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कौन होता है लोकपाल? जिसे भारत में मंत्री से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री तक की जांच के लिए किया जाता है नियुक्त

Lokpal Works in India: क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में मंत्री से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री पदों पर नियुक्त मंत्रियों पर लगे आरोपों की जांच के लिए किसे नियुक्त किया जाता है। अगर नहीं, तो यह आर्टिकल आपके लिए है। बता दें, कि यह प्रश्न  प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान भी पूछा जाता है।
Editorial
Updated:- 2024-09-30, 16:16 IST

भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की निगरानी के लिए ही लोकपाल संबंधी निकाय का गठन किया गया था। बता दें, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों की जांच कर्नाटक के लोकायुक्त को सौंपी गई है। बता दें, सिद्धारमैया पर मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण घोटाले से संबंधित आरोप लगे हैं। ऐसे में यह सवाल आना लाजमी है कि अगर किसी मंत्री पर ऐसे आरोप लगते हैं, तो उसकी जांच करने वाला लोकपाल कौन होता है।

लोकपाल और लोकायुक्त क्या हैं?

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संघ के लिए लोकपाल और राज्यों के लिए लोकायुक्त की स्थापना का प्रावधान किया गया। यह आयोग बिना किसी संवैधानिक दर्जे के वैधानिक निकाय हैं, जो लोकपाल का कार्य करते हैं और कुछ सार्वजनिक पदाधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों और संबंधित मामलों की जांच करते हैं। लोकपाल बिल 2013 को साल 2014 में पास किया गया था।

क्या लोकपाल सजा दे सकता है?

lokpal powers in hindi

लोकपाल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत गठित विशेष न्यायालय में अभियोग चला सकता है। लोकपाल सेवानिवृत्त न्यायाधीशों या सेवानिवृत्त सिविल सेवकों को न्यायिक अधिकारी नियुक्त करेगा। न्यायिक अधिकारियों की एक पीठ जांच करने के बाद किसी लोक सेवक पर जुर्माना लगा सकती है ।

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लोकपाल और लोकायुक्त का कार्य

  • लोकपाल और लोकायुक्तों को सार्वजनिक पदाधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच करने का अधिकार है।
  • लोकपाल का अधिकार क्षेत्र प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और केंद्र सरकार के ग्रुप ए के अधिकारियों तक है। लोकायुक्तों का अधिकार क्षेत्र राज्य स्तर पर सार्वजनिक पदाधिकारियों तक है। साथ ही भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें व्यक्तियों से या किसी अन्य स्रोत से प्राप्त कर सकते हैं।
  • वे शिकायत की सत्यता का पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच कर सकते हैं और प्रारंभिक साक्ष्य एकत्र कर सकते हैं।
  • अगर प्रारंभिक जांच में प्रथम दृष्टया मामला साबित हो जाता है, तो लोकपाल या लोकायुक्त पूरी जांच शुरू कर सकते हैं। उनके पास गवाहों को बुलाने, सबूतों की जांच करने और जरूरी कार्रवाई करने का अधिकार है।
  • यदि जांच में भ्रष्टाचार के साक्ष्य सामने आते हैं तो लोकपाल या लोकायुक्त आरोपी सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन शुरू कर सकते हैं।
  • वे भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश कर सकते हैं। इसमें पद से हटाना भी शामिल हो सकता है।

कैसे चुने जाते हैं लोकपाल?

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि आखिर लोकपाल और लोकायुक्त का कार्य क्या होता है। इसके अलावा अगला सवाल उठता है कि लोकपाल को कैसे चुना जाता है। बता दें, 2013 अधिनियम के अनुसार, लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे, जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे। इन पदों का चयन उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार अध्यक्ष का चयन किया जाता है।

इसके लिए सबसे पहले एक खोज समिति आवेदकों की सूची तैयार की जाती है, जिसमें से एक चयन समिति उस सूची में से नाम सुझाया जाता है और राष्ट्रपति इन व्यक्तियों को सदस्य के रूप में नियुक्त करेंगे।

अधिनियम के अनुसार, लोकपाल में कम से कम 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं से होने चाहिए। लोकपाल अध्यक्ष का वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होंगी।


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