दिल्ली में मौजूद ऐतिहासिक इंडिया गेट के बारे लगभग हर कोई जनता है। इसके ठीक सामने दिल्ली के दिल में बसी वो इमारत मौजूद है, जहां भारत के प्रथम व्यक्ति रहते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं 'राष्ट्रपति भवन' के बारे में। ये भवन महज एक इमारत ही नहीं बल्कि, ये गवाह है हिंदुस्तान के गणतंत्र का। एक विशाल इमारत और इसकी वास्तुशिल्प देखने लायक है।
ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतीक बनने से लेकर भारत के महामहिम का महल बनने के बीच तक ऐसी कई कहानियों को ये इमारत बयां करती है, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। आज इस लेख में हम आपको राष्ट्रपति भवन के बारे में कुछ रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद आप अभी तक नहीं जानते हो। तो आइए जानते हैं।
इमारत की ऐतिहासिक कहानी
शायद आपको मालूम हो। अगर नहीं तो आपको बता दें कि जब ब्रिटिश हुकूमत ने साल 1911 में कोलकाता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला लिया, तो वो एक ऐसी इमारत का निर्माण करना चाहते थे, जहां से पूरे देश पर हुकूमत कर सके। ऐसे में ब्रिटिश हुकूमत ने एक शानदार महल बनाने का निर्णय लिया और साल 1912 में इस भवन के निर्माण का फैसला लिया गया, जिसे रायसीना हिल्स पर बनवाया गया।
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निर्धारित समय में नहीं बना
जी हां, रायसीना हिल्स पर ब्रिटिश वायसराय के लिए इन भवन का निर्माण निर्धारित समय में नहीं हो सका है। कई लेखों में ये उल्लेख है कि इसका निर्माण महज़ चार साल के अंदर में कर देना था लेकिन, इसे पूर्ण रूप से बनकर तैयार होने में लगभग 17 साल लग गए थे। आपको बता दें कि इन महल को ब्रिटिश नागरिक एडविन लैंडसीर लुटियन्स ने आर्किटेक्ट्स किया था। साल 1950 तक इसे वायसराय हाउस ही कहते थे।
वास्तुकला के बारे में
उस समय के हिसाब से लगभग एक करोड़ चालीस लाख रुपये में निर्मित इस महल में लगभग 340 कमरे हैं। इस महल में प्राचीन भारतीय शैली, मुग़ल शैली और बिर्टिश शैली की झलक देखने को आसानी से मिल जाती है। इस महल के गुंबद का निर्माण इस तरह किया गया है कि भूकंप में भी इसे कोई नुकसान नहीं हो सकता है। कहा जाता है कि भवन के अनेकों खम्भों पर भारतीय मंदिरों की घंटियों का निर्माण किया गया है।
समय के साथ बदलाव
भारत के पहले राष्ट्रपति से लेकर राम नाथ कोविन्द तक यहां 14 राष्ट्रपति रह चुके हैं। कहा जाता है कि इस भवन से लगभग हर राष्ट्रपति की अपनी यादें जुड़ी हुई हैं। जैसे-दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक टीचर थे, जिनके चलते यहां की लाइब्रेरी में कई अच्छी पुस्तकों को देखी जा सकती हैं। राष्ट्रपति जाकिर हुसैन गुलाब के फूलों को बहुत पसंद करते थे, इसलिए उन्होंने इन भवन में मुग़ल गार्डन का निर्माण करवाया। इसी तरह कई अन्य राष्ट्रपतियों ने भी समय के साथ इस महल में बदलाव किए।
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कब घूमने जा सकते हैं यहां!
ऐसा नहीं है कि इस विशाल महल में एक आम नागरिक घूमने के लिए नहीं जा सकता हैं। यहां घूमने के लिए रजिस्ट्रेशन कराना होता है और रजिस्ट्रेशन कराने के बाद महल के एक हिस्से में घूमने के लिए जा सकते हैं। वैसे फ़रवरी के महीने में हजारों सैलानी राष्ट्रपति भवन में मौजूद मुग़ल गार्डन घूमने के लिए जाते हैं। यहां जाने के लिए रजिस्ट्रेशन की ज़रूरत नहीं होती हैं।(राष्ट्रपति भवन में समय बिताने के लिए अब आप करा सकेंगी बुकिंग)
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