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साइकिल सिंकिंग के अनुसार करें वर्कआउट, मिलेंगे मनचाहे रिजल्ट

फिट रहने के लिए वर्कआउट करना काफी अच्छा माना जाता है। हालांकि, अगर आप अपनी पीरियड साइकिल सिंकिंग के अनुसार वर्कआउट करती हैं तो इससे आपको काफी अच्छे रिजल्ट्स मिल सकते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-08-24, 10:17 IST

यह तो हम सभी जानती हैं कि हेल्दी लाइफ जीने के लिए वर्कआउट करना बेहद जरूरी है। जब आप वर्कआउट करती हैं तो इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं। साथ ही साथ, बॉडी अधिक टोन्ड नजर आती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे महीने आप एक तरह से वर्कआउट कर सकती हैं। खासतौर से, महिलाओं के लिए सिर्फ वो पांच-सात दिन ही मुश्किल भरे नहीं होते हैं, बल्कि पूरे महीने उनके शरीर की एनर्जी, मूड, हार्मोन आदि काफी ऊपर-नीचे होते रहते हैं। ऐसे में अपनी बॉडी की सुनते हुए जब आप अपने वर्कआउट को एडजस्ट करती हैं तो इससे आपको बेस्ट रिजल्ट मिलते हैं।
दरअसल, पूरा महीने हमारी बॉडी चार अलग-अलग फेज से गुजरती है और हर फेज में शरीर एक अलग तरह से काम करता है। यही वजह है कि आपको उन फेज को समझते हुए वर्कआउट करना चाहिए। इसे ही साइकिल सिंकिंग वर्कआउट कहा जाता है। तो चलिए आज इस लेख में पावरलिफ्टिंग में नेशनल रिकॉर्ड होल्डर और एनीटाइम फिटनेस के फिटनेस ट्रेनर विनय माहौर आपको साइकिल सिंकिंग वर्कआउट के बारे में विस्तारपूर्वक बता रहे हैं-

मेंस्ट्रुअल फेज

यह वह फेज होता है, जब आपके पीरियड्स चल रहे होते हैं। यह करीबन पांच दिनों का फेज होता है, जिसमें एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन दोनों ही हार्मोन कम होते हैं। जिसकी वजह से आपको एनर्जी कम लगती है और शरीर काफी थका हुआ महसूस होता है। इस दौरान आपको इंटेंस वर्कआउट करने से बचना चाहिए। इसकी जगह लो इंटेसिटी वर्कआउट, योग, वॉक या हल्की स्ट्रेचिंग की जा सकती है। हालांकि, अगर आपको बहुत अधिक थकान हो तो आप एक-दो दिन पूरी तरह से आराम करें।

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menstrual phase

फॉलिकुलर फेज

पीरियड्स के बाद का अगला सप्ताह फॉलिकुलर फेज माना जाता है। यह वह फेज होता है, जब आपकी एनर्जी वापस आने लगती है, क्योंकि एस्ट्रोजन बढ़ने लगता है। ऐसे में आपका मूड भी अच्छा रहता है। इस दौर में आप मॉडरेट से लेकर हाई इंटेसिटी वर्कआउट कर सकती हैं। वर्कआउट में इस दौरान एक्सपेरिमेंट किए जा सकते हैं। आप स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से लेकर कार्डियो, डांस या ज़ुम्बा को अपने वर्कआउट का हिस्सा बनाएं। चूंकि, एनर्जी ज्यादा होती है, इसलिए नए वर्कआउट्स भी ट्राई किए जा सकते हैं।

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ओव्यूलेशन फेज

फॉलिकुलर फेज के बाद आता है ओव्यूलेशन फेज। यह करीबन 2-3 दिन का होता है और इस समय आपकी एनर्जी सबसे ज्यादा होती है। इस फेज में एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरोन दोनों ही हाई रहते हैं। जिससे इस समय आपका स्ट्रेंथ और स्टेमिना दोनों ही काफी हाई होता है। अगर आप इंटेंस वर्कआउट जैसे हाई इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग, हैवी वेट्स उठाना, सर्किट ट्रेनिंग करना या स्प्रिंट्स आदि कर सकती हैं।

ovolution phase

ल्यूटल फेज

ओव्यूलेशन फेज के बाद आखिरी में ल्यूटल फेज आता है, जो करीबन दस दिन का होता है। इस दौरान आपको मूड स्विंग्स और क्रेविंग्स हो सकती हैं, और थकान भी महसूस होती है। इस दौरान आप हल्के से लेकर मीडियम इंटेंसिटी वर्कआउट कर सकती हैं। वॉकिंग, योग या फिर लाइट स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करना इस समय काफी अच्छा रहेगा।
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Image Credit- freepik

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