उड़ीसा के सात उत्पादों को जीआई टैग मिल गया है जिसमें लाल बुनकर चींटियों से बनी सिमिलिपाल काई चटनी से लेकर कांतिमुंडी बैंगन शामिल है। 5 खाद्य पदार्थों के अलावा कढ़ाईदार कपडागंज शॉल और लांजिया सौरा पेंटिंग भी शामिल है। किसी भी वस्तु के जीआई टैग उस उत्पाद के उत्पत्ति के स्थान को दर्शाते हैं। उत्पादों को जीआई टैग इसलिए दिए जाते हैं, क्योंकि वे किसी विशिष्ट भौगोलिक इलाके, क्षेत्र या देश में उत्पत्ति के फैक्ट के कारण गुणवत्ता और विशिष्टता को आश्वासन दे। भारत में किसी भी उत्पाद को जीआई टैग देना उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के हाथ में होता है।
काले रंग के चावल की इस किस्म को चावल का राजकुमार भी कहा गया है। अपनी स्वाद, रंग, सुगंध, पोषण मूल्य और बनावट के लिए प्रसिद्ध है। इस काला जीरा चावल को कोरापुट क्षेत्र में आदिवासी किसान लगभग 1000 सालों से इसके किस्मों को संरक्षित करके रखा है।
लाल बुनकर चींटियों से बनी इस चटनी को मयूरभंज जिले के आदिवासियों का पारंपरिक व्यंजन है। ये लाल चींटियां मयूरभंज के जंगलों में पाई जाती हैं, जिनमें सिमिलिपाल के जंगल भी शामिल है। औषधीय और पोषण मूल्य से भरपूर इस चटनी को उड़ीसा के अलावा और भी दूसरे राज्यों के आदिवासी लोगों के द्वारा खाया जाता है।
खजुरी गुड़ खास तौर पर खजूर के पेड़ों से निकाले गए रस से तैयार किया जाता है। इस खजूरी गुड़ की उत्पत्ति गजपति जिले में हुई है। परंपरा के अनुसार इसे पाटली गुड़ नामक समलम्बाकार रूप में तैयार किया जाता है।
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नयागढ़ कांतिमुंडि बैंगन का पौधा खूब सारे तने और कांटेदार होने के लिए मशहूर है। छोटे हरे और सफेद रंग के बैंगन के फल में अन्य किस्मों की तुलना में ज्यादा बीज होते हैं। अपनी अनूठी स्वाद और कम समय में पकने के लिए बैंगन का यह किस्म मशहूर है।
ढेंकनाल माजी एक प्रकार की खास मिठाई है जिसे भैंस के दूध के पनीर से बनाई जाती है। यह अपने स्वाद, सुगंध और आकार के लिए मशहूर है। इस मिठाई का स्वाद अन्य पनीर से बनी मिठाइयों से बेहद अलग और स्वादिष्ट होता है।
उड़ीशा के रायगढ़ और कालहांडी जिलों में नियमगिरि पहाड़ियों में विशेष रूप से कमजोर समूह की औरतों के द्वारा इस खास शॉल को बनाया जाता है।
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यह पेंटिंग या कला जनजातीय कला रूपों में से एक है और इसे इडिटल के नाम से भी जाना जाता है। कलाकृतियां और अपनी सुंदरता के लिए यह प्रसिद्ध है।
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