरनोबत खेल की दुनिया में एक बड़ा नाम बन चुकी हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में अपनी उपलब्धियों के लिए वह हमेशा ही सुर्खियों में रहती हैं। आजकल राही के निशाने पर टोक्यो ओलंपिक में मिलने वाला गोल्ड मेडल है और इसे हासिल करने के लिए राही पुरजोर कोशिश कर रही हैं।
मगर इस मुकाम तक पहुंचने के लिए राही को एक लंबा संघर्ष भरा सफर तय करना पड़ा है। आज हम आपको राही के जीवन, खेल, संघर्ष और उपलब्धियों से जुड़े कुछ बेहद रोचक तथ्य बताएंगे
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महाराष्ट्र के कोल्हापुर (कोल्हापुर की फेमस चीजें) की रहने वाली राही सरनोबत का जन्म 30 अक्टूबर 1990 में हुआ था। कोल्हापुर में ही राही की स्कूली पढ़ाई हुई है और इसी दौरान उन्होंने एनसीसी में हिस्सा लिया था। एनसीसी कैडेट के तौर पर राही ने पहली बार हाथों में बंदूक पकड़ी थी। मगर निशानेबाज बनने के बारे में पहली बार राही ने वर्ष 2006 में सोचा।
दरअसल, इसी वर्ष राही के ही स्कूल में पढ़ने वाली तेजस्विनी सावंत ने ऑस्ट्रेलिया में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया था और निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीता था। तेजस्वनी की इस जीत से प्रभावित हो राही ने भी ठान लिया था कि वह इस खेल में खुद को आगे बढ़ाएंगी और देश के लिए नाम कमाएंगी।
बंदूक को कैसे थामा जाता है यह तो राही ने एनसीसी कैडेट बनने के लिए मिली ट्रेनिंग में ही सीख लिया था। मगर एक अच्छा निशानेबाज बनने के लिए उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत थी। इसलिए राही ने अपने शहर में ही खोजबीन शुरू की और तब उन्हें एक शूटिंग रेंज मिली, जहां पर उन्हें यह ट्रेनिंग मिल सकती थी।
लेकिन रही की राहें इतनी आसान नहीं थीं, उन्हें जल्दी ही इस बात का एहसास हो गया था कि कोल्हापुर में निशानेबाजी की ट्रेनिंग लेने में उन्हें असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए राही ने कोल्हापुर की जगह मुंबई में ट्रेनिंग लेने का फैसला लिया। राही के संघर्ष में हर वक्त कोई उनके साथ बना रहा, तो वो थे उनके माता-पिता। राही को अच्छी से अच्छी ट्रेनिंग दिलाने के लिए उनके माता-पिता ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मगर मुंबई जा कर भी राही सरनोबत की समस्या कम नहीं हुई, मगर राही डटी रहीं और आगे बढ़ती रहीं।
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मुंबई के बाद राही ने अपना रुख पुणे की ओर किया और यहां उन्हे शिव छत्रपति स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में एडमिशन भी मिला और कोच के रूप में मुन्खबयार दोर्जसुरेन के रूप में अच्छा ट्रेनर भी।
किसी भी व्यक्ति के हालात हमेशा एक से नहीं होते हैं। कभी न कभी ऐसा वक्त जीवन में जरूर आता है, जब निराशा में जकड़ लेती है। राही के जीवन में भी ऐसा वक्त आया है। वर्ष 2015 में राही को हाथ में चोट लग गई थी और उस वक्त उन्हें लगा था कि वह शायद ही अब कभी बंदूक उठा पाएंगी। इतना ही नहीं, रही ने यह तक सोच लिया था कि वह अब रिटायरमेंट ले लेंगी। मगर जंग के मैदान में जिस तरह सिपाही पीछे नहीं हटता है, उसी तरह एक खिलाड़ी अपने खेल का मोह कभी नहीं त्याग सकता है। यह मोह राही को निशानेबाजी से है और इसी की बदौलत 29 जुलाई 2021 को वह टोक्यो ओलंपिक में महिला 25 मीटर पिस्टल इवेंट में अपनी निशानेबाजी के हुनर का प्रदर्शन करते हुए नजर आएंगी।
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