Facts: एक राष्ट्रपति भवन को बनाने के लिए लग गए थे 17 साल, उजड़ गए थे कई गांव

दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के बारे में शायद आप ये बात न जानते हों कि इसे बनाने के लिए कितने मजदूर लगे थे और कितने गांव उजड़ गए थे। 

 facts about rashtrapati bhavan

हमारे देश में ऐसी कई इमारतें हैं जिन्हें देश के इतिहास से जोड़ा जाता है। ऐसी ही एक इमारत है दिल्ली में मौजूद राष्ट्रपति भवन। इसे अंग्रेजों के जमाने में व्हाइसरॉय हाउस कहा जाता था। ये वो इमारत थी जिसने दिल्ली को राजधानी बनने में मदद की, लेकिन यहां मौजूद कई परिवारों के घर उजाड़ दिए। हर जगह का इतिहास कुछ अच्छा और कुछ बुरा होता है और राष्ट्रपति भवन के साथ भी ऐसा ही है। ये वो जगह है जिसे बनने में 17 साल लग गए और इसे आज भारत की शान माना जाता है।

आज हम आपको देश की शान कहे जाने वाले राष्ट्रपति भवन के बारे में कुछ बातें बताने जा रहे हैं। ये वो जगह है जिसकी वजह से दिल्ली में 'लुटियन्स' की शुरुआत हुई।

कितना विशाल है राष्ट्रपति भवन?

राष्ट्रपति भवन के अंदर म्यूजियम, सेरिमोनी हॉल, बड़े गार्डन, स्टाफ के रहने की जगह, 300 कमरे, बॉल रूम, गेस्ट रूम आदि सब मौजूद है। ये भवन इतना विशाल है कि इसे पूरा घूमने के लिए आपको एक दिन कम पड़ जाएगा।

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ये इटली के किरिनल पैलेस के बाद सबसे बड़ा पैलेस माना जाता है।

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आखिर क्यों 17 साल लगे इसे बनने में?

जैसा कि हमने आपको बताया कि ये बहुत ही पुराना भवन है और ये काफी विशाल है। इसे बनने में 17 साल लगे क्योंकि इसका ढांचा मजबूत बनाया जाना था और इसमें जिस तरह का आर्किटेक्चर होना था उसे बनाने के लिए कई वर्कर्स की जरूरत पड़नी थी। राष्ट्रपति भवन की खासियत है इसका गुम्बद। 1912 में नींव रखे जाने के बाद इसे बनने में 1929 तक का समय लगा और इसे बनाने के लिए 29000 मजदूर लगे थे।

इसे बनाने के लिए 700 मिलियन ईंटों का प्रयोग हुआ था और 3 मिलियन क्यूबिक फिट पत्थर इस्तेमाल किए गए थे।

rashtrapati bhavan hall

क्यों लुटियन्स का हिस्सा कहा जाता है ये भवन और क्या है रायसेना हिल्स का इतिहास?

दिल्ली के लुटियन्स के बारे में तो आपने सुना ही होगा। दिल्ली के मध्य में स्थित पुरानी इमारतों और ऐतिहासिक रास्तों से भरे इलाके को लुटियन्स कहा जाता है। इसी का हिस्सा राष्ट्रपति भवन भी है। दरअसल, राष्ट्रपति भवन से लेकर संसद भवन तक को डिजाइन करने वाले आर्किटेक्ट थे सर एडविन लैंडसर लुटियन्स (Sir Edwin Landseer Lutyens)। ये स्टार आर्किटेक्ट अपनी दूरदर्शिता और भव्यता के लिए जाना जाता था और यही कारण है कि इस पूरे इलाके को लुटियन्स कहा जाने लगा।

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जहां तक रायसेना हिल्स का सवाल है तो राष्ट्रपति भवन को बनाया ही इस पहाड़ी के ऊपर गया था।

क्यों राष्ट्रपति भवन के लिए उजड़ गए थे कई गांव?

अंग्रेजों ने जब अपनी राजधानी कलकत्ता (कोलकता के खूबसूरत हॉलिडे डेस्टिनेशन) से दिल्ली करने के बारे में सोचा तो वहां बहुत कुछ बदलना था। दिल्ली में स्थानीय जाट किसानों और कुछ मुसलमान किसानों की जमीनें थीं।

एक रिपोर्ट के अनुसार दो गांव रायसीनी और माल्चा पूरी तरह से बर्बाद कर दिए गए थे और यहां रहने वाले लगभग 300 परिवारों को बेघर कर दिया गया था। उस समय के हिसाब से अंग्रेजी सरकार ने 15 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा देने की बात की थी जो जमीन की कीमत के मुकाबले काफी कम था।

इन्हें लगभग 10 गुना कम मुआवजा दिया गया था और इस मामले में दिल्ली कोर्ट में केस भी चल रहा है। कई परिवार इसके कारण बेघर हो गए थे और ये राष्ट्रपति भवन के इतिहास के काले पन्नों में से एक है।

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राष्ट्रपति भवन में हैं बेशकीमती वस्तुएं

क्या आपको पता है कि राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में चौथी या पांचवी सदी की गौतम बुद्ध की मूर्ति रखी हुई है। इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन में कई पेंटिंग्स और ऐतिहासिक वस्तुएं रखी हैं। यहां एक गिफ्ट म्यूजियम भी है जहां दुनिया भर से मिले तोहफे रखे जाते हैं। यहां पर ब्रिटेन के किंग जॉर्ज 5 की चांदी की कुर्सी रखी है जो 640 किलो की है। इसी कुर्सी में राजा 1911 में दिल्ली दरबार में बैठा करते थे।

rashtrapati bhavan buddha statue

राष्ट्रपति भवन में एक मार्बल हॉल भी है जिसमें कई मूर्तियां और पेंटिंग्स रखी गई हैं जो कई सौ साल पुरानी हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन के अशोका हॉल में भी फारस के कजार रूलर्स, फतेह अली शाह आदि की पेंटिंग्स के साथ इतालवी पेंटर कोलोनेलो की फॉरेस्ट थीम पर बनाई गई पेंटिंग्स रखी हैं।

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राष्ट्रपति भवन की एक और खास बात ये है कि यहां बच्चों को समर्पित दो गैलरी हैं जिनमें से एक में बच्चों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां हैं तो दूसरे में बच्चों के लिए बहुत सारे आइटम हैं।

इसके अलावा, साइंस और इनोवेशन गैलरी भी है जहां रोबोटिक डॉग से लेकर ऑडियो विजुअल डिस्प्ले तक बहुत कुछ है।

राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन को कोरोना महामारी फैलने से पहले हर साल फरवरी में आम जनता के लिए खोला जाता था। यहां दुनिया भर के फूलों की अलग-अलग प्रजाति मौजूद है। इसके अलावा, कॉमन पब्लिक के लिए चेंज ऑफ गार्ड सेरेमनी में हिस्सा लेने का मौका भी होता था। कोरोना काल से पहले हर शनिवार सुबह 10 बजे ये सेरेमनी होती थी। इसे फोटो आईडी प्रूफ के साथ देखा जा सकता था। जल्द ही इस सेरेमनी को दोबारा शुरू करने की बात की जा रही है।

राष्ट्रपति भवन जितन भव्य है उतना ही अनोखा भी है और यहां के कुछ गलियारे ऐसे हैं जिनसे सीधे इंडिया गेट पर निकला जा सकता है। ये वाकई भारत की शान है।

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