आजादी की लड़ाई में पुरुषों के साथ कई भारतीय महिलाओं ने भी अपना विशेष योगदान दिया और यह साबित किया कि वह भी किसी से कम नहीं हैं और स्वतंत्र भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ऐसी ही एक प्रतिभावान और निडर महिलाओं में से एक थीं भारत कोकिला की उपाधि से नवाजी गईं सरोजिनी नायडू।
भारत कोकिला के नाम से विख्यात सरोजिनी नायडू ने भारत की आजादी की लड़ाई के लिए कई संघर्ष करते हुए महत्त्वपूर्ण योगदान दिए। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा दिया। कविताएं लिखने की शौक़ीन सरोजिनी नायडू को उनके हुनर की वजह से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत कोकिला की उपाधि से नवाजा था। आइए आज उनके जन्म दिवस की 142 वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए जानें उनसे जुड़ी कुछ बातें और उनके संघर्ष की कहानी।
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता घोरनाथ चट्टोपाध्याय एक नामी वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे तथा उनकी माता वरदा सुंदरी एक कवयित्री थीं। उनकी माता बांग्ला भाषा में कविताएं लिखती थीं। उनके पिता हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने हैदराबाद के निज़ाम कॉलेज की स्थापना की थी। सरोजिनी आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और बचपन से ही होनहार छात्रा थीं। 12 साल की उम्र में ही उन्होंने 10 वीं की परीक्षा पास कर ली थी।
13 वर्ष की आयु में सरोजिनी ने 'लेडी ऑफ दी लेक' नामक कविता रची। सरोजिनी नायडू भी अपनी माता की तरह कविताएं लिखा करती थीं और उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें हैदराबाद के निज़ाम ने विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति दी और उन्होंने किंग कॉलेज लंदन में दाखिला लिया। लंदन मेंपढ़ाई के साथ-साथ कविताएँ भी लिखती रहीं। 'गोल्डन थ्रैशोल्ड' उनका पहला कविता संग्रह था। उनके दूसरे तथा तीसरे कविता संग्रह 'बर्ड ऑफ टाइम' तथा 'ब्रोकन विंग' ने उन्हें एक सुप्रसिद्ध कवयित्री बना दिया।
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अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सरोजिनी ने 19 साल की उम्र में सरोजिनी नायडू ने डॉ गोविंदराजुलू से विवाह कर लिया। डॉ गोविंदराजुलू गैर ब्राह्मण परिवार से थे जबकि सरोजिनी एक ब्राह्मण थीं। उन्होंने अंर्तजातीय विवाह किया जो कि उस दौर में मान्य नहीं था, लेकिन उनके पिता ने उनका पूरा सहयोग किया था। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय रहा और उनके चार बच्चे भी हुए- जयसूर्या, पदमज, रणधीर और लीलामणि।
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गांधी जी से सरोजिनी नायडू के मित्रवत सम्बन्ध थे और गांधी जी ने उनके भाषणों और प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें ‘भारत कोकिला’ की उपाधि दी थी। अपने पत्रों में गाँधी जी उन्हें कभी-कभी ‘डियर बुलबुल’,’डियर मीराबाई’ और कभी ‘मदर’ कहकर संबोधित करते थे।
स्वतंत्रता के बाद 1947 में वह संयुक्त प्रांत जिसका नाम अब अब उत्तर प्रदेश है, की राज्यपाल बनीं। सरोजिनी भारत की पहली महिला राज्यपाल थीं। उत्तर प्रदेश का राज्यपाल घोषित होने के बाद वो लखनऊ में ही बस गयीं। उनकी मृत्यु 2 मार्च 1949 को दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में हुई।
सरोजिनी नायडू के महिलाओं और देश के लिए योगदान को उनके जन्म दिवस पर याद करते हुए हम सभी को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
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Image Credit: wikipedia
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