कबाब की कितनी ही वैरायटी आपने चखी होंगी? सीख कबाब लें या फिर शमी कबाब, गलौटी कबाब हो या फिर हो काकोरी कबाब, जिन्हें आप चाव से खाते हैं वो व्यंजन यहां का कभी था ही नहीं। कहा जाता है कि तुर्की किचन में बनने वाला कबाब एक दिन अफगानों द्वारा भारत आ पहुंचा और बस फिर क्या था? हम भारतीयों को यह इतना स्वादिष्ट लगा कि हम इसे दिल दे बैठे और फिर कबाब के साथ तरह-तरह के प्रयोग करने लगे।
कबाब बनाना एक कला है, जिसमें मीट को अच्छी तरह से पीस करके उसमें मसाले डालकर चंक्स अलग-अलग तरह से ग्रिल किया जाता है और प्याज और चटनी के साथ पोरसा जाता है। इसके कई वैरियंट्स आज दुनिया भर में मशहूर हैं। लेकिन आखिर यह भारत में कैसे पहुंचा? अलग-अलग तरह के कबाबों का जन्म कैसे हुआ? अगर आप कबाब के रोचक इतिहास के बारे में जानना चाहें, तो हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
कबाब बनाने के लिए अच्छी तरह से पिसा हुआ मीट तैयार किया जाता है। कई बार इसमें सब्जियां डलती हैं, तो कई बार इसे अपने तरह के अलग कबाब के अनुसार तैयार करते हैं। इसे आमतौर पर आग के ऊपर एक स्क्वीयर पर पकाया जाता है। कबाब को यूं तो बकरे के मीट से बनाया जाता है, लेकिन क्षेत्रिय व्यंजनों को बकरा, चिकन, फिश, पोर्क और बीफ से भी बनाया जाता है।
कहा जाता है कि यह कबाब खानाबदोशों के सफर के दौरान ही अस्तित्व में आया। इसे अपने साथ ले जाना और पकाना बेहद आसान था। ऐसा भी माना जाता कि सबसे अच्छे कबाब वहीं से आए, जहां जंग हुईं। कहा जाता है कि शाही रसोई की कमान ईरानी, तुर्की और अफगानों के हाथ आई, तो उन्होंने गोश्त बनाना शुरू किया। इस कारण उसका असर देसी और राजपूत खानपान पर पड़ा। कई मौकों पर तो यह भी हुआ कि जमीन में बड़े गड्ढे खोदे गए और इन्हें गोबर से लीपा गया। शिकार को साफ कर साफ पत्तों में लपेटकर गड्ढे में मसाले के साथ रखा गया और बाद में इन्हें अंगारों पर भुनने के लिए छोड़ दिया गया। इसी तरीके से खाना पकाने की यह शैली खड्ड पाक कला के नाम से मशहूर हुई।
कहा जाता है कि 17वीं सदी में औरंगजेब ने नौ महीनों तक जंग के बाद गोलकुंडा किला फतह किया था और इसी दौरान उनके सैनिकों ने मांस पकाने की एक नई शैली विकसित कर ली थी। उन्होंने मांस पकाने की जो शैली तैयार की थी, उस तैयार मांस को शामी कबाब कहा गया। यही हैदराबाद के मशहूर पत्थर कबाब की जन्मस्थली भी है, जिन्हें गर्म पत्थरों पर पकाया जाता है।
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लोकप्रिय कबाबों की अगर बात की जाए, तो उसमें गलौटी कबाब, काकोरी कबाब और शामी कबाब शामिल हैं। ऐसा कहा जाता है कि अवध में सबसे ज्यादा लोकप्रिय सीख कबाब हुआ। इसी की लोकप्रियता के बाद, इसमें कुछ बदलाव किए गए और फिर जन्म हुआ काकोरी कबाब का। राजाओं और अवध के नवाबों ने इन्हें खूब पंसद किया गया और उनके मेहमानों ने भी इनका जमकर लुत्फ उठाया। ऐसा माना जाता है कि काकोरी कबाब का जन्म एक टिप्पणी के कारण हुआ था। दरअसल एक अधिकारी ने सीख कबाब को लेकर टिप्पणी की थी, जो मेजबान को पसंद नहीं आई। उन्होंने तुरंत अपने खानसामे को कुछ बेहतर, गलावटी बनाने के लिए कहा। इस तरह गलौटी/गलावटी कबाब अस्तित्व में आए।
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लखनऊ शहरे के लोकप्रिय टुंडे कबाब के बनने के पीछे भी एक अद्भुत कहानी है। दरअसल एक रोज कबाबची हाजी मुराद अली पतंग उड़ाते- उड़ाते छत से गिर गए थे। उन्हें काफी चोट लगी थी और इसी चोट में उन्होंने अपना एक हाथ खो दिया था। कहा जाता है कि उन्हें कबाब बनाने का बड़ा शौक था। इस तरह वह कबाब बनाते हिए और यह कबाब उनके नाम से यानी टुंडे के कबाब से लखनऊ शहर में मशहूर हो गया।
जाने-माने फूड हिस्टोरियन आशिष चोपड़ा साझा करते हैं कि कबाब (घर पर कुछ इस तरह बनाएं टेस्टी सोया कबाब) बनाना एक कला है, जिसे सही तरीके से नहीं किया गया तो मामला गड़बड़ा सकता है। वह कहते हैं कि कबाब बनाने के लिए बकरे का मांस का इस्तेमाल होना चाहिए और अच्छी तरह से पिसा हुआ हो। जब आप मसाले डालें तो उसमें सभी का बराबर और सही संयोजन हो। आशिष चोपड़ा कहते हैं कि दिल से बनाया गया कबाब कभी जाया नहीं होता है।
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