पैरेंट्स बनना दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है। जब उनकी दुनिया में किसी नन्हे की किलकारी गूंजती है, तो उन्हें बहुत खुशी होती है। हालांकि, जब बच्चे का जन्म होता है, तो वह रोते हुए ही बाहर आता है। रोना, नवजात बच्चे के स्वस्थ होने का प्रतीक माना जाता है। शुरुआत में बच्चा रोकर अपने माता-पिता को अपने इमोशन्स बताता है और नये पैरेंट्स को आने वाले दिनों में या कुछ हफ्तों में बच्चे के रोने से उसकी भावनाओं को समझने की आदत हो जाती है। लेकिन, क्या आपने ध्यान दिया है कि जब आपका न्यू बॉर्न बेबी रोता है, तो उसके आंसू नहीं निकलते हैं?
नवजात बच्चे के आंसू नहीं निकलने की वजह
भले ही आंसू आपकी आंखों की रक्षा करते हैं और उनको नम रखने में मदद करते हैं। लेकिन, आंखों से आंसू लैक्रिमल ग्रंथियों की वजह से आते हैं। लैक्रिमल ग्रंथियों में ही आंसू बनते हैं और ये ग्रंथियों हमारी आंखों के किनारों पर मौजूद होती हैं। आंखों के ऊपर किसी बादाम के आकार की होती हैं और यहीं से आंसू निकलते हैं। आंसू, आंखों के ऊपर से होते हुए हमारी आंसू नलिकाओं(Tear Ducts) में आ जाते हैं और फिर बहने लग जाते हैं। टीयर डक्ट आंखों के किनारों पर अंदर की तरफ होते हैं।
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लैक्रिमल ग्रंथियां विकसित नहीं होती
जब बच्चा पैदा होता है, तो उसकी लैक्रिमल ग्रंथियां पूरी तरह से डेवलेप नहीं होती हैं। जिसकी वजह से न्यू बॉर्न बेबी जब रोते हैं, तो उनकी आंखों से आंसू नहीं निकलते हैं। जब बच्चा 3 हफ्ते का हो जाता है, तो लैक्रिमल ग्रंथियां विकसित होना शुरू होती हैं। लेकिन, उतने आंसू नहीं बनते हैं कि रोने पर आपको नजर आने लगें। हालांकि, एक से लेकर 2 महीने के बीच लैक्रिमल ग्रंथियों में आंसू डेवलेप हो जाते हैं और जब बच्चा इस उम्र में रोता है, तो आप उसके आंसू देख सकते हैं।
कभी-कभी 1 या 2 महीने के बच्चे जब रोते हैं, तो उनके आंसू नहीं निकलते हैं। इसका कारण डिहाइड्रेशन भी हो सकता है, इसलिए बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग जरूर कराएं। इसके अलावा, आपके नवजात बच्चे की आंखों में बिना रोए ही आंसू बने रहते हैं, तो उसके टीयर डक्ट ब्लॉक हो सकते हैं। यदि, उसकी आंखें लाल हो रही हैं और सूजन है, तो आंख में इंफेक्शन भी हो सकता है। ऐसे में, आपको तुंरत डॉक्टर के पास बच्चे को लेकर जाना चाहिए।
क्या न्यू बॉर्न बेबी के पसीना भी नहीं निकलता?
न्यू बॉर्न बेबी की आंखों में आंसू नहीं आने के अलावा, भरी गर्मी में उनको पसीना भी नहीं आता है। इसकी वजह, पसीने की ग्रंथियों का पूरी तरह से विकास नहीं होना माना जाता है। इंसान में दो तरह की पसीने की ग्रंथियां होती हैं, जिन्हें एक्राइन और एपोक्राइन ग्रंथियां कहते हैं। ये दोनों ग्रंथियां न्यू बॉर्न बेबी में तब बनती हैं, जब उनसे पसीना नहीं भी निकलता है।
एपोक्राइन ग्रंथियां रोमछिद्र के जरिए पसीना निकालती हैं, लेकिन Puberty के दौरान हॉर्मोनल चेंज होने तक एक्टिव नहीं होती हैं। प्रेग्नेंसी के चौथे महीने के दौरान, एक्राइन ग्रंथियां बनना शुरू हो जाती हैं, जो पहले ही भ्रूण की हथेलियों और उसके पैर के तलवों पर दिखाई देती हैं। 5वें महीने तक, एक्राइन ग्रंथियां भ्रूण के पूरी शरीर को कवर कर लेती हैं। जब नवजात बच्चा दुनिया में कदम रखता है, तो उसके माथे पर सबसे ज्यादा एक्टिव एक्राइन ग्रंथियां होती हैं। जब ये ग्रंथियां पसीना निकालना शुरू करती हैं, तो कुछ पैरेंट्स डर भी जाते हैं कि उनके बच्चे को दूध पीते या सोते समय बहुत ज्यादा पसीना आता है। इसकी वजह देखभाल करने वाले के शरीर की गर्मी भी बच्चे में ट्रांसफर होना भी है।
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जब नवजात शिशु को बहुत ज्यादा गर्मी लगती है, तो उसकी स्कीन रेड होने लगती है, तेज सांस लेने लगता है और उसमें चिड़चिड़ापन हो जाता है। ऐसे में पैरेंट्स को बच्चे के कपड़ों की एक लेयर को हटा देना चाहिए। इसके अलावा, जब बच्चे का वजन बढ़ रहा होता है, तब तक पसीना आना चिंता की बात नहीं मानी जाती।
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