मध्यप्रदेश को अपनी प्राकृतिक खूबसूरती, इतिहास और समृद्ध सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर के लिए पूरे हिंदुस्तान में पहचाना जाता है। इस धरती ने हमें कुछ ऐसी नायाब विरासत दी है, जो आज विश्व भर में अपनी सुंदरता और अनोखेपन का परचम लहरा रही है।
जहां एक तरफ मध्यप्रदेश में आपको आदिवासी कलाओं के बेशुमार नमूने देखने को मिलेंगे वहीं हैंडलूम के लिहाज से भी इस राज्य ने देश को बहुत कुछ दिया है। यहां की चंदेरी और महेश्वरी साड़ी विश्व भर में फेमस हैं। हम पहले भी आपको कई साड़ियों के बारे में बता चुके हैं। आज हम आपको चंदेरी साड़ी की प्राचीनता और सुगम इतिहास के बारे में बताएंगे।
चंदेरी साड़ी का इतिहास भगवान श्री कृष्ण के समय जितना पुराना है। बताया जाता है कि द्वापर युग में छेदी नरेश शिशुपाल ने चंदेरी सिल्क की खोज की थी और वह इस कपड़े के वस्त्र पहनता था। शिशुपाल पांडवों और कौरवों का भाई था और श्री कृष्ण की भी बुआ का बेटा था। महाभारत के युद्ध में शिशुपाल कौरवों के पक्ष में था और श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन से उसका वध किया था।
तब से लेकर आजतक चंदेरी सिल्क के सफर में कई ऐतिहासिक मोड़ आए हैं। इतना ही नहीं, इस फैब्रिक के साथ कई प्रयोग हुए हैं। जहां पहले इसे केवल मलमल से तैयार किया जाता था और एक पूरी साड़ी मुट्ठी में भरी जा सकती थी। वहीं अब इसमें कॉटन ब्लेंड भी देखने को मिलता है।
तो चलिए जानते हैं चंदेरी साड़ी के सफर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।
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कहां हुई उत्पत्ति?
चंदेरी सिल्क साड़ी का नाम विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के छोटे से कस्बे चंदेरी पर पड़ा है। इस स्थान का अपना एक समृद्धशाली इतिहास रहा है। आपको इस स्थान का नाम रामायण और महाभारत में भी मिलेगा। इस स्थान पर प्राचीन समय से कपड़े का उत्पादन किया जा रहा है और पहले यहां मलमल से चंदेरी सिल्क कपड़ा तैयार किया जाता था। इस कपड़े में प्रयोग किए गए मलमल के धागे बहुत पतले होते थे। इसलिए यह कपड़ा बहुत ही मुलायम होता है और बनारसी सिल्क की तरह गफ नहीं होता बल्कि पारदर्शी होता है।
चंदेरी सिल्क का सबसे ज्यादा विस्तार 13वीं या 14वीं शताब्दी में हुआ जब बंगाल से सूफी संत वजीउद्दीन चंदेरी आए। उनके साथ उनके कई भक्त भी आए। इन भक्तों में कुछ बुनकर और कशीदाकारी करने वाले भी थे। तब से आज तक ढाका से आए मलमल और कॉटन के ब्लेंड से चंदेरी सिल्क को तैयार किया जा रहा है।
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क्या है चंदेरी सिल्क साड़ी की खासियत?
- एक पूरी चंदेरी साड़ी को तैयार करने में 1 से 2 महीने लग जाते हैं। पहले बुनाई होती हैं और साथ-साथ कसीदाकारी भी की जाती है। इसके बाद साड़ी को डाई किया जाता है।
- इसकी एक खासियत यह भी होती है, कि साड़ी में विरोधी रंगों को चुना जाता है। जैसे काले के साथ नारंगी रंग, नीले के संग काला , गुलाबी के साथ लाल। इसके अलावा आपको इसमें बेज, क्रीम और आइवरी कलर की बहुत सारी साड़ियां मिल जाएंगी। वर्तमान समय में बदलते फैशन के साथ अब इसमें आपको पेस्टल शेड्स भी देखने को मिलेंगे, जो साड़ी को और भी ज्यादा ग्रेसफुल लुक देते हैं।
- इस साड़ी की बुनाई से पहले पेपर की एक प्लेन शीट पर पूरी साड़ी को पेंट किया जाता है और ग्राफ पेपर पर इसका नक्शा बनाया जाता है। इसे बाद जो तय होता है उसके अनुसार धागे का रंग चुना जाता है और साड़ी को बुना जाता है।
- बाकी तरह की सिल्क साड़ियों से चंदेरी सिल्क बहुत अलग होता है। यह एक ट्रांसपेरेंट फैब्रिक होता है और वजन में बहुत हल्का होता है। अगर आप शुद्ध चंदेरी फैब्रिक लेंगी तो यह अल्ट्रा सॉफ्ट होता है और इसकी फिनिशिंग ग्लॉसी होती है।
- ऐसा कहा जाता है कि आप अपने गालों पर चंदेरी सिल्क को रगड़ कर, उसके असली और नकली होने का पता लगा सकती हैं। गालों पर जब चंदेरी सिल्क लगता है, तो वह बहुत ही मुलायम महसूस होता है।

- चंदेरी सिल्क में आपको गोल्ड, सिल्वर और कॉपर मॉटिफ एम्बेलिशमेंट मिलेगा। इन्हें बनोने के लिए कई प्रकार की सुई का प्रयोग किया जाता है। यह मोटिफ प्रकृति से प्रभावित होते हैं। हालों कि अब आपको इसमें डार्क कलर्स और कंटेम्प्रेरी डिजाइंस भी देखने को मिल जाएंगी। मगर आज भी चंदेरी की गोल गोल्डन मोटिफ वाली साड़ी ट्रेंड में है।
- अगर चंदेरी साड़ी के प्रचलित डिजाइंस की बात की जाए तो आपको इसमें गोल्डन सिक्का डिजाइन की साड़ी जरूरी खरीदनी चाहिए। इसके साथ ही आपको गोल्डन केरी डिजाइन वाली चंदेरी साड़ी भी आसानी से मिल जाएगी। अब तो आपको इसमें डांसर, स्तूप और दुल्हन की डोली डिजाइन भी मिल जाएगी। बाजार में आपको ब्राइडल साड़ी में भी चंदेरी सिल्क देखने को मिल जाएगा।
- अगर इस साड़ी के मूल्य की बात की जाए तो आपको बता दें कि अब आपको 1000 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक में यह साड़ी बाजार में और ऑनलाइन मिल जाएगी।
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