South India Famous Shiva Temples: इस साल 26 फरवरी को पूरे देश भर में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा। इस खास मौके पर कई शिव भक्त दिन भर उपवास रखते हैं, तो कई शिव भक्त भगवान शिव का दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं।
देश में ऐसे कई विश्व प्रसिद्ध और पवित्र शिव मंदिर मौजूद हैं, जहां सिर्फ महाशिवरात्रि के मौके पर ही नहीं, बल्कि अन्य दिनों में भी हजारों की संख्या में भक्त अपनी-अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं।
देश के अन्य हिस्सों की तरह दक्षिण भारत में से भी एक से बढ़कर एक विश्व प्रसिद्ध और पवित्र शिव मंदिर मौजूद हैं। दक्षिण भारत में स्थित थिल्लई नटराज भी एक ऐसा ही शिव मंदिर है, जिसके दर्शन मात्र से भक्तों की मुरादें पूरी हो जाती हैं।
इस आर्टिकल में आपको थिल्लई नटराज मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथा और अन्य जुड़े कई तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। महाशिवरात्रि के मौके पर आप भी यहां पहुंच सकते हैं।
थिल्लई नटराज मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा जानने से पहले आपको यह बता दें कि यह पवित्र मंदिर दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित है। जी हां, यह मंदिर तमिलनाडु के चिदंबरम शहर में स्थित है, इसलिए इस मंदिर को कई लोग चिदंबरम शिव मंदिर के नाम से भी जानते हैं। यह देश के उन मंदिरों में से एक है, जहां भगवान शिव नटराज के रूप में विराजमान है।
आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि थिल्लई नटराज मंदिर, तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से करीब 235 किमी दूर है। इसके अलावा, यह मंदिर पुडुचेरी से करीब 69 किमी और तमिलनाडु के मयिलाड़ुतुरै शहर से सिर्फ 39 किमी की दूरी पर मौजूद है।
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थिल्लई नटराज मंदिर यानी चिदंबरम शिव मंदिर का इतिहास काफी पुराना माना जाता है। इस मंदिर के इतिहास को लेकर प्रमाणिक तथ्य नहीं है कि इसका निर्माण कब हुआ था, लेकिन कई लोगों का मानना है कि इसका निर्माण 5 वीं शताब्दी के आसपास में हुआ था।
एक अन्य लोककथा के अनुसार इस भव्य मंदिर का निर्माण 7 वीं शताब्दी के आसपास में पल्लव राजाओं द्वारा बनवाया गया था और कई वर्षों बाद में चोल और विजयनगर राजवंशों द्वारा रखरखाव देखा गया था।
थिल्लई नटराज मंदिर अपनी वास्तुकला से भी भक्तों को खूब आकर्षित करता है। कहा जाता है कि यहां स्थित पत्थर और खंभे पर शिव का अनोखा रूप दिखाई देता है। यहां हर जगह भरतनाट्यम नृत्य की मुद्राएं उकेरी गई हैं, जिसे भक्त देखकर हैरान हो जाते हैं।
थिल्लई नटराज मंदिर में नौ द्वार हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में पांच मुख्य हॉल और सभा घर है। इस मंदिर की बाहरी दीवारों की वास्तुकला भी सैलानियों को खूब आकर्षित करती है। इस मंदिर परिसर में गोविंदराज और पंदरीगावाल्ली का भी मंदिर मौजूद है।
थिल्लई नटराज मंदिर की पौराणिक कथा काफी दिलचस्प है। पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती में नृत्य प्रतिस्पर्धा हुई, लेकिन इस नृत्य में कोई जीत हासिल न कर सका। इसके बाद भगवान शिव पैर से उठाई मुद्रा में नृत्य करने का फैसला किया। जब भगवान शिव ने उठाई मुद्रा में नृत्य किया तो माता पार्वती हार मां गई। इसके बाद भगवान शिव को यहां नटराज के रूप में स्थापित किया गया था।
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थिल्लई नटराज मंदिर दर्शन का समय सुबह 6 बजे से लेकर 12 बजे तक और फिर 5 बजे से लेकर रात 10 बजे तक माना जाता है। यह मंदिर सप्ताह के हर दिन खुला रहता है। महाशिवरात्रि और अन्य कई विशेष मौके पर यहां लाखों की संख्या में शिव भक्त अपनी-अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी सच्चे मन से पहुंचता है, उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं।
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