आज के समय में महिलाएं तेजी से प्रगति कर रही हैं, अपनी पढ़ाई-लिखाई और करियर के लिए काफी जागरूक भी हैं। लेकिन पहले के समय में महिलाओं के लिए आगे बढ़ने की राह इतनी आसान नहीं थी। उस दौर में शिक्षा का अभाव था और लोगों की सोच भी उतनी प्रगतिवादी नहीं थी। लेकिन ऐसे समय में भी कुछ महिलाओं ने मिसाल कायम करते हुए देश की लाखों महिलाओं को इंस्पायर करने का काम किया। इन्हीं प्रेरणादायी महिलाओं में शुमार हैं सोनाली बनर्जी, जिन्होंने 20 साल पहले आज ही के दिन देश की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनने का गौरव हासिल किया। दो दशक पहले महिलाएं मरीन इंजीनियर बनने के बारे में सोचना तो दूर, नौकरी करने के बारे में भी मुश्किल से सोचती थीं, लेकिन सोनाली ने मरीन इंजीनियर बनने के लिए कड़ी मशक्कत की और साबित कर दिया कि महिलाएं अगर किसी बात के लिए ठान लें तो उनके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं। सोनाली ने अपने समय में प्रचलित पुरातनवादी सोच को दरकिनार करते हुए महिलाओं के सामने आगे बढ़ने के लिए नया उदाहरण पेश किया। आइए जानें उनकी इस इंस्पायरिंग स्टोरी के बारे में-
अपने चाचा जी से मिली सेना मरीन इंजीनियर बनने की प्रेरणा
Marine Engineering Research Institute
सोनाली हमेशा से ही समंदर और जहाजों से आकर्षित होती थीं। लेकिन मरीन इंजीनियर बनने की प्रेरणा उन्हें अपने चाचा जी से मिली। दरअसल सोनाली के चाचा नौसेना में थे, जिनसे बात करके वह भी जहाजों पर रहकर काम करने के बारे में सोचा करती थीं। उनका यही ख्वाब धीरे-धीरे जुनून में बदल गया और सोनाली ने इसमें करियर बनाने के लिए मरीन इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया।
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रंग लाई 4 साल की कड़ी मेहनत
सोनाली बनर्जी ने 1995 में IIT का एंट्रेंस एक्जाम पास किया और मरीन इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। उन्होंने कोलकाता के करीब तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (MERI) से कोर्स पूरा किया। दिलचस्प बात ये है कि सोनाली जिस वक्त मरीन इंजीनियर बनीं, उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 22 साल थी।
इन चुनौतियों का सामना करना पड़ा
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सोनाली ने एमईआरआई इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने के समय कई मुश्किलों का सामना किया। दरअसल सोनाली अपने समय की अकेली महिला स्टूडेंट थीं, इसी कारण कॉलेज प्रशासन के सामने एक मुश्किल ये थी कि उन्हें कहां ठहराया जाए। तमाम चर्चाओं और विचार-विमर्श के बाद इस बात पर सहमति बनी कि उन्हें ऑफिसर्स क्वार्टर में ठहराया जाए। तब सोनाली 1500 कैडेट्स में अकेली महिला कैडेट थीं। इस कोर्स को पूरा करने के बाद 27 अगस्त, 1999 को सोनाली भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनकर एमईआरआई से बाहर निकलीं।
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हांगकांग और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ली Pre-Sea Course की ट्रेनिंग
मरीन इंजीनियरिंग का कोर्स करने के बाद सोनाली बनर्जी का Mobil Shipping Company के 6 महीने के Pre-Sea कोर्स के लिए सेलेक्शन हो गया। इस दौरान उन्होंने सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, हांगकांग, फिजी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में दिल लगाकर अपनी ट्रेनिंग पूरी की। हालांकि यह दौर उनके लिए काफी मुश्किल था, क्योंकि लंबे वक्त से वह घर से दूर थीं। लेकिन इन मुश्किलों से बिना घबराए सोनाली ने आखिरकार अपनी मंजिल पा ही ली।
इस तरह महिलाएं बन सकती हैं मरीन इंजीनियर
Representational Image
आज के समय में मरीन इंजीनियर महिलाओं के लिए एक बेहतरीन करियर साबित हो सकता है, क्योंकि इसमें पूरी दुनिया घूमने के साथ सैलरी पैकेज भी काफी अच्छा मिलता है। इस करियर में महिलाएं 64000 रुपयों से 96000 रुपये प्रति माह सैलेरी पा सकती हैं।
मरीन इंजीनियर बनने के लिए महिलाओं को ग्रेजुएट होना जरूरी है। जो युवा मरीन इंजीनियर बनना चाहती हैं, उनके लिए 12वीं में 60 फीसदी अंक लाना अनिवार्य है, साथ में 12वीं में कैमिस्ट्री, फिजिक्स और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट होने जरूरी हैं। मरीन इंजीनियर बनने के लिए दो तरह के कोर्स कराए जाते हैं। इनमें बीटेक इन मरीन इंजीनियरिंग और बीटेक इन नेवल आर्किटेक्ट एंड ओशन इंजीनियरिंग शामिल हैं। अगर महिलाएं चाहें तो सरकारी संस्थानों से ये कोर्स कर सकती हैं। कई प्राइवेट इंस्टीट्यूट भी ये कोर्स कराते हैं। मरीन इंजीनियरिंग कोर्सेज में एडमिशन के लिए लिखित परीक्षा, इंटरव्यू, साइकोमीट्रिक टेस्ट और मेडिकल टेस्ट जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। महिलाएं चाहें तो मास्टर्स भी कर सकती हैं। इसमें विषय का दायरा बढ़ जाता है और इसमें नेवल आर्किटेक्ट जैसे विषय भी शामिल हो जाते हैं।
मरीन इंजीनियर बनने के लिए ये क्षमताएं हैं जरूरी
- मजबूत प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स
- मैथ्स और आईटी स्किल्स
- कम्यूनिकेशन और निगोसिएशन स्किल्स
- तकनीकी ज्ञान में कुशलता
- टीम मैनेज करने की क्षमता
- कंप्यूटर से बनाई जाने वाले डिजाइन और मैन्युफेक्चरिंग स्किल्स में कुशलता
- बजट मैनेजमेंट स्किल्स
- समुद्र में हर तरह की खराब परिस्थिति में शिप पर काम करने की क्षमता
- महीनों परिवार से दूर रहने की क्षमता
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