भारतीय कला में पशु-पक्षियों को हमेशा से ही विशेष स्थान दिया गया है। आपको आर्किटेक्चर से लेकर टेक्सटाइल तक में कुछ विशेष भारतीय पशु-पक्षियों की उपस्थिति देखने को मिल जाएगी। हाथी भी एक ऐसा ही महत्वपूर्ण और विशेष पशु है। हाथी कला और संस्कृति का हिस्सा यूं ही नहीं बन गया है बल्कि इसके पीछे धामिर्क महत्व भी है। हिंदुओं में हाथी को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाता है। यह विशाल और गरिमामयी प्राणी भारतीय पौराणिक कथाओं, इतिहास और कला में एक विशेष स्थान रखता है। हाथी को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, जैसे यानाई, गज और आने। इन सभी के चित्रों को कला के अलग-अलग रंगों में सजे भारतीय वस्त्रों पर अक्सर देखा जाता है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में हाथी का उल्लेख कई बार हुआ है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक रानी ने स्वप्न देखा कि एक हाथी उसके गर्भ में प्रवेश कर रहा है। इसके अगले दिन, उसने एक ऐसा बच्चे को जन्म दिया जो भविष्य में बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार, हाथी को एक दिव्य और महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में देखा जाता है। देवताओं के राजा इंद्र भी हाथी पर सवार होते हैं और पुरी में भगवान जगन्नाथ की पूजा के दौरान हाथी के मुखौटे से सजावट की जाती है, यह भी हाथी की पवित्रता और महत्व को दर्शाता है। भारतीय इतिहास में भी हाथियों का विशेष स्थान रहा है। मौर्य काल में केवल राजाओं को हाथी रखने की अनुमति थी, जो उस समय के शाही और सम्पन्न जीवन का प्रतीक था। हाथियों की शक्ति और सामर्थ्य ने राजाओं की शाही छवि को और भी प्रभावशाली बना दिया था।
इस तरह कहा जा सकता है कि हाथी का भारतीय संस्कृति में स्थान और उसकी छवि का एक और पहलू यह है कि इसे राजसीपन का प्रतीक माना जाता है। हाथी के चित्रों और मोटिफ्स का प्रयोग भी इसी राजसीपन को वस्त्रों में उकेरने के लिए काफी समय से किया जा रहा है। खासतौर पर आपको बनारसी सिल्क, गड़वाली साड़ी, साउथ इंडियन कांजीवरम सिल्क, गुजराती घारचोला, मारवाड़ी ओढ़नी और मधुबनी आर्ट वाले आउटफिट्स में भी हाथियों के मोटिफ नजर आ जाएंगे, जो आउटफिट को शाही अंदाज नवाजते हैं।
मुगलों के काल से फैशन में एलिफेंट मोटिफ
राजा और महाराजाओं को विशाल और सशक्त दर्शानें के लिए उनके वस्त्र भी भव्य बनाए जाते थे। वस्त्रों में भव्यता दर्शाने के लिए उन्हें ताकतवर जानवरों जैसे शेर, चीते और हाथी के मोटिफ्स से सजाया जाता था। इतना ही नहीं, इन मोटिफ्स को पहले केवल पुरुषों के कपड़ों में ही देखा जाता था। मगर हिंदू धर्म में हाथी को इतना शुभ माना गया है कि विशेष अवसरों पर पहने जाने वाले वस्त्रों में हाथी की छवि नजर आती हैं। खासतौर पर राजस्थानी महिलाओं के घागरा चोली और ओढ़नी में आपको सजावटी हाथी नजर आ जाएंगे। वहीं गुजराती घारचोला में भी हाथी की छवि आप देख सकते हैं। अब तो साड़ी के बॉर्डर, पल्लू और पूरी बॉडी में हाथी वाले मोटिफ देखने को मिल जाएंगे।
चिकनकारी एम्ब्रॉयडरी में एलिफेंट मोटिफ
चिकनाकारी एम्ब्रॉयडरी भी भारत की एक ट्रेडिशनल आर्ट है। इसे भी मुग्लों के समय में पहचान मिली। पहले इस एम्ब्रॉयडरी को शाही लोगों के वस्त्रों पर ही किया जाता था मगर वर्तमान समय में चिकनकारी किए गए कपड़ों को आम लोग भी पहन सकते हैं। इस एम्ब्रॉयडरी में भी हाथी को विशेष महत्व दिया गया है। आपको इस कढ़ाई में गज मुख, गज का पूरा शरीर, शाही हाथी और सजावटी हाथी के मोटिफ देखने को मिल जाएंगे और आपके आउटफिट को बहुत खूबसूरत बनाते हैं।
मधुबनी आर्ट का भी हिस्सा हैं एलिफेंट मोटिफ
बिहार की फेमस मधुबनी पेंटिंग्स में भी हाथी के चित्र को महत्व दिया गया है। मधुबनी ही नहीं, कई शाही पेंटिंग्स में आपको हाथी के खूबसूरत चित्र देखने को मिल जाएंगे। अब यही पेंटिंग्स और चित्रकारी कपड़ों की भी शोभा बढ़ा रही हैं। इस तरह हमें मधुबनी, पट्चित्र और तंजौर पेंटिंग्स को आउटफिट्स में देखने का भी मौका मिल रहा है, जिसमें हाथी को प्रमुखता दी जाती है।
इस प्रकार, हाथी का भारतीय पौराणिक कथाओं, इतिहास, फैशन और संस्कृति में गहरा और महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी उपस्थिति केवल एक विशाल और भव्य प्राणी के रूप में नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली और दिव्य प्रतीक के रूप में भी देखी जाती है। हाथी की भूमिका भारतीय फैशन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हर जिंदगी से। अपने विचार हमें आर्टिकल के ऊपर कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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