अपने बारे में पहले सोच रही है...अपने बच्चे को घर पर छोड़कर ऑफिस जा रही है...मां बन गई है फिर भी इसे अपने करियर की पड़ी है...इसे खाना बनाना नहीं आता है...ये कैसी मां है...ये अच्छी मां तो बिल्कुल नहीं है।
हमारे समाज में 'गुड मदर' यानी की अच्छी मां को उम्मीदों के बोझ तले दबा दिया गया है। क्या मां का मां होना काफी नहीं है? क्यों मां के लिए खुद को सबसे पीछे रखना जरूरी है? अगर अपने बच्चों को खाता देख मां का पेट भर जाए तो वह अच्छी मां है लेकिन अगर वह कभी अपनी पसंद का खाना बनाकर खाने लगे तो उसे गिल्ट में ही डाल दिया जाता है।
अगर कोई औरत अपनी मर्जी से मां नहीं बनना चाहती है या फिर किसी और वजह के चलते वह मां न बनने का फैसला लेती है तो उसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़े कर दिए जाते है। आखिर क्यों? इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढते हुए हरजिंदगी के Good Mother Project के तहत आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा से, जो मदरहुड की परिभाषा को बदल रही हैं। मां के लिए मां होना ही काफी है। मां भी एक इंसान है, जिसके अपने सपने और अपने ख्वाहिशे हैं, यह बात अब समझना जरूरी हो गई है।
डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा से हमने मदरहुड गिल्ट, मां बनने के बाद करियर में आने वाले बदलावों , किसी औरत के मां न बनने के फैसले और भी इससे जुड़े कई पहलुओं पर बातचीत की और उनकी राय जानने की कोशिश की। डॉक्टर फाल्गुनी वसावड़ा सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं, TedX स्पीकर हैं, डबल गोल्ड मेडलिस्ट हैं, दो दशकों से लेक्चरर हैं और एक बेमिसाल महिला हैं। डॉक्टर वसावड़ा MICA अहमदाबाद में लेक्चरर हैं।
हमारी फिल्मों, टीवी या फिर एडवरटिजमेंट्स ने मां का जो कॉन्सेप्ट हमेशा से बढ़-चढ़ कर दिखाया है उसके हिसाब से एक आदर्श मां अपने आप को सबसे पीछे रखती है, वह त्याग की मूरत है और अपना पेट काटकर भी वह अपने बच्चों का पेट भरती है। क्या आपको लगता है कि यह कॉन्सेप्ट असल में प्रॉब्लमेटिक है?क्या एक मां के लिए अपने-आप को सबसे पीछे रखकर अपने बच्चों और बाकी परिवार को आगे रखना जरूरी है?
मां के बारे में हमारी फिल्में हों, टीवी हो या सोसाइटी, सभी जगह यही धारणा है कि मां को खुद को पीछे रखना चाहिए, जो कि गलत है। फिल्मों में तो वही दिखाया जाता है जो असल में समाज में हो रहा है। जिस तरह से जेंडर के आधार पर सभी की भूमिकाएं बांट दी गई थी, महिलाएं घर संभालेंगी, पुरुष बाहर जाकर पैसा कमाएंगे, वैसे ही एक मां के लिए यही माना जाता है कि उसे खुद को सबसे पीछे रखना चाहिए। अगर कोई औरत 'मां' है तो उसके दोस्त नहीं हो सकते हैं, उसे अपने बच्चों का पेट पहले भरना चाहिए, इस तरह की स्टीरियोटाइप्स आज भी चली आ रही हैं। ये स्टीरियोटाइप्स बदलने की जरूरत है क्योंकि असल में यही सबसे बड़ी प्रॉब्लम है।
मां को देवी की पदवी दी गई है, लेकिन उसके बदले जो जरूरत से ज्यादा उम्मीदें एक मां से की जाती हैं जैसे कि एक मां कभी थक नहीं सकती है, कभी आराम नहीं कर सकती है। एक तरह से यह जो छलावा है मां के साथ, क्या ये जायज है?
मां बनने के बाद किसी भी औरत से बहुत अधिक उम्मीदें की जाने लगती हैं और अगर आप उन उम्मीदों पर थोड़ा भी खरा नहीं उतरती हैं तो आपको अच्छी मां नहीं माना जाता है। असल में मां को देवी बनने की, सुपर ह्यूमन बनने की कोई जरूरत नहीं है। घर में जैसे बाकी इंसान हैं, उन्हीं की तरह मां भी एक इंसान है, सबसे पहले इस बात तो समझना जरूरी है। मां भी एक इंसान है जिसे 'सांस' लेने की जरूरत है, उससे भी गलतियां हो सकती हैं और हो सकता है कि उसे भी कुछ चीजें न आती हों। किसी भी मां को सब कुछ पता हो यह जरूरी नहीं है। वह भी सीख रही है। उसे भी गलतियां करने का हक है। वह पहली बार मां बनी है, यह सफर उसके लिए भी नया है। मां को सब कुछ आना चाहिए, सब पता होना चाहिए, उससे कोई गलती नहीं होनी चाहिए, ये जो स्टैंडर्ड सोसाइटी ने सेट कर दिए हैं उन्हें अगर 2023 में चैलेंज नहीं किया जाएगा तो कब किया जाएगा? मां होने का मतलब यह नहीं है कि आपको खाना बनाना आना चाहिए,आपको सफाई करना चाहिए, ये लाइफ स्किल्स हैं ये सबको आने चाहिए। मां होने का मतलब खुद को कार की बैकसीट पर रखना या फिर हमेशा त्याग करना नहीं है। इन उम्मीदों पर जब कोई महिला खरा नहीं उतरती है तो कह दिया जाता है कि ये कैसी मां है? असल में यह गलत है।
मॉम गिल्ट के बारे में आपकी क्या राय है? महिलाओं को इससे कैसे निकलना चाहिए?
महिलाओं में किसी भी विटामिन या न्यूट्रिशन की कमी हो सकती है लेकिन अगर गिल्ट की मात्रा को चेक करना संभव होता तो वो जरूरत से बहुत ज्यादा निकलेगी और डॉक्टर आपको इस बात की सलाह देंगे कि उसे कैसे कम किया जाए? पहले यह समझना जरूरी है कि यह गिल्ट क्यों होता है...इसके पीछे वजह ये है कि बचपन से हमने अपनी मां को , दादी को , नानी को या घर की और महिलाओं को घर के हर काम के लिए भागते हुए देखा है। अगर अचार का सीजन चल रहा है तो वो अचार डालेंगी, चिप्स बनाएंगी , पापड़ बनाएंगी। आपने हमेशा भागती दौड़ती मां ही देखी है,कभी आराम करती हुई मां नहीं देखी है। इसी वजह से हम सभी के मन में और खासकर जो महिलाएं नई मां बनती हैं उनके मन में मां की एक छवि बन गई है और जब भी वह उस छवि से थोड़ा भी अलग हटती हैं तो गिल्ट महसूस होता है। मां के ऊपर जो परफेक्ट होने का प्रेशर है जो अपने बच्चे को , परिवार को अकेले संभालने का प्रेशर है, उसी की वजह से ये गिल्ट है। अगर किसी नई मां को विदेश में नौकरी मिल जाती है तो सब उससे यही सवाल पूछेंगे कि बच्चे को किस के भरोसे छोड़कर जा रही हो? बच्चे की टेक-केयर की जब बात आती है तो उसमें मां और पापा के रोल को बहुत अलग कर दिया गया है। इस अपराधबोध को कम करने के लिए हम सभी को काम करना होगा।
हमारी सोसाइटी में, घरों में यहां तक कि वर्कप्लेस पर भी महिलाओं को लेकर काफी सेक्सिस्ट अपोर्च रही है। चाहे अगर वर्कप्लेस की पॉलिसीज की बात करें तो मैटरनिटी लीव और पैटरनिटी लीव में काफी अंतर होता है क्योंकि यह माना जाता है कि बच्चे को पालने में सिर्फ मां की ही भूमिका है। इस बारे में आपकी क्या राय है और जो यंग जेनरेशन है, जिन्हें आगे चलकर इन पॉलिसीज में बदलाव लाना है, उन्हें आप क्या कहना चाहेंगी?
6 महीने की जो मैटरनिटी लीव कंपनी किसी महिला को दे रही है वो इक्विटी है क्योंकि महिला के शरीर से बच्चा पैदा हुआ है। उसे हील होने में 6 महीने लगेंगे। बच्चा अभी ब्रेस्ट फीड कर रहा है और इस दौरान महिलाओं को लीव मिलना जरूरी है लेकिन साथ ही 6 महीने के बाद उसे वापिस काम पर आने के लिए भी पूरा सपोर्ट मिलना चाहिए। वर्कप्लेस पर क्रेच फैसिलिटी होनी चाहिए। अगर कोई पिता अपने बच्चे को ऑफिस लेकर आता है तो कंपनी की क्या पॉलिसी है? क्रेच फैसिलिटी वर्कप्लेस पर दी जाने वाली बेसिक फैसिलिटी होनी चाहिए, वरना वही होगा जो अभी हो रहा है। महिलाओं को मां बनने के बाद अपने करियर को छोड़ना पड़ेगा क्योंकि उनके पास कोई सपोर्ट नही होता है। अगर ऑफिस नई मां को वर्क फ्रॉम होम की फैसिलिटी नहीं देता है, फ्लेक्सिबल टाइमिंग नहीं देता है, क्रेच फैसिलिटी नहीं देता है तो महिलाओं के पास जॉब छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। आप अगर मिड एज में अपनी जॉब छोड़ देंगी तो आप लीडरशिप रोल तक पहुंचेंगी ही नहीं और इसी वजह से महिलाएं लीडरशिप रोल में मिनिमम हैं। यह ऑफिस पर भी सवालिया निशान खड़ा करता है। महिलाएं ज्यादातर फील्ड में इसी वजह से लीडरशिप तक नहीं पहुंच पाती हैं। यह इनइक्वलिटी को दर्शाता है।
मां बनने के बाद किसी भी महिला से उम्मीद की जाती है कि वह अपना करियर छोड़ दे जो कि गलत है। मां बनने के बाद भी किसी महिला के लिए अपने करियर पर फोकस करना क्यों जरूरी है? और अगर वह ऐसा करती है तो क्या वह सेल्फिश है?
नहीं,यह बिल्कुल सेल्फिश डिसीजन नहीं है बल्कि ये बहुत जरूरी है। किसी भी महिला के लिए अपने पैरों पर खड़ा होना बहुत जरूरी है ताकि वह सम्मान के साथ जीवन जी सके। आज कोई महिला अपने पति के भरोसे नौकरी छोड़ देती है लेकिन कल को अगर उसके हसबैंड को कुछ हो गया तो वह किस तरह निर्भर होगी? महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी तभी वह डिगनिटी के साथ रह पाएंगी। दूसरा सिर्फ घर पर रहकर आपकी पर्सनालिटी उतनी डेवलेप नहीं होगी जितनी घर से बाहर निकलकर काम करने पर होगी। आप नई चीजें सीखेंगी, जानेंगी, आपका खुद का एक सोशल सर्किल होगा। घर के रूटीन हालात से कुछ बदलाव सभी के लिए जरूरी है। खुद के डेवलेपमेंट के लिए काम करना, पैसे कमाना और अपनी ग्रोथ के लिए सोचना ये बिल्कुल सेल्फिश नहीं है बल्कि यह जरूरी है।
पहले पत्नी और फिर मां बनने के बीच, किसी भी महिला की अपनी पहचान कहीं खो जाती है। क्या आपको लगता है कि महिलाओं को और किसी भी रोल से पहले अपनी खुद की पहचान पर ध्यान देना चाहिए?
अपनी- व्यक्तिगत पहचान बनाए रखना किसी भी महिला के लिए बहुत जरूरी है। इसे बिल्कुल भी न छोड़ें। इसके लिए अपनी पसंद-नापसंद का ध्यान रखें। सेल्फ ग्रूम करना, खुद के पैरेंट्स, सिबलिंग, अपने दोस्तों के साथ टच में रहना, ये बहुत छोटी सी बातें हैं लेकिन महिलाएं अक्सर शादी के बाद और खासतौर पर मां बनने के बाद इन चीजों को पीछे छोड़ देती हैं। मां बनने के बाद अपनी दुनिया में खो जाना आसान है लेकिन अपनी पहचान पर काम करना मुश्किल है । खुद को सशक्त बनाने के लिए बेबी स्टेप लें। महीने में एक बार सलून जाएं। अपने फ्रेंड्स के साथ कॉफी डेट पर जाएं। अपने मम्मी-पापा को कॉल करें। घर में एक दिन अपनी पसंद का खाना बनवाएं। आपको खुद को इतना सक्षम बनाना है कि आप अपनी जिंदगी अकेले जी सकें। जो चीजें आपको खुशी देती हैं उन्हें करना बिल्कुल भी न छोड़ें।
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घर हो या ऑफिस, कैजुअल सेक्सिजम हर जगह देखने को मिलता है, इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?
यहां मैं आपको अपना ही एक उदाहरण देती हूं। जब मैंने प्रोफेसर की नई नई जॉब शुरू की थी उस वक्त मैं तकरीबन 25 साल की रही होउंगी। मैं अपने टैक्स डिडक्शन के डॉक्यूमेंट सबमिट करने गई तो मुझसे अकाउंटेंट ने पूछा कि आपने ये अपने पति को दिखा तो दिए हैं ना? अगर बात इंक्रीमेंट की होती है तो भी अक्सर यह कहा जाता है कि आपको क्या करना इंक्रीमेंट का...आपकी तो सेकेंड इनकम है। ऑफिस यो या घर, कैजुअल सेक्सिजम भर भर के है। घर पर भी कई चीजों में महिलाओं को ऐसा कह दिया जाता है कि तुम इस चीज में मुंह मत खोलो। यह तुम्हारा काम नहीं है या यह प्रॉपर्टी की बात है, तुम्हें समझ नहीं आएगी। लेडीज बाद में खाएंगी, बच्चे और पुरुष पहले खाएंगे, ये कैजुअल सेक्सिजम है। इसे पहचानना और इसके खिलाफ रेड फ्लैग खड़ा करना बहुत जरूरी है। हर बात पर झंडा लेकर न खड़ी हों लेकिन ये समझें कि कहां पर सामने वाले को रोकना जरूरी है।
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ये जो स्टीरियोटाइप है अच्छी मां का, अच्छी मां होती कौन है? इस स्टीरियोटाइप को हम कैसे चैलेंज कर सकते हैं?
हमें इस स्टीरियोटाइप को तोड़ना है, इसमें सैटल नहीं होना है। गिल्ट रिमूव करो। अपनी आइडेंटिटी पर फोकस करो। खुद को प्राथमिकता दो। अपनी पसंद-नापसंद को इग्नोर मत करो। आप भी इमोशन्स के साथ एक इंसान हैं।आप भी थक सकती हैं।आप भी हार सकती हैं। इस बात को एक्सेप्ट करो। जब ज्यादा से ज्यादा स्त्रियां ये एक्सेप्ट करेंगी और खुद पर वर्क करने लगेंगी तो अपने आप आगे की जेनरेशन अच्छी मां की नई परिभाषा को जान पाएंगी,उसे समझ पाएगी। एक स्ट्रांग विमेन जो खुद पर फोकस करती है,जो सेल्व लव में बिलीव करती है, जो करियर ओरिएंटेड है, जिसे ट्रैवल करना पसंद है, वो एक अच्छी मां है और यही अच्छी मां की नई परिभाषा है। मैं देख रही हूं कि यह बदलाव आ रहा है। आजकल महिलाओं को यह कहने में दिक्कत नहीं है कि मुझे कुकिंग नहीं पसंद है। वो काफी हद तक फाइनेंशियल इनडिपेंडेंट है। जो आगे की जेनरेशन्स हैं वो अब इन्हें देखेंगी तो काफी हद तक रियल गुड मदर की पुरानी धारणा में बदलाव आएंगे। (मदर्स डे)
हमारे समाज में जब तक कोई औरत मां नहीं बनती है उसे पूरा नहीं माना जाता है, इस बारे में क्या कहना चाहेंगी आप?
इस पूरी आइडियोलॉजी को हमें कहीं पर ब्रेक करना होगा। किसी भी औरत के सैटल होने का मतलब शादी बिल्कुल नहीं है बल्कि फाइनेंशियली किसी पर निर्भर न होना है। अगर ये कहा जाता है कि मां बने बिना कोई औरत पूरी नहीं है तो ये भी गलत धारण है। मदरहुड एक च्वॉइस है। हो सकता है कि कोई महिला मां बनना न चाहती हो या फिर किन्हीं बायलॉजिकल वजहों से वह मां नहीं बन पा रही है, दोनों अपनी जगह पर सही हैं।आप की शादी नहीं हुई है या फिर शादी हुई है पर आप मां नहीं हैं, तब भी आप अपने आप में पूरी हैं।
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Image Credit- Falguni Vasavada Instagram
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