दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत के रूप में जाना जाने वाले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना हर पर्वतारोही के लिए किसी सपने के सच होने जैसा है। यह नेपाल में स्थित है और नेपाल और तिब्बत की सीमा को चिह्नित करता है। इसकी ऊंचाई समुंद्र तल से 8848 मीटर है और यहां की खूबसूरती बस देखते ही बनती है। वहीं, दूसरी ओर यह उतना ही डेंजरस भी है। ऐसे कई लोग है, जिन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने की कोशिश की, लेकिन वह अपने सपने को पूरा नहीं कर पाए और काल के गाल में समा गए। वहीं, कुछ भाग्यशाली लोगों ने अपने सपने को पूरा किया।
नेपाल में स्थित माउंट एवरेस्ट को अपनी विशालता के कारण विश्व के मुकट के रूप में भी जाना जाता है। वैसे जब भी माउंट एवरेस्ट की बात होती है तो लोग केवल इसकी हाइट के बारे में भी बात करते हैं। लेकिन हाइट के अलावा भी इससे जुड़े कुछ ऐसे इंटरस्टिंग फैक्ट्स हैं, जिसके बारे में बेहद कम लोगों को ही पता होता है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको माउंट एवरेस्ट से जुड़े कुछ अमेजिंग फैक्ट्स के बारे में बता रहे हैं-
आपको शायद पता ना हो, लेकिन माउंट एवरेस्ट 60 मिलियन वर्ष से भी अधिक पुराना है। इस माउंटेन का निर्माण तब हुआ जब भारत की कान्टिनेन्टल प्लेट एशिया में क्रैश्ड हो गई। भारत की प्लेट एशिया के नीचे पुश्ड हो गई, जिसने भूमि के एक बड़े हिस्से को ऊपर की ओर उठा दिया, जिससे दुनिया का सबसे ऊंचा माउंटेन रेंज पैदा हुआ।
क्या आपको पता है कि माउंट एवरेस्टके एक नहीं कई नाम है। इसे मूल रूप से नेपाली द्वारा सागरमाथा नाम दिया गया था, जिसका अर्थ है आकाश की देवी। दूसरी ओर, तिब्बती पर्वत को चोमोलुंगमा के रूप में पुकारते हैं, जिसका अर्थ है पहाड़ों की देवी मां। वहीं, शुरूआत में, ब्रिटिश सर्वेयर जनरल जॉर्ज एवरेस्ट ने जब 1841 में इसकी खोज की तो उन्होंने इसका नाम पीक 15 रखा। लेकिन बाद में 1865 में सर जॉर्ज एवरेस्ट के सम्मान में पहाड़ का नाम बदलकर माउंट एवरेस्ट कर दिया गया।
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माउंट एवरेस्ट जितना खूबसूरत है, उतना ही खतरनाक भी है। एक अनुमान के अनुसार, इस पर्वत पर अब तक करीब 300 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां पर क्यूम्यलेटिव डेथ रेट लगभग 2 प्रतिशत है, जिससे एवरेस्ट दुनिया का 7 वां सबसे घातक पर्वत है। माउंट एवरेस्ट पर चढते हुए आपको कई लोगों के मृत शरीर दिखेंगे। दरअसल, जब लोग एवरेस्ट पर चढ़ते हुए मरते हैं, तो उनके शरीर को पहाड़ पर छोड़ दिया जाता है, क्योंकि कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में शवों को खींचना और नीचे ले जाना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना इतना आसान नहीं है। इसलिए पर्वतारोही बेहद सोच-समझकर और प्लानिंग के साथ ही आगे बढ़ते हैं। आमतौर पर, माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले लोग टू क्लॉक रूल को फॉलो करते हैं। (रमनजोत कौर से जिन्होंने यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर किया सूर्य नमस्कार) यानी चढ़ाई करने वालों को दोपहर 2 बजे तक माउंट एवरेस्ट पर पहुंचना होता है क्योंकि इसके बाद मौसम बदलने से लेकर दुर्घटना होने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करने से पहले लगभग 10 हफ्तों की कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पूरा कर लेने और कई तरह के हेल्थ टेस्ट पास करने के बाद ही एवरेस्ट पर जाने की इजाजत मिलती है।
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Image Credit- GQ, Wikimedia, britannica
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