आपने वो गीत सुना ही होगा "It's Happen Only In India"! जी हां, ऐसी बहुत सारी चीजें हैं, जो केवल भारत में ही होती हैं और वे इतनी अद्भुत हैं कि उन्हें कोई भी किसी भी तरह से कॉपी नहीं कर सकता है। जी हां, जैसे ताजमहल के लिए कहा जाता है न कि इतनी सुंदर इमारत दोबारा कभी बिल्कुल ऐसी ही नहीं बन सकती हैं, यही उपमा हम कश्मीर की कानी शॉल आर्ट को भी दे सकते हैं। पूरी दुनिया तो छोडि़ए आपको कश्मीर यहां तक कि उस कारिगर के भी पास बिल्कुल सेम डिजाइन वाली दो कानी शॉल नहीं मिल सकती हैं।
जी हां, हम उसी कानी शॉल की बात कर रहे हैं, जिसे शॉलों का राजा कहा जाता है। कश्मीर घाटी अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य की वजह से पूरे विश्व में लोकप्रिय है। मगर यहां की प्राचीन और उत्कृष्ट लोक हस्तशिल्प कलाएं भी कम चर्चित नहीं हैं। उन्हीं में से एक है यहां के पश्मीना शॉल्स, जिनकी ढेरों वेराइटी आपको बाजार में मिल जाएगी। मगर कानी शॉल्स बेमिसाल हैं और दुर्लभ भी हैं।
दरअसल, आधुनिकता के जमाने में जहां हर काम कंप्यूटराइज्ड और मशीनों से होने लगा है, वहां उंगलियों और आंखों से की जाने वाली इस कारीगरी को पहचानने और महत्व देने वालों की कमी हो गई है। मगर कशमीर के कुछ आर्टिजंस आज भी इस कला को रिवाइव करने में लगे हैं। हां, यह स्त्य है कि अब डिजाइंस के लिए कंप्यूटर की मदद ली जा रही है। मगर इस कला के प्रचीन महत्व को कायम रखने के लिए अब भी इसे पारंपरिक तरीके से कानी सिलाइयों से ही बनाया जाता है।
चलिए आज हम इस कला से जुड़े कुछ बेहद रोचक तथ्यों के बारे में आपको बताते हैं, जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
यह कला पारसी लोगों के द्वारा भारत में आई थी। यह बताना तो बहुत मुश्किल होगा कि सबसे पहले कानी शॉल बनाना किसने शुरू किया था, मगर इस शॉल का जिक्र मुगल काल में लिखी गई किताबों "इकबालनामा ए जहाँगीरी" और "आइन-ए-अकबरी" में मिलता है, तो यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में इस शॉल की लोकप्रियता का समय भी वही रहा होगा। अकबर ने तो इस शॉल को 'परम-नरम' का नाम दिया था। उस समय, यह शॉल रॉयल्टी और विलासिता का प्रतीक मानी जाती थी। इसे सिर्फ उच्च वर्ग के लोग ही पहन सकते थे।
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इसकी जो डिजाइंस हैं, वह भी मुगल काल की कला और संस्कृति का आइना है। मुगल काल के बाद भी, कानी शॉल ने अपनी लोकप्रियता नहीं खोई। ब्रिटिश काल में भी इसे उच्च वर्ग के लोगों द्वारा बहुत ज्यादा पसंद किया जाता था। मगर धीरे-धीरे इस शॉल में किया जाने वाला बारीका काम और लगने वाला समय कारिगरों को उबाने लगा। वहीं मेहनत का सही मूल्य न मिलने के कारण इसे बनाने वाले कारिगरों की संख्या में कमी होने लगी।
इस शॉल का केवल इतिहास ही खास नहीं हैं बल्कि इससे जुड़े अनेक रोचक तथ्या हैं। कानी शॉल का निर्माण कश्मीर घाटी के कनिहामा नामक स्थान पर किया जाता है। यह स्थान कानी शॉल की जन्मभूमि भी कहा जा सकता है। कानी शॉल आर्ट को GI टैग प्राप्त है। इसलिए इस जगह के अलावा कानी शॉल विश्व में कहीं भी नहीं बन सकती हैं। यह शॉल पश्मीना ऊन से बनाई जाती है, जिसे दुनिया का सबसे मुलायम और बेहतरीन ऊन माना जाता है। इतना ही नहीं, इस शॉल को बनाने की प्रक्रिया भी अनूठी है। इसे बुनने के लिए लकड़ी की सिलाई यानी कानी का इस्तेमाल किया जाता है, यही एक ऐसी शॉल है, जिसमें इस तरह की सिलाई का इस्तेमाल किया जाता है।
आमतौर पर इस शॉल में जो डिजाइंस होती हैं, उनमें प्राकृतिक चीजों को लिया जाता है। वहीं कुछ डिजाइंस मुगल आर्ट और इमारतों से भी प्रेरित होती हैं। इन्हें बनने के लिए आंखों को सिलाई पर ही गड़ा कर रखना होता है। कई बार तो एक शॉल में डिजाइन डालने के लिए महीनों का वक्त लग जाता है, तो कभी साल भर में भी शॉल तैयार नहीं होती है। इसीलिए इसे 'सब्र की शॉल ' कहा जाता है।
कानी शॉल की बुनाई एक जटिल और धैर्यपूर्ण प्रक्रिया है। सबसे पहली बात तो यह है कि इसकी बुनाई में मशीन की कोई मदद नहीं मिलती है। इसे पूरी तरह से हाथ से ही बनुा जाता है। इसकी सिलाइयों में अलग-अलग रंगी की ऊन को फंसाने और एक से दूसरे फंदे को इंटरलॉक करने की पूरी प्रक्रिया में आंखों को सिलाई पर गड़ा कर रखना होता है।
आपको बता दें कि पहले इस शॉल में केवल पेस्टल कलर की ऊन को ही लिया जाता था क्योंकि इन रंगों को प्राकृतिक चीजों से तैयार करना आसान होता था। मगर अब आप इसमें कुछ केमिकल बेस्ड कलर वाली शॉल्स भी देख पाएंगी।
इसकी डिजाइन भी खास होती है। इसमें कहानी छुपी होती है। यह कहानी होती है रॉयलटी की और राजा महाराजा की जिंदगी से जुड़ी चीजों की।
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महीनों की मेहनत के बाद 2 सेंटिमीटर की शॉल तैयार होती है। सबसे खास बात यह है कि यह कला एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन को विरासत में दी जाती है और आज भी कश्मीर के इस छोटे से टाउन में ऐसे कुछ परिवार रह रहे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस कला को आगे बढ़ाते जा रहे हैं।
कुल मिलाकर कानी शॉल कश्मीर की सांस्कृतिक धरोहर है और भारत के हस्तशिल्प की उत्कृष्टता का प्रतीक है। यह शॉल वर्तमान समय में आपको सरकारी मान्यता प्राप्त हैंडलूम्स या फिर कश्मीर में ही मिलेगी। यदि आप कश्मीर की समृद्ध संस्कृति और अद्भुत कला का अनुभव करना चाहते हैं, तो कानी शॉल ओढ़कर आप इसे महसूस कर सकते हैं।
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