भारत में नदियों का इतिहास किसी भी अछूता नहीं है। सदियों से समय ने न जाने कितनी बार अपना रुख बदला लेकिन नदियों ने अपनी दिशा नहीं बदली। सालों से अपनी दिशा में बहने वाली नदियां अपनी पवित्रता को बनाए हुए निरंतर बहती चली जा रही हैं। गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी जैसी पवित्र नदियों ने जहां एक तरफ अपने जल से सबको पवित्र किया वहीं हुगली और गोमती कोलकाता और लखनऊ की शान बनीं। ऐसी ही नदियों में से एक नदी है सिंधु नदी।
इस नदी का इतिहास तो सदियों पुराना है ही और इस नदी ने भी अपने जल से न जाने कितनों को सराबोर किया है। एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक सिंधु नदी अपनी खूबसूरती को कायम किये हुए उत्तरी भारत के कई क्षेत्रों को खूबसूरत दृश्य प्रदान करती है। इस नदी का इतिहास कई वर्षों पुराना और बेहद दिलचस्प भी है। आइए जानें सिंधु नदी के उद्गम और इतिहास की कहानी।
सिंधु नदी का उद्गम स्थान
सिंधु एशिया की एक सीमा पार नदी और दक्षिण और मध्य एशिया की एक ट्रांस-हिमालयी नदी है। इस नदी का उद्गम स्थान पश्चिमी तिब्बत से होता है और ये कश्मीर के लद्दाख और गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्रों के माध्यम से उत्तर-पश्चिम में बहती है। अपने उद्गम से निकलकर तिब्बती पठार की चौड़ी घाटी में से होकर, कश्मीर की सीमा को पार कर, दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के रेगिस्तान और सिंचित भूभाग में बहती हुई, करांची के दक्षिण में अरब सागर में गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 2 हजार मील है। यह नदी नंगा पर्वत मासिफ के बाद बाईं ओर तेजी से झुकती है और पाकिस्तान के माध्यम से दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम में बहती है अपने प्रवाह को कम करने से पहले ये नदी करांची के बंदरगाह शहर के पास अरब सागर में गिरती है। नदी का कुल जल निकासी क्षेत्र 1,165,000 किमी (450,000 वर्ग मील) से अधिक है। इसका अनुमानित वार्षिक प्रवाह लगभग 243 किमी है, जो इसे औसत वार्षिक प्रवाह के मामले में दुनिया की 50 सबसे बड़ी नदियों में से एक बनाता है।
सिंधु नदी की सहायक नदियां
लद्दाख में सिंधु नदी की बायीं ओर की सहायक नदी जंस्कार नदी है और मैदानी इलाकों में इसकी बाएं किनारे की सहायक नदी पंजनाद नदी है, जिसकी पांच प्रमुख सहायक नदियां हैं जिसमें चिनाब, झेलम, रावी, ब्यास और सतलुज नदियां मुख्य रूप से शामिल हैं। सिंधु नदी एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैं: वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु. इनमें शतद्रु सबसे बड़ी उपनदी है। सतलुज/शतद्रु नदी पर बने भाखड़ा-नंगल बांध से सिंचाई में काफी मदद मिली है जिससे भारत के पंजाब और हिमाचल का चेहरा ही बदल गया है।
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सिंधु नदी का धार्मिक इतिहास
सिंधु नदी के धार्मिक महत्व की बात की जाए तो भारतीय संस्कृति और सभ्यता का अपनी गोद में पालन- पोषण करने वाली सिंधु नदी के तट पर ही कई ऋषि- मुनियों ने तपस्या की, तो यहीं पर कई वेद- पुराण भी इसी नदी पर रचे गए। इतिहास में इस नदी का उद्गम कैलाश पर्वतके उत्तर में करीब पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर माना जाता है। वेदों में अगर इसके जिक्र की बात की जाए तो ऋग्वेद में भी कई नदियों का वर्णन किया गया है, जिनमें से एक सिंधु नदी भी है। ऋग्वेद में, विशेष रूप से बाद के भजनों में, ईस शब्द का अर्थ विशेष रूप से सिंधु नदी को संदर्भित करने के लिए किया जाता है|
सिंधु से हुई हिंदुस्तान नाम की उत्पत्ति
सिंधु नदी के नाम के विषय में इतिहास में वर्णन मिलता है कि ईरान के लोग ‘स’ को ‘ह’ बोलते थे, जिस वजह से वो लोग सिंधु नदी के ‘हिंदू’ कहते थे। इसी काऱण सिंधु नदी के पार रहने वाले लोगों को ‘हिंदू’ कहा जाने लगा। इसके बाद पारसी में सिंधु को ‘हिंदू’ कहकर संबोधित किया जाने लगा। जिसके आधार पर ही भारतवासियों को ‘हिंदू’ और भारतवर्ष को ‘हिंदुस्तान’ के नाम से जाना जाने लगा। यह भारत की सबसे पुरानी सभ्यता यानी कि सिंधु घाटी की सभ्यता की भी गवाह रही है। इसी नदी से सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत हुई थी।
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इस तरह सिंधु नदी का इतिहास पुराना होने के साथ बेहद रोचक भी है। जो इसे नदियों की श्रेणी में एक अलग जगह प्रदान करता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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Image Credit: freepik and unsplash
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