पीरियड्स एक महिला की लाइफ का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। रेगुलर पीरियड्स होने का यह संकेत है कि एक महिला की बॉडी ठीक तरह से काम कर रही है। लेकिन लाइफ स्टाइल में बदलाव और तनाव के बढ़ने से पीरियड्स में प्रॉब्लम्स आने लगती है। यह एक ऐसी स्थिति है जो आपको परेशानी में डाल सकती हैं इसलिए इसके बारे में आपको विचार करने की जरूरत है। इस समस्या के चलते आपको पीसीओडी और पीसीओएस की समस्या हो सकती है। आइए सबसे पहले जानें पीसीओडी और पीसीओएस क्या है?
अक्सर, महिलाएं अनियमित पीरियड्स और हार्मोनल असंतुलन की समस्या को अनदेखा कर देती हैं, लेकिन वह यह नहीं जानती है कि उनकी यह आदत अन्य समस्या का मूल कारण हो सकती है। कई महिलाएं अक्सर इन लक्षणों को अनदेखा करती हैं और इससे उनको बाद में खतरनाक हेल्थ प्रॉब्लम्स हो सकती है। उनमें से एक पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि सिंड्रोम (पीसीओएस) और पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि रोग (पीसीओडी) है।
पीसीओएस और पीसीओडी की समस्या हार्मोनल असंतुलन के कारण होती हैं और अंडाशय की खराबी से जुड़ी होती है। दोनों एक ही समस्या नहीं है बल्कि इसमें थोड़ा सा है, लेकिन महत्विपूर्ण फर्क है। पीसीओडी के मामले में, महिलाएं के बॉडी में बहुत सारे बालों की ग्रोथ होने लगती है और पीसीओएस में बाल झड़ने लगते है। वास्तव में, पीसीओएस अधिक गंभीर है, क्योंकि यह एक दुष्चक्र है, जिसमें ओवरी में बहुत सारे सिस्ट बनने लगते हैं।
आज, कई महिलाएं पीरियड्स और प्रेग्नेंसी से संबंधित मुद्दों के बारे में बात करती हैं, लेकिन पीसीओएस के बारे में शायद ही कोई महिला बात करती हो जबकि इसके बारे में बात करना जरूरी होता है। पीसीओएस महिलाओं में हार्मोनल डिसऑर्डर है और आज महिलाओं में इनफर्टिलिटी का प्रमुख कारण है। यह एंड्रोजन के हाई लेवल, या 'पुरुष' हार्मोन, मुख्य, टेस्टोस्टेरोन के कारण होता है। पीसीओएस का पता लगाने के तरीकों में से एक ओवरी में सिस्ट का मौजूद होना है। ये सिस्ट आमतौर पर बनते हैं क्योंकि ओवरी के अंदर कोई प्रभावशाली और परिपक्व फोलिकल्स नहीं होता है जो अंडे को रिलीज कर सकें। इसलिए, जब कोई प्रभावशाली फोलिकल्स नहीं होता है, तो कोई अंडे नहीं होते है और ओवरी फोलिक्लस को बढ़ना बंद कर देती हैं जिससे सिस्ट बन जाते हैं। यह बॉडी के अंदर इंसुलिन लेवल के असामान्य रूप से हाई लेवल के कारण भी हो सकता है, जिससे ओवरी में टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन में वृद्धि होती है।
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पूरे भारत में मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 18 महीने की अवधि में टेस्टोस्टेरोन के 27,411 नमूनों में से लगभग 4,824, (17.60%) महिलाओं को पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि सिंड्रोम प्राप्त करने का खतरा सामना करना पड़ा। यह सुझाव देता है कि पीसीओएस के बढ़ते मामलों को आमतौर पर 15 से 30 साल की आयु के महिलाओं में देखा जाता है। इससे पता चला है कि पूर्वी भारत में लगभग 25.88% महिलाएं, उत्तर भारत में 18.62%, पश्चिम भारत में 19 .8% और दक्षिण भारत में 18% पीसीओएस से प्रभावित होती हैं। ये चौंकाने वाली संख्या स्पष्ट रूप से भारत में महिलाओं के बीच जागरूकता और अज्ञानता की कमी को दर्शाती है। यह और अधिक खतरनाक बनाता है कि बीमारी के लक्षणों की भिन्नता और अस्पष्टता क्या है।
आज भारत में 5 महिलाओं में से एक इस बीमारी से ग्रस्त हैं। भारत में पीसीओएस से अधिक महिलाएं पीड़ित हैं। ऐसा उनकी लाइफस्टाइल, फास्ट फूड, और चीनी से भरपूर फूड, फिजीकल एक्टिविटी जैसे रानिंग, आउटडोर गेम और स्ट्रेस का हाई लेवल।
हमने स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टलर देवीयानी पटेल से पूछा कि पीसीओएस के खतरे के बारे में, अगर इलाज नहीं किया गया है, तो उन्होंने कहा, "पीसीओएस, अगर ठीक से इलाज नहीं किया गया तो इनफर्टिलिटी, पीरियड्स में हैवी या कम ब्लीडिंग, मोटापे, डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और यूटरस कैंसर जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। " उन्होंने यह भी कहा कि, "बीमारी के साथ प्रमुख चिंताओं में से एक यह भी है कि प्रत्येक रोगी में लक्षणों की भिन्नता देखने को मिलती है। एक महिला मोटापे से ग्रस्त हो सकती है तो दूसरी को अनियमित पीरियड्स तो किसी को फर्टिलिटी संबंधी समस्याएं हो सकती है।
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यह एक ऐसी बीमारी जो ऐसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकती है और कैंसर के खतरे को भी बढ़ा सकती है। अब इसे अधिक गंभीरता से संबोधित किया जाना चाहिए। यह सही समय है कि जब हमें इसके बारे में बात करना शुरू करना चाहिए, और अगर आप या आपकी करीबी कोई महिलाएं पीसीओएस से पीड़ित है तो बेहतर होने और स्वस्थ जीवन शैली को स्वीकार करने में उनकी मदद करने की आवश्यकता है।
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