हमारे देश में महिलाओं को हर दिन कई तरह के जुल्मों-सितम का सामना करना पड़ता है और वे खामोशी से इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेती हैं। सिंधुताई सपकाल, जो आज के समय में लगभग 1200 बच्चों की मां हैं, ने भी अपनी यंग एज में कई तरह के अत्याचार सहे, लेकिन उनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया। सिंधुताई ने ना सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि विषम स्थितियों के बीच अपनी बेटी का भी पालन पोषण किया। इसी दौरान उन्होंने मुश्किलों से जूझते हुए बेसहारा बच्चों को गोद लेने की शुरुआत की। सिंधुताई ने HerZindagi से खास बातचीत की और अपने सामने आने वाले चैलेंज के बारे में बताया। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी के बारे में-
9 साल की उम्र में हुई थी शादी
14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा डिस्ट्रिक्ट में पैदा हुईं सिंधुताई उस परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जो जानवरों को चराया करता था। बचपन से ही उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया। उन्हें पढ़ने की बहुत इच्छा थी और उनके पिता भी चाहते थे कि वह पढ़ें, लेकिन मां के विरोध के चलते ऐसा नहीं हो सका। वह सिर्फ चौथी क्लास तक पढ़ाई कर सकीं। 9 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। सिंधुताई के पति उनसे 21 साल बड़े थे और 20 साल से पहले ही वह तीन बच्चों की मां बन गई थीं।
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सिंधुताई ने शुरू से ही अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद की। उन्होंने अपने गांव के रसूखदार व्यक्ति के खिलाफ भी खुलकर बोला और इसका नतीजा यह हुआ कि उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया गया। उन्हें अपने समुदाय का विरोध झेलना पड़ा और उनकी शादीशुदा जिंदगी भी बर्बाद हो गई। जब वह 9 महीने की गर्भवती थीं, तो उनके पति ने उन्हें घर से निकाल दिया। सिंधुताई बताती हैं, 'बेहोशी की हालत में मैंने जब अपनी बेटी को जन्म दिया तो उस समय में मेरे पास कोई भी नहीं था। मेरे आसपास गाय थीं, वही मेरा सहारा बनीं। 116 बार पत्थर से मारकर मैंने बच्चे की नाल को काटा था। इस वक्त मैंने सोच लिया कि जब मैं इतना कुछ सहन कर सकती हूं तो आगे भी मुझे और मजबूती दिखानी है।'
भक्ति गीत गाकर और भीख मांगकर किया गुजारा
जब सिंधुताई ने बेटी को जन्म दिया, उस समय उनके सिर पर छत नहीं थी, वह पूरी तरह से असहाय थीं। उनकी अपनी मां ने भी उन्हें शरण देने से इंकार कर दिया था। इस समय में वह भीख मांग कर अपना गुजारा चलाती थीं। सिंधुताई बताती हैं,
सिंधुताई ने अपनी बेटी की परवरिश पुणे के Shrimant Dagdu Sheth Halwai trust के हाथों में सौंप दी और इस ट्रस्ट के सपोर्ट से उनकी बेटी ने बीए पास किया।
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अनाथ बच्चों को गोद लेने को बनाया जिंदगी का मकसद
सिंधुताई ने अपनी जिंदगी में जो दर्द सहा, उससे सबक लेते हुए उन्होंने गरीब और अनाथ बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने की ठान ली। उन्होंने अपना जीवन को मासूम बच्चों के लिए समर्पित कर दिया, हालांकि उनके पास रोजी-रोटी का कोई निश्चित साधन नहीं था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उनके लिए सम्मानजनक जीवन जीने का इंतजाम किया। आज उनकी गोद लिए हुए बच्चे नौकरी कर रहे हैं और अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। हालांकि सिंधुताई कि पढ़े-लिखे नहीं होने की वजह से उनके काम को सरकारी मान्यता नहीं मिल सकी है और ना ही सरकार की तरफ से उन्हें कोई अनुदान मिलता है।
पति को गलती का हुआ अहसास
सिंधुताई के बच्चों को गोद लेने की ख्याति बढ़ती गई और इस बारे में जब उनके पति को पता चला तो उन्होंने अपने किए की माफी मांगी। तब सिंधुताई ने उन्हें पति के रूप में स्वीकार नहीं किया। सिंधुताई बताती हैं, 'मैंने अपने पति को उनके किए के लिए उन्हें माफ कर दिया। जैसे मेरे और बच्चे थे, वैसे ही मैंने उन्हें भी अपने बच्चे के रूप में स्वीकार किया।' कुछ साल बाद उनके पति भी चल बसे।
700 सम्मानों से नवाजी जा चुकी हैं सिंधुताई
सिंधुताई को अपने इस नेक काम के लिए अब तक 700 से भी ज्यादा सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उन्हें अब मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह भी उन्होंने बच्चों के पालन पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई को D Y Patil Institute of Technology and Research Pune की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सिंधुताई के जीवन पर बनी एक मराठी फिल्म Mee Sindhutai Sapkal साल 2010 में रिलीज हुई थी और इसे 54वें लंदन फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाया गया था। सिंधुताई अमिताभ बच्चन की शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में भी नजर आई थी और इस दौरान उनकी प्रेरणा देने वाली कहानी दिखाई गई थी। 72 साल की सिंधुताई आज भी बच्चों को अपनाने और उन्हें बेहतर भविष्य देने के लिए कृतसंकल्प है। वह कहती हैं, 'मुझे आगे भी बच्चों को अपनाना है, उनके दुख दूर करने हैं। मेरा यही सपना है कि मैं कुछ साल और जियूं और कुछ और बच्चों की मां बन सकूं।'
Image Courtesy:starofmysore, kalingatv
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