दिल्ली को देश का दिल यूं ही नहीं कहा जाता। यहां पर आपको खाने-पीने से लेकर शॉपिंग करने और घूमने-फिरने का एक अलग ही अनुभव प्राप्त होता है। इन दिनों देश में हालात ठीक नहीं है और इसलिए दिल्ली का मजा आप शायद पूरी तरह से ना उठा पाएं, लेकिन यहां पर देखने लायक चीजों की एक लंबी फेहरिस्त है। अगर आप देश के दिल को अच्छी तरह से टटोलने का मन बना रही हैं तो यहां पर देखने लायक चीजों की एक सूची अभी से तैयार कर लीजिए और जब हालात ठीक हो जाएं, तब इन्हें जरूर देखिएगा।
इस लिस्ट में वैसे तो आप अपनी पसंद से कई जगहों को शामिल करेंगी, लेकिन यहां के महावीर एन्क्लेव में स्थित टॉयलेट म्यूजियम को अपनी लिस्ट में शामिल करना ना भूलें। टाइम पत्रिका के अनुसार यह संग्रहालय विश्व के सबसे विचित्र संग्रहालयों में से एक है और इसलिए इसे एक बार देखना तो जरूर बनता है। यहां पर आकर आपको एक अलग ही अनुभव होगा, जिसके बारे में शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। तो चलिए आज हम आपको इस लेख के माध्यम से सुलभ इंटरनेशनल शौचालय संग्रहालय नाम से जाने जाने वाले इस टॉयलेट म्यूजियम की सैर कराते हैं-
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म्यूजियम की विशेषता
इस म्यूजियम में शौचालय से जुढ़े में तथ्यों, चित्रों और वस्तुओं का एक दुर्लभ संग्रह है, जो 2500 ईसा पूर्व से आज तक शौचालय के ऐतिहासिक विकास का विवरण देते हैं। यह शौचालय से संबंधित सामाजिक रीति-रिवाजों, शौचालय के शिष्टाचार, प्रचलित सेनेटरी स्थितियों और विभिन्न समयों से संबंधित घटनाओं के बारे में आपको विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। यहां पर 1145 ईस्वी से लेकर आधुनिक काल तक के निजीकरण, चैंबर पॉट्स, टॉयलेट फ़र्नीचर, बिडेट्स और वाटर क्लोसेट मौजूद है। (दिल्ली के पहले 3D म्यूजियम) इतना ही नहीं, यहां पर आपको शौचालय से संबंधित सुंदर कविताओं, उनके इस्तेमाल का भी एक बेहतरीन कलेक्शन देखने को मिलेगा। म्यूजियम में आकर आपको पता चलेगा कि कि कैसे रोमन सम्राटों के पास सोने और चांदी से बने शौचालय के बर्तन हुआ करते थे। 1596 में सर जॉन हैरिंगटन, रानी एलिजाबेथ के शासनकाल के दौरान एक दरबारी द्वारा तैयार किए गए फ्लश पॉट का दुर्लभ रिकॉर्ड भी इस म्यूजियम में है। यह म्यूजियम 2,500 ईसा पूर्व की हड़प्पा सभ्यता की सीवरेज प्रणाली को प्रदर्शित करता है।
ऐसे शुरू हुआ म्यूजियम
इस अनोखे सुलभ इंटरनेशनल म्यूज़ियम ऑफ़ टॉयलेट्स की कल्पना सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक ने की। उनके प्रयासों के कारण ही 1992 में नई दिल्ली में इस अनोखे संग्रहालय की स्थापना हुई। और इसका प्रबंधन भी उन्हीं की आर्गेनाइजेशन द्वारा किया जाता है।(पानी के अंदर म्यूजियम) डॉ बिंदेश्वर पाठक एक विश्व प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और समाजशास्त्री समाजशास्त्री, सामाजिक कार्यकर्ता और सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार आंदोलन के संस्थापक हैं, जिन्हें 2009 में स्टॉकहोम वॉटर प्राइज सहित अपने काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।
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तीन भागों में बंटा है म्यूजियम
इस म्यूजियम को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है- प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक। प्राचीन भाग में आपको लगभग 3000 ईसा पूर्व के हड़प्पा बस्तियों की स्वच्छता व्यवस्था के बारे में जानने को मिलेगा। इसके साथ ही, म्यूजियम मिस्र, क्रेते, यरूशलेम, ग्रीस और रोम की अन्य प्राचीन सभ्यताओं की स्वच्छता व्यवस्था को भी प्रदर्शित करता है। मध्य युग के दौरान, चाहे भारत में या कहीं और, राजा और सम्राट सुरक्षा कारणों से बड़े किलों में रहते थे। संग्रहालय में जयपुर के अंबर किले, आगरा के पास फतेहपुर-सीकरी में अकबर का किला, तमिलनाडु का गिंगी किला और हैदराबाद, आंध्र प्रदेश के गोलकोंडा किले के शौचालय प्रदर्शित हैं। यहां पर इंग्लैंड का टेबल-टॉप टॉयलेट भी देखा जा सकता है। वहीं आधुनिक युग वाले सेक्शन में आपको टॉयलेट से संबंधित कई दिलचस्प कार्टून, फोटोग्राफ, विभिन्न देशों के पब्लिक टॉयलेट और टॉयलेट जोक्स देखने को मिलेंगे।
कोरोना संक्रमण के कारण अभी इस म्यूजियम को आम जनता के लिए बंद ही रखा गया है। लेकिन जब देश से कोरोना संक्रमण का खतरा टल जाए, तब आप इस टॉयलेट म्यूजियम को देखने जरूर जाइएगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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