बड़ी दिलचस्प है 'गाजर के हलवे' की कहानी

गाजर के हलवे की शुरुआत कैसे हुई? कहां से हुई और यह कैसे लोगों की जुबान पर चढ़ गया। इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है, आइए आप भी जानें।

interesting history of gajar ka halwa

बचपन में सर्दियों की ठंडी-ठंडी रातों में मेरे घर पर हर हफ्ते हलवा बनता था। ज्यादातर लोगों को चूंकि गाजर का हलवा पसंद था, तो वो ज्यादा बनाया जाता है। मावा, चीनी, ड्राई फ्रूट्स, मलाई और अच्छी तरह दूध से पकाया हुआ हलवा डिनर को कंप्लीट कर देता था। मुझे यकीन है अधिकांश घरों में गाजर के हलवे को लेकर यह प्रेम और भाव रहता होगा। इससे अलग ही इमोशन लोगों के जुड़े हैं।

वहीं, दिल्ली जैसे शहर में तो सर्दियों में हर ठेले पर गाजर का हलवा बिकता है। मगर यह बात सिर्फ अभी की नहीं है। हलवे के इतिहास पर गौर करें तो यह कुछ 3000 साल ईसा पूर्व से बनता आया है। इसके इतिहास में और भी बहुत कुछ दिलचस्प है, जिसे जानकर आपको भी बड़ी हैरानी होगी।

मुगलों के युग में हुई शुरुआत

halwa started from mughal era

ऐसा माना जाता है कि इस अद्भुत भारतीय मिठाई की उत्पत्ति मुगल काल से हुई थी। हलवे की शुरुआत 3000 ईसा पूर्व से मानी जा सकती है! बारहवीं शताब्दी के मध्य में इस्तांबुल के लेखन में कुछ पुरातात्त्विक लोगों ने ग्रीस स्वीट्स के हिन्ट्स मिलेंगे। हलवा शब्द का अरबी में भी पालन किया जा सकता है, जिसका अर्थ है मीठा पकवान या मिठाई। इसे मिस्र में हलावा, यूनान में हलवा, हिब्रू में हलवाह, अरबी में हिलवा, तुर्की में हेलवा और संस्कृत में हलावा कहा जाता है।

13वीं शताब्दी में बताए गए 8 हलवे के प्रकार

th century book of dishes has gajar ka halwa recipe

खाद्य इतिहासकारों के निष्कर्षों के अनुसार, हलवे की पहली रेसिपी मुहम्मद इब्न अल-हसन इब्न अल-करीम द्वारा लिखित 13वीं शताब्दी के अरबी टेक्स्ट, 'किताब अल-तबीख' (व्यंजनों की पुस्तक) में दिखाई दी, जिसमें हलवे की आठ अलग-अलग प्रकार और उनके व्यंजनों का उल्लेख है। इसके अलावा, अरब प्रभाव वाले शुरुआती भारतीय शहरों में से दो कराची और कोझिकोड के तटीय शहर थे और इस प्रकार, हलवा इन शहरों में खाद्य परंपराओं का एक अभिन्न अंग है।

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तो क्या अरब से मिला हलवा?

लखनऊ के एक लेखक और इतिहासकार अब्दुल हलीम शरर ने अपनी पुस्तक 'गुज़िश्ता लखनऊ' में उल्लेख किया है कि हलवा अरबी भूमि से फारस के रास्ते भारत आया था। इस बीच, शिकागो स्थित खाद्य इतिहासकार कोलीन टेलर सेन ने अपनी पुस्तक 'फीस्ट्स एंड फास्ट्स' में कहा है कि मोहम्मद बिन तुगलक के शासन के दौरान 13 वीं और 16 वीं शताब्दी के बीच हलवा दिल्ली सल्तनत में आया था।

कुछ अन्य किंवदंतियों के अनुसार, हलवा पकाने की विधि की जड़ें तुर्क साम्राज्य में हैं। साम्राज्य के दसवें और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले सुल्तान सुलेमान को मिठाइयों का इतना शौक था कि उनके पास केवल मीठे व्यंजनों के लिए एक अलग रसोई थी, हलवा उनमें से एक था।

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गाजर का हलवा कैसे बना जुबान का स्वाद

delicious gajar ka halwa

भले ही हलवे की शुरुआत अरब से मानी जा सकती है, लेकिन यह अब की तुलना में अधिक भारतीय नहीं हो सकता है। उपमहाद्वीप में इसका ऐसा प्रभाव पड़ा है कि मिठाई वालों को आज तक 'हलवाई' के नाम से पुकारा जाता है और आगे भी ऐसे ही पुकारा जाएगा। हलवा भारत में आया और लोगों का दिल जीत गया। तमाम तरह के हलवों में एक रोज गाजर डालकर प्रयोग किया गया। ऐसा माना जाता है कि 1526 में मुगल शासन के दौरान व्यापारियों द्वारा सतरंगी गाजर लाया गया। जो सभी के लिए नया था, ऑरेंज गाजर को जब दूध, चीनी, खोया के साथ पकाया गया तो गाजर का हलवा बन गया। पंजाब में बस इसी नाम से गजरेला भी लोकप्रिय हो गया, जिसे वहां कि पारंपरिक मिठाई कहते हैं।

हर शहर में अलग-अलग प्रकार के हलवे का स्वाद

different types of halwa

आज पूरे देश में हलवे की कई भिन्न-भिन्न वैरायटी आपको देखने को मिलेगी। पुणे से 'हरी मिर्च का हलवा', पश्चिम बंगाल से 'चोलर दाल हलवा', उत्तर प्रदेश और बिहार से 'अंडा हलवा', कर्नाटक से 'काशी हलवा', केरल से 'करुठा हलवा', हलवा के कुछ प्रकार हैं।

उम्मीद है यह कहानी आपको रोचक लगी होगी और इसे पढ़कर आपका भी मन गाजर का हलवा खाने का कर गया होगा। यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं। ऐसे ही पकवानों के रोचक किस्सों के लिए पढ़ते रहें हरजिंदगी।

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Image Credit : freepik and amazon

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