भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में ऐसी कई कलाएं हैं, जो अपनी अनूठी सुंदरता और परंपरा के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक है 400 साल पुरानी कला, जिसने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी धूम मचाई है। गुजरात के कच्छ इलाके के छोटे से गांव नरौना में जन्मी यह कला न केवल खूबसूरत है बल्कि इतनी अनोखी है कि जो इसे देखता है, इसका दीवाना हो जाता है। लोकल आर्टिस्ट के हुनरमंद हाथों से निकल कर यह कला अब केवल इलाके के निवासियों तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह कला आज फैशन इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बना रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बॉलीवुड सेलिब्रिटीज तक के दिलों पर राज कर रही है।हम बात कर रहे हैं रोगन वर्क की।
आपने इस कला के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सुना होगा। यदि इस कला से सजे किसी कपड़े को आप देख लें तो शायद आप समझ भी नहीं पाएंगे कि यह रोगन वर्क किया गया है। यह कला इतनी अद्भुत है कि पल भर में आपका दिल चुरा लेगी। आज हम आपकी पहचान इस कला से कराएंगे और इसके लिए हमारी खास बातचीत हुई है इस कला के संरक्षक और बेहद हुनरमंद आर्टिस्ट सुमार खतरी से। वह कहते हैं, " हम अपने परिवार की 8वीं जनरेशन हैं, जो इस कला को संजो रहे हैं और इसे विश्व स्तर पर पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व यह प्राचीन कला अंतिम सांसें गिन रही थी। हमारे परिवार ने इसे रिवाइव किया है। पहले गांव में 4 अलग-अलग परिवार के लोग इस रोगन वर्क किया करते थे, मगर हम केवल हमारा परिवार ही बचा है। हमारे भाई और भतीजे आज भी पारंपरिक अंदाज में रोगन वर्क करते हैं।"
यह कला जितनी खूबसूरत है, उतना ही रोचक इसका इतिहास भी है। चलिए इस लेख में इस हसीन कला के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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400 साल पुरानी इस कला की शुरुआत मुगल काल में हुई थी। उस दौर में यह कला शाही परिधानों और सजावट के लिए इस्तेमाल की जाती थी। इसमें बारीकी और कारीगरी का ऐसा संगम होता था, जो किसी भी वस्तु को शाही लुक देता था। इतिहासकारों के अनुसार, यह कला शाही दरबारों के कलाकारों द्वारा विकसित की गई थी और धीरे-धीरे यह आम जनमानस तक पहुंची।मगर यह कला भारत में ही जन्मी या सरहद पार से आई थी? इस बारे में सुमार कहते हैं, "रोगन एक पारसी नाम है। इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह ईरान से भारत आई। इसके बाद से यह भारत में ही बस गई। वैसे तो सरहद के उस पार कुछ देशों में इस कला के हुनरमंद हैं। मगर सबसे ज्यादा इस कला पर जो काम हुआ है, भारत के कच्छ में ही हुआ है। वर्तमान समय में गांव में रोगन बनाने से लेकर इसे पारंपरिक तरीके से करने तक का काम केवल हमारा परिवार ही कर रहा है। हालांकि, अब हम कई वर्कशॉप भी करते हैं जिसमें लोगों को इस कला का हुनर सिखाते हैं। "
यह एक बहुत ही अनोखी कला है। इसे कपड़े पर किया जाता है। सुमार बताते हैं, "इस आर्ट के लिए कपड़े की वीविंग का फाइन होना जरूरी है, नहीं तो रंग कपड़े से टपकने लगता है।" रोगन बनाने का तरीका भी बहुत यूनिक है। इसे जंगल में अरंडी यानि कैस्टर ऑयल से बनाया जाता है। दो दिन तक तेल को पकाने के बाद जब वो गोंद की तरह थिक हो जाता है, तब उसमें वेजिटेबल ऑयल मिलाए जाते हैं। इसके बाद कपड़े पर बिना छपाई किए ही डिजाइन बनाई जाती हैं। ज्यादातर डिजाइंस गांव के जीवन से जुड़ी होती हैं। सुमार बताते हैं, "अब हम लोग ट्री ऑफ लाइफ के डिजाइन पर ज्यादा फोकस करते हैं।" पहले के समय में तो यह आर्ट केवल सिल्क या रेशमी कपड़ों पर ही की जाती थी, मगर अब इसे हर तरह के कपड़ों पर किया जाने लगा है। बेस्ट बात तो यह है कि वक्त के साथ इस कला में काफी बदलाव भी देखने को मिले हैं। पहले कपड़े पर मोटे-मोटे तार बनाए जाते थे, मगर अब इसमें आपको बारीक डिजाइंस देखने को मिलेंगी।
इसे कई तकनीक से किया जाता है। इस आर्ट के बारे में यह जानना जरूरी है कि यह 3डी आर्ट है। इसमें एक तरफ डिजाइन बना कर दूसरी तरह उसकी छपाई की जाती है। वहीं दूसरी तकनीक है कि आउटलाइन बनाने के बाद इसके अंदर पतली धारियों और डॉट्स से बारीक काम किया जाता है। बेस्ट बात तो यह है इसकी शेल्फ लाइफ बहुत अच्छी होती है। इसका रंग पक्का होता है और कभी भी नहीं जाता है।
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फैशन डिजाइनरों ने इस कला को एक नया आयाम दिया है। सुमार बताते हैं, "पहले इसे केवल दुल्हन के लहंगे पर किया जाता था और यह कच्छ तक सीमित था अब हम इस आर्ट को स्टोल, साड़ी, ड्रेसेसेज और बैग्स जैसी चीजों पर भी कर रहे हैं।" यानि कि चाहे वह शादी का जोड़ा हो, पार्टी वियर या रेड कारपेट लुक, यह कला हर जगह अपनी छाप छोड़ रही है। बड़े-बड़े फैशन डिजाइनर्स जैसे सेजल जैन, नमन डोगरा, इस कला को अपनी क्रिएशन में शामिल कर रहे हैं। सुमार बताते हैं, "हम अपने इस हुनर को लैक्मे फैशन वीक और न्यूयॉर्क फैशन वीक में भी प्रदर्शित कर चुके हैं। इतना ही नहीं, बहुत सारे डिजाइनर्स हमारे संपर्क में हैं, जो हमें ऑर्डर देते हैं और हम उनके लिए कपड़े तैयार करते हैं।"
गौरतलब है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पहनावे के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं। उन्होंने कई बार इस कला से सजे परिधानों को सार्वजनिक मंचों पर पहना है। उनके कुर्ते और शॉल में इस कला का जादू देखा जा सकता है। उनकी इस पहल ने भारतीय हस्तशिल्प और परंपराओं को बढ़ावा देने का काम किया है। बॉलीवुड हस्तियां भी इस कला की दीवानी हैं। जरीन खान, नेहा भसीन और अन्य कई सेलिब्रिटीज इसे अपने फैशन में शामिल कर चुकी हैं।
इस कला में बारीकी और धैर्य की आवश्यकता होती है। कारीगर महीनों तक एक पोशाक या वस्तु पर काम करते हैं। इसमें ज्यादातर प्राकृतिक रंगों और सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसके लिए रोगन को हाथों में लिया जाता है और उसे बॉडी टेम्प्रेचर पर करा जाता है। फिर सीक नुमा एक छड़ से उससे कपड़ों पर आकृतियां बनाई जाती हैं। कई डिजाइंस 2 दिन में बन जाती हैं, तो कई ऐसी भी होती हैं जिसे बनाने में महीनों लग जाते हैं। फिर इसे धूप में सुखाया जाता है।
हालांकि यह कला बेहद लोकप्रिय हो रही है, लेकिन कारीगरों की घटती संख्या एक बड़ा मुद्दा है। नई पीढ़ी इस कला में रुचि नहीं दिखा रही है, जिससे इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में सरकार और प्राइवेट सेक्टर को मिलकर इस कला को पुनर्जीवित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
अगर आप बाजार में जाएंगे और रोगन वर्क वाले कपड़े की मांग करेंगे तो यह आपको आसानी से नहीं मिलेंगे। केवल डिजाइनर शोरूम्स या कच्छ के निरौना गांव में ही आपको रोगन वर्क वाली साड़ी, लहंगे, सलवार कमीज, स्टोल और अन्य एक्सेसरीज मिल सकती हैं। जिनकी कीमत 300 रुपये से शुरू होती है और 3 लाख रुपये से भी ऊपर तक जाती है।
400 साल पुरानी यह कला केवल एक परंपरा नहीं है, बल्कि भारत की पहचान है। नरेंद्र मोदी और बॉलीवुड सेलिब्रिटीज ने इसे अपनी पसंद बनाकर इसके महत्व को और भी बढ़ा दिया है। आज यह कला फैशन इंडस्ट्री का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है और इसकी चमक दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इसे बचाना और बढ़ावा देना हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि यह आने वाली पीढ़ियों तक अपनी छाप छोड़ सके।
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Story Source- Exclusive Interview
Image Sourse- Sumar Khatri
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