भारत के नक्शे में उत्तर पूर्व दिशा में स्थित बिहार राज्य कई वजहों से फेमस है। यहां का केवल खान-पान ही नहीं बल्कि यहां की शिल्प कला और हस्तकला के भी दूर-दूर तक चर्चे हैं। यह राज्य धार्मिक ग्रंथों में भी महत्वपूर्ण बताया गया है।
यही वह राज्य है, जहां आज भी देश की पहली और प्राचीन युनिवर्सिटी नालंदा के अवशेष हैं। इतना ही नहीं, नालंदा में की जाने वाली 52 बूटी हस्तशिल्प कला भी बहुत लोकप्रिय है। हालांकि, बहुत कम लोगों को ही अब इस कला के बारे में जानकारी है क्योंकि इस कला पर आज भी आधुनिकता और फैशन की परत नहीं चढ़ी है।
आज हम आपको 52 बूटी हस्तकला के माध्यम से तैयार की जाने वाली एक विशेष साड़ी, जिसे 'बावन बूटी साड़ी' कहा जाता है। उसके बारे में बताएंगे।
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क्या है 52 बूटी साड़ी?
साधारण कॉटन और तसर के कपड़े पर हाथ से की गई कारीगरी वाली यह साड़ी देश के लिए किसी विरासत से कम नहीं है। बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाली इस साड़ी को नालंदा के नेपुरा गांव में सदियों से बनाया जा रहा है। इसे 52 बूटी साड़ी इसलिए कहा जाता है क्योंकि पूरी साड़ी में एक जैसी 52 बूटियां यानि मौटिफ होते हैं।
दिखने में बेहद सिंपल इस साड़ी को आप बिहार की हर महिला की वॉर्डरोब में देख सकते हैं क्योंकि यह साड़ी पहनने में बेहद आरामदायक होती हैं और इसे आप घर से लेकर बाहर तक किसी भी छोटे-मोटे अवसर पर पहन सकती हैं।
क्या होता है इस साड़ी में खास?
यह बात तो हमें स्कूल में ही बताई गई थी कि भारत से निकले बौद्ध धर्म की शुरुआत बिहार से ही हुई थी। आज भी इस धर्म के प्रचारक भारत में हैं और इसे मनने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इस साड़ी में बौद्ध धर्म की झलक देखने को मिलती है।
इस साड़ी में कम-से-कम 52 बूटियां होती हैं। यह बहुत ही महीन होती हैं और इन्हें धागों की मदद से साड़ी पर तागा जाता है। इस कला की विशेषता यह भी है कि पूरे कपड़े पर एक ही डिजाइन को 52 बार बूटियों के रूप में बनाया जाता है।
बावन बूटी के माध्यम से छह गज की साड़ी में बौद्ध धर्म की कलाकृतियों को उकेरा जाता है, जो ब्रह्मांड की सुंदरता का वर्णन करती हैं। आपको बता दें कि बौद्ध र्ध में 8 चिन्ह होते हैं। बावन बूटी हस्तकला में इन्हीं चिन्हों का प्रयोग किया गया है। यह बूटिया काफी महीन होती हैं और सादे कपड़े पर की जाती हैं।
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साड़ी में कैसी डिजाइंस होती हैं?
आपको बावन बूटी में कमल का फूल, बौधि वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल और शंख आदि चिन्ह मिल जाएंगे, यह सभी बौद्ध धर्म के प्रतीक होते हैं। इस कला से सजी साड़ियां, चादर, शॉल, पर्दे आदि आपको बाजार में मिल जाएंगे। इनकी लोकप्रियता भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक फैली हुई है। इसके अलावा बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में भी आपको इस कला के नमूने मिल जाएंगे।
बावन बूटी कला को जब मिली पहचान
वर्षों से इस कला को करने वाले कारिगरों को कभी भी न तो राज्य स्तर पर बहुत सराहना मिली न विश्व स्तर पर। मगर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बावन बूटी से बने पर्दों को राष्ट्रपति भवन में जब लगवाया तो लोगों को इस कला के बारे में परिचय मिला। अब तो इस कला को यूनेस्को भी बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, आज भी फैशन की दुनिया से यह कला कोसो दूर है, मगर इसका विकास लगातार होता नजर आ रहा है और जल्द ही फैशन के गलियारों में भी हमें 52 बूटी कला को देखने का अवसर मिलेगा।
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