साड़ी का लुक पूरी तरह से इस बात पर डिपेंट करता है कि आपने उसके साथ कैसा ब्लाउज पहना हुआ है। आजकल साड़ी से ज्यादा प्रयोग ब्लाउज की डिजाइंस के साथ किए जाने लगे हैं। मगर यह ब्लाउज आया कहां से और इसे ब्लाउज क्यों कहा जाता है? इस बारे में आपने कभी सोचा है।
भारत में महिलाओं के पहनावे के इतिहास पर ध्यान दिया जाए, तो एक समय था जब महिलाएं अपनी बॉडी के ऊपरी हिस्से को अनकवर्ड रखती थीं। अगर आप पौराणिक भारतीय मंदिरों को गौर से देखेंगे तो उनकी दीवारों पर आपको देवियों और अपसराओं के चित्र और मुर्तियां नजर आएंगी, जिनमें उन्होंने अपने शरीर के ऊपरी भाग को किसी भी कपड़े से नहीं ढका है। इन्हें देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि पहले के समय में ब्लाउज का कोई कॉन्सेप्ट ही न हीं होता था।
साउथ एशियन स्टडीज के जनरल में इस बात का जिक्र भी मिलता है कि महिलाओं के स्तनों को मातृत्व का प्रतीक माना जाता था। इसलिए पहले के समय की औरतें इसे ढककर नहीं रखती थीं। लेकिन अब समय बदल चुका है और लोगों की सोच भी उतनी पवित्र नहीं रही।
ऐसे में महिलाओं ने कब ब्लाउज पहनने की शुरुआत की और ब्लाउज को ब्लाउज कब से कहा जाने लगा, चलिए इस लेख में जानते हैं।
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कहां से आया ब्लाउज शब्द ?
तीसरी से छठवी शताब्दी तक रहे गुप्त वंश की मूर्तियों में कुछ महिलाओं को ऐसे कपड़े पहने हुए दिखाया गया है, जो सिले हुए ब्लाउज या चोली जैसे दिखते हैं। मगर उससे पहले के जो स्कल्पचर देखे गए हैं, उनमें महिलाओं ने स्तन पर एक कपड़ा डाला हुआ है , जिसे स्तन पट्टी कहा जा सकता है।
भारत में मुगलों के आगमन के साथ ही महिलाओं के लिए पर्दा संस्कृति ने भी देश में दस्तक दे दी थी। मुगलों के शासन काल में न केवल इस्लाम धर्म को मानने वाली औरतों बल्कि हिंदू महिलाओं के लिए भी पर्दा करना जरूरी था। ऐसे में लॉन्ग चोलीकट ब्लाउज का ट्रेंड आया। इस युग की पेंटिंग में महिलाओं को सलवार-कमीज और घूंघट में दिखाया गया है। यही कमीज बाद में चलकर छोटे ब्लाउज में बदल गईं। हालांकि, कांगड़ा और राजपूत शैली की पेंटिंग में इस अवधि के दौरान महिलाओं को सिले हुए ब्लाउज या चोली और चौड़ी स्कर्ट या घाघरा पहने हुए दिखाया गया है। इसे राजस्थानी भाषा में चनिया चोली बोला गया है।
18वीं सदी में ब्रिटिश राज के आगमन के साथ, साड़ियों और ब्लाउज़ में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। इस दौर में विक्टोरियन शैली की फ्रिल, रिबन, ब्रोच और ऊंचा कॉलर से सजे ब्लाउज का फैशन खूब पसंद किया गया । इस तरह के ब्लाउज को साड़ी के साथ पहनने पर रॉयल लुक मिलता था।
अब तो वक्त और फैशन दोनों ही काफी आगे बढ़ चुके हैं। साड़ी में आपको कम और ब्लाउज में आपको ज्यादा डिजाइंस और प्रयोग देखने को मिलेंगे। अब तो साड़ी के साथ ब्लाउज के अलावा भी कई तरह के अलग-अलग आउटफिट्स को कैरी किया जाने लगा है।
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इस अंग्रेजी शब्द से निकला है ब्लाउज का नाम
"ब्लाउज" शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द "ब्लौसन" से हुई है, जिसका अर्थ 18वीं शताब्दी में किसानों द्वारा पहना जाने वाला ढीला-ढाला परिधान हुआ करता था। यह परिधान कमर के ऊपर तक होता था और यह केवल धूप में निकलने वाले पसीने को रोकने का एक माध्यम होता था। उस दौरान महिलाएं केवल ब्रा या कॉरसेट नुमा आउटफिट पहना करती थी। जिससे उनके ब्रेस्ट दबे रहते थे। बाद में फैशन को बढ़ाने और खुद को ज्यादा ट्रेंडी दिखाने के लिए यही ब्लाउज महिलाओं ने फैंसी कटिंग और फिटिंग के साथ पहनना शुरू कर दिए।
इस तरह से ब्लाउज अस्तित्व में आया और अब यह भारतीय महिलाओं की ड्रेसिंग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। एथनिक हो या फिर वेस्टर्न हर तरह के आउटफिट्स के साथ ब्लाउज को कवर किया जा सकता है।
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