मौसम के बदलने के साथ-साथ बीमारियों का घेरा भी शुरू हो जाता है। मौसम जैसे-जैसे बदलता है इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है। कम इम्यूनिटी होने के कारण बच्चों की परेशानियां बढ़ जाती हैं और ऐसे में माता-पिता की चिंता भी बढ़ती है। बच्चों की बीमारियां हमेशा अपने साथ कुछ ना कुछ साइड इफेक्ट भी लेकर आती हैं और इससे बच्चों की सेहत पर खराब असर पड़ सकता है।
बच्चों को किन बीमारियों से बचना चाहिए और क्या नियम सही होते हैं ये जानने के लिए हमने एस्टर CMI हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी और स्लीप मेडिसिन पिडिएट्रिक कंसल्टेंट डॉक्टर श्रीकांत जे.टी. से बात की है। उन्होंने हमें बच्चों की बीमारियों से जुड़ी कई सारी बातें बताई हैं।
डॉक्टर श्रीकांत के मुताबिक 1 से 3 साल तक के बच्चे साल में 9 बीमारियां देखते हैं। 4-10 साल की उम्र के बच्चे साल में 4-6 बीमारियां देखते हैं। बदलते मौसम में पानी से होने वाली समस्याएं, खाने से होने वाली समस्याएं आदि बहुत बढ़ जाती हैं।
आखिर बच्चों को क्यों होते हैं ज्यादा इन्फेक्शन?
बच्चों को किस तरह की बीमारियां होंगी ये उनके आस-पास की स्थिति पर निर्भर करता है। बच्चे ज्यादातर समय बाहर बिताते हैं और वो जमीन से नजदीक होते हैं। बहुत छोटे बच्चे कई बार आस-पास मिली चीज़ों को उठाकर अपने मुंह में डाल लेते हैं जिससे वो बीमार पड़ जाते हैं। इसी के साथ, परिवार में मौजूद बीमार व्यक्ति से उनको इन्फेक्शन लगने का खतरा ज्यादा होता है। इसका कारण होता है उनका इम्यून सिस्टम। क्योंकि अभी उनका विकास हो रहा है इसलिए उनका शरीर वायरस से लड़ने के लिए ठीक नहीं है।
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5 बीमारियां जो 10 साल से कम उम्र के बच्चों को करती हैं ज्यादा परेशान-
अब बात करते हैं उन बीमारियों की जिनसे 10 साल से कम उम्र के बच्चों को हमेशा बचाना चाहिए-
चिकनपॉक्स-
भारत अब भी उन देशों में से एक हैं जहां ये बीमारी काफी ज्यादा होती है। जहां एक ओर ये अच्छी इम्यूनिटी वाले एडल्ट्स को ज्यादा परेशान नहीं करती है वहीं कम उम्र के बच्चों के लिए ये खतरनाक हो सकती है। ये हवा में फैलने वाले वायरस से होती है और ये शरीर पर लाल फोड़े के रूप में पहचानी जाती है। इसमें बुखार और सर्दी के साथ-साथ खुजली, बदन दर्द जैसी समस्याएं भी होती हैं।
चिकनपॉक्स अब भी उन बच्चों में देखी जाती है जिन्हें या तो वैक्सीन नहीं लगा है या फिर उनकी इम्यूनिटी कम है। चिकनपॉक्स का वैक्सीन 12-15 महीने की उम्र में लगता है और इसका बूस्टर डोज 4-6 साल की उम्र में लगता है।
इन्फ्लूएंजा-
इन्फ्लूएंजा वायरस चार तरह के होते हैं जिनमें A, B, C और D शामिल हैं। ए और बी टाइप वायरस ठंड और बदलते मौसम में बहुत तेजी से फैलते हैं। फ्लू की वजह से लंग्स, नाक, गला आदि चोक होने लगते हैं और सर्दी के साथ-साथ बुखार, कंपकंपी, दर्द, कफ आदि समस्याएं होती हैं। कुछ मामलों में उल्टी, चक्कर आना, डायरिया, थकान आदि समस्याएं होती हैं।
इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप हर साल वैक्सीन लगवाएं। इससे बच्चे को एंटीबॉडी बनाने में मदद मिलेगी। डॉक्टर आपको वैक्सीन से जुड़ी सारी जानकारी दे देगा। अगर बच्चे को सांस लेने में दिक्कत हो रही है या बुखार जरूरत से ज्यादा है तो डॉक्टर को तुरंत दिखाएं।
निमोनिया-
ये एक तरह का लंग इन्फेक्शन है जो वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। इससे सांस लेने में समस्याएं होती हैं और सर्दी और खांसी जरूरत से ज्यादा होती है। ये इन्फेक्टेड इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है। 2 साल से कम उम्र के बच्चे इसकी चपेट में आ जाएं तो ये बहुत बड़ी समस्या बन सकता है। अगर सांस लेने में दिक्कत हो रही है, फीवर जरूरत से ज्यादा है, सर्दी लग रही है, चेस्ट पेन है, मांसपेशियों में दर्द है, चक्कर आ रहा है, भूख नहीं लग रही है तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
न्यूट्रिशन की कमी, साफ पानी और सैनिटेशन की कमी, वायु प्रदूषण, सही हेल्थ केयर ना मिलना ये सब कुछ निमोनिया से जुड़ा हुआ है। सही तरह से ब्रेस्टफीडिंग और विटामिन-ए जैसे सप्लीमेंट इससे बचने में मददगार हो सकते हैं। फिर भी वायु प्रदूषण से बचना चाहिए और घर पर पानी को साफ रखना चाहिए। इसी के साथ, आपको ये भी ध्यान रखना चाहिए कि निमोनिया में एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट दिया जाता है और वो बिना डॉक्टर से पूछे नहीं देना चाहिए।
डायरिया-
डायरिया बच्चों की सबसे आम बीमारियों में से एक है जिसके साथ फीवर, उल्टी, दस्त, डिहाइड्रेशन, पेट में दर्द, रैशेज आदि समस्याएं होती हैं। बच्चों में डायरिया होने का सबसे आम कारण है रोटावायरस जो एक तरह का पैरासाइट है। एक्यूट डायरिया सबसे आम है जिसमें स्थिति 1-2 दिन में सुधर जाती है, लेकिन अगर ये समस्या कुछ दिन तक बनी हुई है तो आपको ये ध्यान रखना होगा कि ये किसी क्रोनिक बीमारी का लक्षण हो सकता है।
डॉक्टर की सलाह ऐसे में अच्छी मानी जाती है और डायरिया के समय शरीर से काफी मात्रा में पानी निकल जाता है। इसलिए ये जरूरी है कि शरीर को ठीक तरह से हाइड्रेटेड रखें। नवजातों और छोटे बच्चों को एक्स्ट्रा ब्रेस्ट मिल्क देना चाहिए और ओआरएस के घोल का सेवन करना चाहिए।
मलेरिया-
1-5 साल के बच्चों की मौत का तीसरा सबसे बड़ा कारण मलेरिया माना जाता है जो कई देशों में बहुत ज्यादा तेज़ी से फैलता है। भारत में मलेरिया, निमोनिया और डायरिया बच्चों की सेहत के लिए सबसे खराब माने जाते हैं। मलेरिया में बुखार, थकान, उल्टी, सिरदर्द, स्किन की समस्या, सीजर, कोमा या मौत भी हो सकती है।
बच्चों में बहुत खराब मलेरिया एनीमिया जैसी स्थिति पैदा कर सकता है। ये आगे चलकर दिमाग पर भी असर कर सकता है। मलेरिया का इलाज हो सकता है और ये जरूरी है कि आप सही समय पर डॉक्टर से संपर्क करें। बुखार को कम मत समझें।
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घर पर इन नियमों का करें पालन-
हर तरह की बीमारी से बचने के लिए आपको कुछ खास चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए जो आपके घर में फॉलो की जाएं।
- बच्चों को ये बताएं कि हेल्दी रहना कितना जरूरी है और हाथ धोने की आदत शुरुआत से ही बनाएं।
- अपना घर हमेशा साफ रखें और बच्चों को जमीन पर गिरा हुआ ना खाने की आदत डालें।
- अगर घुटने से चलने वाले बच्चे हैं तब तो जमीन की सफाई का ख्याल बहुत रखना होगा।
- अगर आपके परिवार में कोई बीमार है तो अपने बच्चे को उससे दूर रखें।
बच्चों की सुरक्षा आपके हाथ में है और अगर आपको जरा भी दिक्कत महसूस होती है तो डॉक्टर से जरूर बात करें। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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