भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। आपको हर 10 पग पर यहां कुछ नया देखने को मिलेगा। इसकी सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि संस्कृति के साथ ही लोगों को का रहन-सहन भी बदल जाता है और पहनावा भी अलग हो जाता है।
अगर हम भारतीय महिलाओं के पहनावे की बात करें तो साड़ी उन्हें सबसे प्रिय है और इसमें हजारों वैरायटी हैं, जिनकी अपनी-अपनी खासियतें हैं। हम आपको पहले भी कई साडि़यों के बारे में बता चुके हैं। मगर आज हम आपको तमिलनाडु की फेमस कोनराड साड़ी के बारे में बताएंगे।
इस साड़ी को टेम्पल साड़ी भी कहा जाता है। इस साड़ी को ज्यादातर तमिलनाडु के पूर्वी हिस्सों अर्नी, कांचीपुरम, कुंभकोणम, रासीपुरम, सलेम, तंजावुर और तिरुभुवनम जैसे इलाकों में बुना जाता है।
इस साड़ी की यह भी खसियत है कि इसे हाथ से बुना जाता है और इसकी बुनाई अन्य साड़ियों की बुनाई से बहुत ज्यादा जटिल होती है। कोनराड साडि़यों में सुंदर प्राकृतिक तत्वों, वनस्पतियों और जीवों से प्रेरित विशेष डिजाइन होती हैं। इस साड़ी के बॉर्डर पर मौजूद विशेष डिजाइंस के कारण इसे पेट्टू या कांपी कहा जाता है, जो साड़ी के किनारे के पास लगभग 3 सेंटीमीटर स्थित होता है।
इन्हें टेम्पल या मुबहम साड़ियां भी कहा जाता है क्योंकि इसमें साउथ के लोकप्रिय मंदिरों का भी रूपांकन होता है। चलिए इस साड़ी के बारे में हम आज आपको विस्तार से जानकारी देते हैं।
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कोनराड साड़ियों की विशेषताएं क्या हैं?
- इन साड़ियों के बॉर्डर की चौड़ाई 10 से 14 सेंटीमीटर तक होती है। इन्हें काम्पियोर पेट्टू के रूप में जाना जाता है, इसके बॉर्डर बहुत ही पतले होते हैं।
- पारंपरिक तौर पर हाथ से बुनी जाने वाली कोनराड साड़ी के घेर में चेक या धारीदार पैटर्न होते हैं। साड़ी के अंतिम टुकड़े या पल्लू में गोल्डन थ्रेड की कढ़ाई का काम या चौड़ी जरी की धारियां होती हैं।
- वर्तमान समय में इस साड़ी के डिजाइनर वर्जन में जरी का काम हटा दिया गया है और साड़ी को थोड़ा लंबा बनाया गया है।
- इस तरह की साड़ी में ग्रे, काला, भूरा और ऑफ-व्हाइट कलर आपको खूब देखने को मिलेगा।
- इसमें आपको मंदिर आदि के मोटिफ के साथ ही जानवरों और प्राकृतिक चीजों के भी मोटिफ देखने को मिलेंगे, जिन्हें कोरवई कहा जाता है।

कोनराड साड़ियों के प्रकार
- अरनी सिल्क साड़ी- यह बहुत सॉफ्ट और टिकाऊ सिल्क साड़ी होती है। इस बॉर्डर में मंदिरों के चित्र बने होते हैं।
- तंजौर साड़ी- इसमें गोल्ड के धागों से मंदिरों और जीव-जंतुओं की आकृतियां बनी होती हैं।
- रासीपुरम सिल्क साड़ी- इस साड़ी के बॉर्डर पर जरी वर्क होता है, यह साड़ी कांचीपुरम साड़ी से वजन में हल्की होती है।
बाजार में आपको यह साड़ी 5000 रुपये से लेकर 40 हजार रुपये तक मिल जाएगी। अब आपको इसमें रंगों में भी अच्छी वैरायटी मिलेगी और इसमें अब कुछ नए मोटिफ और डिजाइंस भी आपको देखने को मिल जाएगी।
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